- Sputnik भारत, 1920
2024 लोक सभा चुनाव
2024 लोक सभा चुनावों के बारे में गरमा-गरम खबरें प्राप्त करें! उम्मीदवारों, चुनावी अभियानों, ताज़ा अनुमानों से जुड़ी पूरी जानकारी Sputnik से प्राप्त करें!

मोदी पर नियंत्रण के लिए अमेरिका ने खालिस्तानी और कश्मीरी अलगाववादियों के लिए अपना समर्थन दोहराया

© AFP 2023 DON EMMERTKhalistan flags fly as Sikhs for Justice hold a march and rally at the United Nations Headquarters on Indian Independence day, highlighting the human rights abuses of Sikhs in Punjab by Indian Prime Minister Narendra Modi's government August 15, 2019 in New York.
Khalistan flags fly as Sikhs for Justice hold a march and rally at the United Nations Headquarters on Indian Independence day, highlighting the human rights abuses of Sikhs in Punjab by Indian Prime Minister Narendra Modi's government August 15, 2019 in New York. - Sputnik भारत, 1920, 04.04.2024
सब्सक्राइब करें
1970 के दशक से अमेरिका ने भारत के प्रभाव को रोकने और उसे अमेरिकी लाइन के समान बनाने के लिए अपनी 'K2' रणनीति के हिस्से के रूप में कश्मीरी और खालिस्तानी अलगाववादियों के बीच सहयोग को गुप्त रूप से समर्थन और सुविधा प्रदान की है।
इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि अमेरिका ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बढ़ते घरेलू और वैश्विक प्रभाव को रोकने के लिए खालिस्तान समर्थक और कश्मीरी अलगाववादियों के लिए अपना समर्थन पुनः आरंभ कर दिया है, क्योंकि जून में सत्ता में अपना तीसरा कार्यकाल आरंभ करने के लिए वे पूरी तरह तैयार दिख रहे हैं।
भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व अधिकारी कर्नल (सेवानिवृत्त) रवि शेखर नारायण सिंह ने Sputnik India को बताया कि हंगेरियन-ऑस्ट्रियाई अरबपति जॉर्ज सोरोस मोदी सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं।
सिंह ने सोरोस को अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी के सबसे बड़े दानदाताओं में से एक होने के अतिरिक्त अमेरिका के 'डीप स्टेट' की संपत्ति बताया।

सिंह ने कहा, "जॉर्ज सोरोस भारत और दुनिया भर में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं। यह अब एक अनावृत रहस्य है। लेकिन उनके सभी प्रयास, चाहे वह किसानों के आंदोलन का समर्थन करना हो या अरविंद केजरीवाल जैसे विपक्षी नेताओं का समर्थन करना हो, वे सभी विफल रहे हैं।"

साल 2020 में सोरोस ने पीएम के रूप में मोदी के चुनाव को एक "भयावह झटका" बताया और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में "लोकतांत्रिक पुनरुद्धार" की आशा व्यक्त की।
पिछले कुछ हफ्तों में अमेरिकी विदेश विभाग ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के कार्यान्वयन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बारे में चिंता व्यक्त की है, जिससे दोनों अवसरों पर नई दिल्ली से मजबूत राजनयिक प्रतिक्रिया हुई है।
पिछले सप्ताह भारत में अमेरिकी दूतावास द्वारा नई दिल्ली में इफ्तार सभा में कश्मीरी एक्टिविस्ट को आमंत्रित करने पर देशव्यापी प्रतिक्रिया हुई थी।
रविवार को अमेरिका ने कैलिफोर्निया में एक और 'खालिस्तान समर्थक जनमत संग्रह' की अनुमति दी, जो इस वर्ष अमेरिकी धरती पर दूसरा है। साथ ही अमेरिका भारत में आतंकवादी के रूप में नामित अमेरिका स्थित खालिस्तान आंदोलन के नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की षड़यंत्र में संलग्न होने का आरोप लगाकर कथित रूप से अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए भारत पर दबाव बनाना चाहता है।

सिंह ने कहा, "तो सोरोस अपनी धरती के साथ-साथ दुनिया भर में खालिस्तान सक्रियता को बढ़ावा देने के लिए पुरानी अमेरिकी रणनीति का सहारा ले रहा है। इसी समय, आने वाले दिनों में चुनाव के दौरान अमेरिका और पश्चिमी सहयोगी भी जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर अपना हस्तक्षेप बढ़ाने जा रहे हैं।"

