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पार्टियों के बाहर होने से I.N.D.I.A गठबंधन मजाक बन गया है: वरिष्ठ पत्रकार

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और हाल ही में बना भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (I.N.D.I.A) दोनों ही इस बार चुनाव जीतने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं।
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भारत में लोकसभा के चुनाव में अब चंद दिन रह गए हैं और जल्दी ही चुनाव आयोग आगामी चुनावों की तारीखों का ऐलान कर देगा। अभी से सभी पार्टियां इसकी तैयारियों में जुट गई हैं।
प्रधानमंत्री मोदी अपनी रैलियों में जाकर पिछले दस सालों में किए गए कार्यों के बारे में बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ''भारत जोड़ों नयाय यात्रा'' पर निकले हुए हैं।
विपक्ष के दलों से मिलकर बना I.N.D.I.A ब्लॉक सभी संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा और एनडीए के खिलाफ एक संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार खड़ा करके लाभ उठाने की उम्मीद कर रहा है। विपक्षी दलों का तर्क है कि इस तरह के कदम से यह सुनिश्चित होगा कि भाजपा विरोधी लोग एकजुट होकर वोट करें।
लेकिन कुछ ही दिनों में इस गठबंधन में दरार नजर आने लगी है। शुरुआत में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर पलटी मारते हुए राष्ट्रीय जनता दल से हाथ छुड़ाते हुए भाजपा का दामन थम लिया और बिहार में उनके साथ मिलकर सरकार बना ली। जम्मू कश्मीर में भी नैशनल कॉनफेरेंस के फारूक अब्दुल्ला ने आगामी चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है।
इनके साथ साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (TMC) पार्टी की नेता ममता बनर्जी भी गठबंधन से बाहर हो गई हैं, जिसका नेतृत्व भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस कर रही है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पीडीपी सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती भी जल्द ही इंडिया ब्लॉक से अलग हो सकती हैं। वहीं आम आदमी पार्टी ने भी कहा है कि वह लोकसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ेंगे, लेकिन राज्य के चुनावों में वह अकेले लड़ेंगे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह गठबंधन चुनाव आने के पहले ही बिखर रहा है।
भारत में कई लोकसभा चुनाव कवर कर चुके और भारतीय राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन देशप्रेमी से Sputnik भारत ने पुछा कि कुछ दलों के छोड़ कर चले जाने के बाद भी I.N.D.I.A गठबंधन की अभी भी कोई प्रासंगिकता है? तो उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन सिर्फ फोटो सेशन के लिए एक गठबंधन बन कर रह गया है।

वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, "अब जबकि चुनाव की घोषणा में कुछ दिन बाकी हैं, तो ऐसे में गठबंधन किसी मुद्दे या किसी न्यूनतम साझा कार्यक्रम, सीट शेयरिंग, नेतृत्व को लेकर किसी भी चीज को तय नहीं कर पाया है। वह यह माहौल बनाने में पूरी तरह असफल रहा है कि वह मौजूदा मोदी सरकार के विरोध में एक राजनीतिक लड़ाई लड़ना चाहता है। राहुल गांधी न्याय यात्रा में लगे हुए हैं, जिसका उद्देश्य क्या है वह कांग्रेस के नेता और कार्यकर्त्ता दोनों को नहीं मालूम।"

उन्होंने आगे बताया कि यह गठबंधन कभी पूरी तरह से खड़ा नहीं हो पाया और मुद्दों से भटक कर रह गया। कांग्रेस की लीडरशिप में यह गठबंधन बना, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता खुद ही पार्टी छोड़ छोड़ कर जा रहे हैं, जिसकी वजह से भी अन्य दल कांग्रेस पर विश्वास नहीं जता पा रहे हैं।

वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन देशप्रेमी ने बताया, "सबसे पहली बात यह है कि गठबंधन पूरी तरह से कभी बन ही नहीं पाया, सिर्फ एक मजाक बनकर रह गया है इसी वजह से क्षेत्रीय दल (JDU, TMC, AAP) पहले ही अलग होने लगे। कांग्रेस के बड़े नेता गुलाम नबी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा आदि ने पहले ही पार्टी छोड़ दी थी, और अब अशोक चौहान ने भी पार्टी छोड़ दी।"

हालांकि कांग्रेस तमाम दावे कर रही है कि जनतादल-यूनाइटेड (जेडी-यू) और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के इंडिया ब्लॉक छोड़ने से मोर्चे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और गठबंधन मजबूत है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बताया कि इसके सभी सहयोगी जल्द ही आगामी लोकसभा चुनावों के लिए सीट बंटवारे को अंतिम रूप देंगे।

जयराम रमेश ने कहा, "सीट बंटवारे (लोकसभा चुनाव के लिए) पर AAP, DMK, NCP, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और ममता बनर्जी जी के साथ चर्चा चल रही है। नीतीश और आरएलडी के अलग होने से गठबंधन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हम मजबूत हैं और जल्द ही विभिन्न राज्यों में सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दे दिया जाएगा।"

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