न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि गुजरात सरकार के पास बिलकिस बानो मामले में दोषियों की माफी के आवेदन पर विचार करने या उन्हें सज़ा में छूट देने के आदेश पारित करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
"छूट पर निर्णय लेने के लिए उपयुक्त सरकार वह राज्य है जिसकी क्षेत्रीय सीमा के भीतर आरोपियों को सजा सुनाई गई है, न कि जहां अपराध हुआ है या आरोपियों को कैद किया गया है," सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ का मई 2022 का आदेश अमान्य है क्योंकि यह याचिकाकर्ता दोषी द्वारा धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया था।
गौरतलब है कि गुजरात सरकार ने साल 2022 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था। इसके बाद बिलकिस बानो ने दोषियों को मिली सज़ा में छूट को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। जिस पर शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्य सरकारों को छूट देने में चयनात्मक नहीं होना चाहिए।
बता दें कि बिलकिस बानो पांच महीने की गर्भवती थीं, जब 2022 में भड़के सांप्रदायिक दंगों के दौरान उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और तीन साल की बेटी सहित परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गयी थी।