पुतिन ने कहा, "हमें सामूहिक विनाश के हथियारों का इस्तेमाल क्यों करना चाहिए? ऐसी आवश्यकता कभी नहीं रही।" जब पुतिन से पूछा गया कि क्या ऐसा कोई विचार उनके दिमाग में कभी आया था, तो उन्होंने जवाब दिया, "नहीं, इसकी क्या आवश्यकता है?"
पुतिन ने कहा, "सैन्य और तकनीकी दृष्टिकोण से हम निश्चित रूप से युद्ध के लिए तैयार हैं।"
रूसी राष्ट्रपति ने कहा, "वे अब अपनी उन्नति, नवीनता बढ़ाने के कार्य निर्धारित कर रहे हैं, उनके पास तदनुरूप योजना भी है। इसके बारे में हम भी जानते हैं और वे अपने सभी घटकों का विकास कर रहे हैं। और इसीलिए हम भी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे कल इस परमाणु युद्ध को छेड़ने के लिए तैयार हैं। ठीक है, अगर वे चाहते हैं... तो हम भी तैयार हैं।"
रूसी लोगों की एकता के आगे पश्चिमी देश 'शक्तिहीन'
पुतिन ने कहा, "यही वह जगह है जहाँ से युद्ध के मैदान में रूस को रणनीतिक हार देने का नारा आया था। हालांकि, बाद में उन्हें समझ आया कि यह संभव नहीं था, और उसके बाद उनको एहसास हुआ की यह असंभव ही था। और उन्हें उसी शक्तिहीनता का सामना करना पड़ा जिसका अनुभव उन को रुसी लोगी की एकजुटता ने कराया था।"
रूस यूक्रेन पर बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन इच्छाधारी सोच के आधार पर चर्चा नहीं
पुतिन ने कहा, "क्या हम बातचीत के लिए तैयार हैं? हां, हम तैयार हैं, लेकिन हम केवल बातचीत के लिए तैयार हैं, साइकोट्रोपिक दवाओं के उपयोग के बाद उत्पन्न हुई इच्छाओं को पूरा करने के लिए नहीं। बातचीत ज़मीनी हकीकत के आधार पर होगी।"
पुतिन ने कहा, "हालांकि, हम एक गंभीर बातचीत के लिए तैयार हैं, और हम सभी संघर्षों और विशेष रूप से इस संघर्ष को शांतिपूर्ण तरीकों से हल करना चाहते हैं। लेकिन हमें अपने लिए स्पष्ट रूप से समझना चाहिए कि यह कोई विराम नहीं है जिसे दुश्मन दुबारा हथियार इकट्ठा करने के लिए लेना चाहता है, बल्कि यह रूस के लिए सुरक्षा गारंटी के साथ एक गंभीर बातचीत है।"
रूस की पश्चिम को विभाजित करने की कोई योजना नहीं है, वे इसे स्वयं करेंगे
रूसी राष्ट्रपति ने कहा, "मैं यह कहना नहीं चाहता, लेकिन मुझे किसी पर भरोसा नहीं है। हमें गारंटी चाहिए, और गारंटी लिखित में होनी चाहिए, जो हमारे अनुरूप होगी, और वे कुछ ऐसी होनी चाहिए जिन पर हम विश्वास करें।"
पुतिन ने कहा, "बात यह है कि पश्चिमी सैन्यकर्मी कुछ समय से यूक्रेन में मौजूद हैं, वे तख्तापलट से पहले भी मौजूद थे... लेकिन अगर हम विदेशी देशों की आधिकारिक सैन्य दस्तों के बारे में बात कर रहे हैं, तो मुझे यकीन है कि इससे बदलाव नहीं आएगा। युद्ध के मैदान पर स्थिति सबसे महत्वपूर्ण है। और हथियारों की डिलीवरी की तरह कोई भी चीज़ इसे बदल नहीं सकती।"