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AI-जनित डीपफेक द्वारा भारत की चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने का खतरा: विशेषज्ञ

भारत में आगामी लोक सभा चुनावी वर्ष में अर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) जनित डीपफेक का खतरा बड़ा हो गया है, जो जनता की राय को बदलने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करने में सक्षम है।
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अर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) उस सीमा तक आगे बढ़ चुका है जहां चुनावी राजनीति में, ऑडियो और वीडियो क्लोनिंग का खतरनाक उपयोग किया जा सकता है, जिससे बिल्कुल नए प्रभावी तरीके से गलत सूचना फैलाई जा सकती है।
मतदाताओं की भावनाओं को प्रभावित करने के उद्देश्य से सोशल मीडिया पहले से ही भारतीय राजनेताओं और राजनीतिक दलों को निशाना बनाने वाली डीपफेक सामग्री से भरा हुआ है।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के दिनों में डीपफेक को "भारत की प्रणाली के सामने सबसे बड़े खतरों में से एक" कहा है। ऐसे में Sputnik India ने साइबर सुरक्षा कानून पर अंतरराष्ट्रीय आयोग के संस्थापक और अध्यक्ष डॉ पवन दुग्गल से बात की। डॉ दुग्गल Cyberlaws.Net के अध्यक्ष भी हैं और साइबर सुरक्षा कानून के अग्रणी क्षेत्र में लगातार कार्य कर रहे हैं।

"इस साल 2024 में आम चुनाव के समय बहुत जबरदस्त संभावनाएं हैं कि AI का दुरूपयोग कर मतदाताओं की मानसिकता को प्रभावित करने का प्रयास किया जा सके। [...] इसलिए अत्यंत आवश्यक है कि सरकार ठोस कदम उठाए ताकि AI और डीपफेक का दुरूपयोग भारत के विरुद्ध न किया जा सके। क्योंकि अगर [वे] इसके द्वारा भारत की चुनावी प्रक्रिया में दखलअंदाजी करने का प्रयास करेंगे तब वे संभावित स्तर पर भारत की संप्रभुता, अखंडता या सुरक्षा को भी प्रभावित करने की क्षमता रख सकते हैं," डॉ दुग्गल ने Sputnik India को बताया।

वस्तुतः भारत में चुनाव प्रचार घर-घर अभियान और दीवार पोस्टर से आगे बढ़कर AI-जनित नकली वीडियो तक विकसित हो गया है। यह तकनीक सैकड़ों मील दूर किसी भी कार्यालयों में बैठे लोगों के एक समूह को डीपफेक वीडियो द्वारा चुनाव वाले निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की भावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं।
ये राजनीतिक नेताओं और मशहूर हस्तियों के लिप-सिंक किए गए संदेश हो सकते हैं, जो अपनी क्लोन आवाज में झूठे दावे, आरोप और फर्जी वादे करते हैं, जो सोशल मीडिया पर प्रसारित होने के बाद बड़े स्तर पर भ्रम उत्पन्न कर सकते हैं।
इस वर्ष की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत डीपफेक के मामले में छठा सबसे संवेदनशील देश है।

"भारत में कानूनी प्रावधान उपलब्ध नहीं है जिससे डीपफेक के दुरूपयोग को नियंत्रण करने की दिशा में कारगर सिद्ध हो। डीपफेक भारत के आईटी एक्ट्स या आईटी रूल में परिभाषित नहीं है। और समस्या इसलिए भी बढ़ जाती है कि भारत के पास AI को रेगुलेट करने का कानून विद्यमान नहीं है। इसलिए, लोग लगातार डीपफेक का प्रयोग करेंगे। अब वह समय चला गया जब लोग डीपफेक का प्रयोग सिर्फ आनंद और मनोरंजन के लिए ही इस्तेमाल करेंगे। अब इसे एक महत्वपूर्ण औजार के रूप में प्रयोग कर लक्ष्यबद्ध निशाना किया जाएगा," साइबर विशेषज्ञ ने रेखांकित किया

भारत को पहली बार 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान चुनावों में एआई हस्तक्षेप के संकट का सामना करना पड़ा, जब उपयोगकर्ताओं को तत्कालीन राज्य भाजपा प्रमुख मनोज तिवारी के विभिन्न भाषाओं में सीएम अरविंद केजरीवाल की नीतियों की आलोचना करने वाले वीडियो मिले।
हालांकि एआई और डीपफेक की तकनीक तब शुरुआती थी, परंतु आज यह किसी भी इंटरनेट उपयोगकर्ता के लिए सहजता से उपलब्ध है।

"अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्टेट और नॉन-स्टेट भागीदार दोनों ही चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की संभावना रख सकते हैं। उसका कारण बहुत स्पष्ट है कि विगत कुछ समय में राजनीतिक स्थिति बहुत बदल गई है। अब भारत न मात्र सबसे बड़ा प्रजातंत्र है बल्कि विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र बन चुका है। साथ ही भारत विश्व का सबसे बड़ा ई-मार्केट प्लेस भी बनने वाला है। इस सन्दर्भ में चुनावी प्रक्रिया में दखल कर नियंत्रण पाना स्टेट या नॉन स्टेट भागीदार का उद्देश्य होगा। और, ऐसे प्रयास लगातार किये जाएंगे इसलिए भारत के निर्वाचन आयोग का दायित्व और बढ़ जाता है कि वे कारगर कदम उठाएं ताकि इस तकनीक के दुरूपयोग से भारत की प्रभुता, अखंडता और सुरक्षा नकारात्मक रूप से प्रभावित न हो सके," डॉ दुग्गल ने टिप्पणी की।

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