सिंह ने कहा, "जॉर्ज सोरोस भारत और दुनिया भर में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं। यह अब एक अनावृत रहस्य है। लेकिन उनके सभी प्रयास, चाहे वह किसानों के आंदोलन का समर्थन करना हो या अरविंद केजरीवाल जैसे विपक्षी नेताओं का समर्थन करना हो, वे सभी विफल रहे हैं।"
सिंह ने कहा, "तो सोरोस अपनी धरती के साथ-साथ दुनिया भर में खालिस्तान सक्रियता को बढ़ावा देने के लिए पुरानी अमेरिकी रणनीति का सहारा ले रहा है। इसी समय, आने वाले दिनों में चुनाव के दौरान अमेरिका और पश्चिमी सहयोगी भी जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर अपना हस्तक्षेप बढ़ाने जा रहे हैं।"
'K2' के लिए अमेरिका के समर्थन का इतिहास
सिंह ने कहा, "1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में हार से न केवल पाकिस्तान, बल्कि अमेरिका भी बुरी तरह अपमानित हुआ था। इसके बाद अमेरिका के समर्थन से खालिस्तान आंदोलन ने जोर पकड़ना आरंभ कर दिया, जो 13 वर्ष बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के साथ चरम पर पहुंच गया।"
सिंह ने याद दिलाया कि अमेरिका ने खालिस्तानी कार्यकर्ताओं और कश्मीरी अलगाववादियों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत में शासन परिवर्तन के लिए प्रयासरत अमेरिका
महालिंगम ने कहा, "किसी देश के भीतर गड़बड़ी पैदा करना और आतंकवादी समूहों को अपने प्रतिनिधि के रूप में इस्तेमाल करके देश के नेतृत्व को अपने रास्ते पर चलने के लिए मजबूर करना अमेरिका की विदेश नीति के तरीकों का एक प्रसिद्ध और प्रलेखित इतिहास है। ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका खालिस्तान और कश्मीरियों के साथ सहयोग कर रहा है। असंतुष्ट इन समूहों का उपयोग करके भारत में अशांति और आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देते हैं।"
ब्रिगेडियर ने साथ ही कहा, "लेकिन भारत इतना बड़ा देश है और इसकी जनसंख्या चीन के बाद दूसरे नंबर पर है, इसलिए अमेरिका इस देश को अपने अधीन नहीं कर सकता। यह स्पष्ट कर दें कि मोदी के सत्ता में रहते हुए भारत के लोग ऐसा नहीं होने देंगे।"