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आगामी चुनाव में मोदी को मिले मजबूत जनादेश से अमेरिका असहज
आगामी चुनाव में मोदी को मिले मजबूत जनादेश से अमेरिका असहज
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्वास व्यक्त किया कि उनकी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाला गठबंधन आगामी चुनाव में अपनी उच्चतम 400 सीटें जीतेगा।
2024-02-17T14:32+0530
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अमेरिका के नेतृत्व वाला सामूहिक पश्चिम नरेंद्र मोदी जैसे मजबूत और राष्ट्रवादी नेता के विरुद्ध है। इसलिए वह उनकी चुनावी संभावनाओं को कमजोर करने के लिए विदेश नीति और मानवाधिकारों को लेकर नई दिल्ली की आलोचना कर रहा है। यह टिप्पणी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सदस्य और राष्ट्रीय सुरक्षा थिंक टैंक ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पॉलिसी फाउंडेशन पुणे के अध्यक्ष डॉ अनंत भागवत ने Sputnik India के साथ बात करते हुए की। भागवत ने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा, "वे भारत में एक कमजोर प्रधानमंत्री चाहते हैं, जो उनके हितों के अधीन हों।" विशेषज्ञ ने आगे कहा कि पश्चिमी मीडिया की रणनीति "प्रतिउत्पादक" होगी और इसके बजाय भारतीय जनता की नजर में पश्चिमी मीडिया और पश्चिमी सरकारों की विश्वसनीयता कम हो जाएगी। हालांकि, उन्होंने टिप्पणी की कि अमेरिका को "भारत के साथ अपने व्यवहार में नए सामान्य" की आदत डालनी होगी।मोदी के दूसरे कार्यकाल का पश्चिम द्वारा कवरेज2019 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली, जो उनके दूसरे कार्यकाल की शुरुआत थी। जिसके बाद पश्चिमी मीडिया उनके के कुछ प्रमुख निर्णयों की आलोचना करने में सबसे आगे रहा है। 2019 में भारतीय संसद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया, जिससे पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर की अर्ध-स्वायत्त स्थिति रद्द हो गई। भारतीय जनता के बड़े वर्ग ने इस निर्णय की सराहना की है। परंतु कश्मीर की घटनाओं पर पश्चिमी मीडिया की कवरेज मोदी के प्रति पक्षपाती बनी हुई है। रूस के साथ अपने ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंधों को बढ़ाने के भारत के निर्णय ने पश्चिमी नेताओं को परेशान कर दिया है और इसकी मीडिया में आलोचना हो रही है। मानवाधिकार को लेकर पश्चिमी मीडिया मोदी को "सत्तावादी" कहने की हद तक चला गया है। ब्रिटिश पत्रिका द इकोनॉमिस्ट ने पिछले वर्ष कहा था, "अमेरिका और उसके सहयोगी भारत को एक आर्थिक और राजनयिक साझेदार के रूप में विकसित कर रहे हैं। लेकिन इसके प्रधानमंत्री की सत्तावादी प्रवृत्ति को अनदेखा करना कठिन होता जा रहा है।" पिछले वर्ष , बीबीसी ने 2002 के गुजरात दंगों में मोदी की कथित भूमिका पर एक वृत्तचित्र प्रसारित किया था। भारत ने बीबीसी की इस डाक्यूमेंट्री को दुष्प्रचार का एक हिस्सा करार देते हुए सिरे से रद्द कर दिया था।पिछले महीने मोदी ने राम मंदिर के उद्घाटन की अध्यक्षता की, इस प्रकार स्वतंत्रता के बाद से भारतीय राजनीति के सबसे विभाजनकारी मुद्दों में से एक का पटाक्षेप हो गया। वाशिंगटन पोस्ट अखबार ने इस घटना को "हिंदू वर्चस्व" के रोडमैप के अनावरण के रूप में वर्णित किया, जबकि CNN ने इसे "भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए काला दिन" बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि चुनाव निकट आने पर भारतीय विपक्ष के कुछ वर्ग पश्चिमी मीडिया के हाथों में खेल सकते हैं।भागवत ने कहा कि भारतीय विपक्ष की प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के प्रति द्वेष इस स्तर तक बढ़ गया है कि वे भारत की वैश्विक छवि को कमजोर करने के लिए पश्चिमी एजेंटों के साथ सहयोग कर रहे हैं। पश्चिमी मीडिया भारत-पश्चिम संबंधों को कर रहा कमजोरभाजपा से जुड़े थिंक टैंक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के आंतरिक सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ बिनय कुमार सिंह ने Sputnik India को बताया कि "हमारे सामने भारत के दो दृष्टिकोण थे"।विशेषज्ञ ने साथ ही पश्चिमी मीडिया पर "नई दिल्ली और पश्चिम के मध्य संबंध खराब करने" का आरोप लगाया।
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आगामी चुनाव में मोदी को मिले मजबूत जनादेश से अमेरिका असहज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्वास व्यक्त किया कि उनकी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाला गठबंधन आगामी चुनाव में अपनी उच्चतम 400 सीटें जीतेगा।
अमेरिका के नेतृत्व वाला सामूहिक पश्चिम नरेंद्र मोदी जैसे मजबूत और राष्ट्रवादी नेता के विरुद्ध है। इसलिए वह उनकी चुनावी संभावनाओं को कमजोर करने के लिए विदेश नीति और मानवाधिकारों को लेकर नई दिल्ली की आलोचना कर रहा है।
यह टिप्पणी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सदस्य और राष्ट्रीय सुरक्षा थिंक टैंक ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पॉलिसी फाउंडेशन पुणे के अध्यक्ष डॉ अनंत भागवत ने Sputnik India के साथ बात करते हुए की।
उन्होंने कहा, "पश्चिमी मुख्यधारा का मीडिया, जो कुछ निहित स्वार्थों से समर्थित है, निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी जैसे मजबूत, मुखर और राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री के विरुद्ध है। मैं यह भी तर्क दूंगा कि पश्चिमी देश आगामी राष्ट्रीय चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की भाजपा के लिए दो-तिहाई बहुमत जैसे मजबूत जनादेश के साथ सहज नहीं होंगे।"
भागवत ने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा, "वे भारत में एक कमजोर प्रधानमंत्री चाहते हैं, जो उनके हितों के अधीन हों।"
विशेषज्ञ ने आगे कहा कि पश्चिमी मीडिया की रणनीति "प्रतिउत्पादक" होगी और इसके बजाय भारतीय जनता की नजर में पश्चिमी मीडिया और पश्चिमी सरकारों की विश्वसनीयता कम हो जाएगी।
भागवत ने कहा, "कई सत्ता केंद्रों वाली गठबंधन सरकार या यहां तक कि कम बहुमत वाली एक कमजोर सरकार पश्चिमी हेरफेर के लिए अधिक उत्तरदायी होगी। अमेरिका इसे स्पष्ट रूप से समझता है।"
हालांकि, उन्होंने टिप्पणी की कि अमेरिका को "भारत के साथ अपने व्यवहार में नए सामान्य" की आदत डालनी होगी।
उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत दृढ़ता से अपने राष्ट्रीय हित को आगे बढ़ाएगा और अमेरिका सहित किसी भी बाहरी दबाव से नहीं डरेगा। अमेरिका और पश्चिमी शक्तियां अभी भी मोदी के नेतृत्व में भारत के उत्थान के साथ पूरी तरह से सहमत नहीं हुई हैं।"
मोदी के दूसरे कार्यकाल का पश्चिम द्वारा कवरेज
2019 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली, जो उनके दूसरे कार्यकाल की शुरुआत थी। जिसके बाद पश्चिमी मीडिया उनके के कुछ प्रमुख निर्णयों की आलोचना करने में सबसे आगे रहा है।
2019 में भारतीय संसद ने भारतीय संविधान के
अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया, जिससे पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर की अर्ध-स्वायत्त स्थिति रद्द हो गई। भारतीय जनता के बड़े वर्ग ने इस निर्णय की सराहना की है। परंतु कश्मीर की घटनाओं पर पश्चिमी मीडिया की कवरेज मोदी के प्रति पक्षपाती बनी हुई है।
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के 2019 में जारी किए गए एक लेख में कहा गया, "क्रोध और भय का एक जीवित नरक।"
रूस के साथ अपने ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंधों को बढ़ाने के भारत के निर्णय ने
पश्चिमी नेताओं को परेशान कर दिया है और इसकी मीडिया में आलोचना हो रही है।
मानवाधिकार को लेकर पश्चिमी मीडिया मोदी को "सत्तावादी" कहने की हद तक चला गया है।
ब्रिटिश पत्रिका द इकोनॉमिस्ट ने पिछले वर्ष कहा था, "अमेरिका और उसके सहयोगी भारत को एक आर्थिक और राजनयिक साझेदार के रूप में विकसित कर रहे हैं। लेकिन इसके प्रधानमंत्री की सत्तावादी प्रवृत्ति को अनदेखा करना कठिन होता जा रहा है।"
पिछले वर्ष , बीबीसी ने 2002 के गुजरात दंगों में मोदी की कथित भूमिका पर एक वृत्तचित्र प्रसारित किया था। भारत ने बीबीसी की इस डाक्यूमेंट्री को
दुष्प्रचार का एक हिस्सा करार देते हुए सिरे से रद्द कर दिया था।
पिछले महीने मोदी ने राम मंदिर के उद्घाटन की अध्यक्षता की, इस प्रकार स्वतंत्रता के बाद से भारतीय राजनीति के सबसे विभाजनकारी मुद्दों में से एक का पटाक्षेप हो गया।
वाशिंगटन पोस्ट अखबार ने इस घटना को "हिंदू वर्चस्व" के रोडमैप के अनावरण के रूप में वर्णित किया, जबकि CNN ने इसे "भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए काला दिन" बताया।
भागवत ने कहा कि भारत के बारे में इस तरह की नकारात्मक कवरेज और तीव्र होगी, क्योंकि नई दिल्ली 2047 तक महाशक्ति बनने के अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रही है।
उन्होंने चेतावनी दी कि चुनाव निकट आने पर भारतीय विपक्ष के कुछ वर्ग पश्चिमी मीडिया के हाथों में खेल सकते हैं।
भागवत ने कहा कि
भारतीय विपक्ष की प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के प्रति द्वेष इस स्तर तक बढ़ गया है कि वे भारत की वैश्विक छवि को कमजोर करने के लिए पश्चिमी एजेंटों के साथ सहयोग कर रहे हैं।
विशेषज्ञ ने कहा, "वे मोदी और भाजपा की चुनावी सफलता और अटूट लोकप्रियता को पचा नहीं पाए हैं। और अब वे ऐसी गतिविधियों का सहारा ले रहे हैं, जिन्हें भारत विरोधी गतिविधियां कहा जा सकता है।"
पश्चिमी मीडिया भारत-पश्चिम संबंधों को कर रहा कमजोर
भाजपा से जुड़े थिंक टैंक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के आंतरिक सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ बिनय कुमार सिंह ने Sputnik India को बताया कि "हमारे सामने भारत के दो दृष्टिकोण थे"।
उन्होंने कहा, "पिछले वर्ष भारतीय आतंकवाद विरोधी एजेंसियों ने प्रतिबंधित आतंकवादी समूह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से '2047 तक भारत को बनाना है इस्लामिक स्टेट' शीर्षक वाला एक दस्तावेज जब्त किया था। इसका उद्देश्य भारत में गृह युद्ध भड़काना और हमारे देश को विघटित करना है। दूसरी ओर, हमारे पास प्रधानमंत्री मोदी द्वारा समर्थित 'विकासित भारत' का दृष्टिकोण है। दुर्भाग्य से, पश्चिमी मीडिया वर्तमान में पहले वाले दृष्टिकोण का समर्थन करता दिख रहा है।"
विशेषज्ञ ने साथ ही पश्चिमी मीडिया पर "नई दिल्ली और पश्चिम के मध्य संबंध खराब करने" का आरोप लगाया।
सिंह ने कहा, "पश्चिमी मीडिया का भारत के प्रति पूर्वाग्रह है, क्योंकि उनका एक एजेंडा है, जो भारत को अभी भी एक उपनिवेश के रूप में देखने की औपनिवेशिक मानसिकता से प्रेरित है। पश्चिमी मीडिया और पश्चिमी सरकारें दो अलग-अलग संस्थाएं हैं, जिनका भारत के प्रति दृष्टिकोण अधिकतर भिन्न और कभी-कभी समान होता है।"