'K2' के लिए अमेरिका के समर्थन का इतिहास

अमेरिका स्थित हडसन इंस्टीट्यूट के एक शोध पत्र में बताया गया है कि 2019 के बाद से प्रमुख अमेरिकी और यूरोपीय शहरों में कश्मीरी और खालिस्तान अलगाववादियों द्वारा कम से कम 15 संयुक्त विरोध प्रदर्शन हुए हैं।
'K2' रणनीति की उत्पत्ति के बारे में बताते हुए, सिंह ने बताया कि खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ता और कश्मीरी अलगाववादी हमेशा भारत के मुकाबले अमेरिका के विदेश नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए "संवाहक" रहे हैं।

सिंह ने कहा, "1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में हार से न केवल पाकिस्तान, बल्कि अमेरिका भी बुरी तरह अपमानित हुआ था। इसके बाद अमेरिका के समर्थन से खालिस्तान आंदोलन ने जोर पकड़ना आरंभ कर दिया, जो 13 वर्ष बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के साथ चरम पर पहुंच गया।"

उन्होंने आगे कहा, ''अमेरिका के साथ-साथ पश्चिमी विश्व में भी कई लोग नहीं चाहते कि मोदी जैसा शक्तिशाली प्रधानमंत्री भारत का नेतृत्व करे। इंदिरा गांधी (खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों की गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए 1984 में उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या) के मामले में भी ऐसा ही था।"
सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के कुछ गुटों ने भी अमेरिकी विदेश नीति के "संवाहक" के रूप में काम किया है।
उन्होंने 1960 के दशक से सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) और पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के मध्य "घनिष्ठ संबंधों" पर प्रकाश डाला।
सिंह ने कहा, "आज भी, अमेरिका अपने भू-राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए पाकिस्तानी सेना पर अपना दबदबा बनाए रखने का इच्छुक है।"

सिंह ने याद दिलाया कि अमेरिका ने खालिस्तानी कार्यकर्ताओं और कश्मीरी अलगाववादियों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

दरअसल, 1985 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अमेरिका की अपनी यात्रा रद्द कर दी थी क्योंकि संघीय जांच ब्यूरो (FBI) ने अमेरिका स्थित खालिस्तान गुर्गों द्वारा उनके विरुद्ध हत्या की साजिश को विफल कर दिया था।
जैसा कि सूचना युद्ध के क्षेत्र में काम करने वाली एक डिजिटल फर्म डिसइन्फो लैब द्वारा प्रलेखित किया गया है, साजिश के पीछे के हत्यारों को अमेरिका में एक एफबीआई "मुखबिर" द्वारा प्रशिक्षित किया गया था।

भारत में शासन परिवर्तन के लिए प्रयासरत अमेरिका

सेना के अनुभवी ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) वी महालिंगम, जिन्होंने भारत के विशिष्ट आतंकवाद विरोधी बल राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) में कमांडर के रूप में कार्य किया है, ने Sputnik India को बताया कि खालिस्तान समर्थक और कश्मीरी एक्टिविस्ट के लिए अमेरिका के समर्थन का मतलब भारत में "शासन परिवर्तन" को प्रभावित करना हो सकता है।

महालिंगम ने कहा, "किसी देश के भीतर गड़बड़ी पैदा करना और आतंकवादी समूहों को अपने प्रतिनिधि के रूप में इस्तेमाल करके देश के नेतृत्व को अपने रास्ते पर चलने के लिए मजबूर करना अमेरिका की विदेश नीति के तरीकों का एक प्रसिद्ध और प्रलेखित इतिहास है। ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका खालिस्तान और कश्मीरियों के साथ सहयोग कर रहा है। असंतुष्ट इन समूहों का उपयोग करके भारत में अशांति और आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देते हैं।"

उन्होंने कहा कि हाल के सप्ताहों में अमेरिका की सभी कार्रवाइयां भारत को वश में करने की इच्छा का संकेत देती हैं ताकि वह चीन और रूस पर अपनी पकड़ बना सके।

ब्रिगेडियर ने साथ ही कहा, "लेकिन भारत इतना बड़ा देश है और इसकी जनसंख्या चीन के बाद दूसरे नंबर पर है, इसलिए अमेरिका इस देश को अपने अधीन नहीं कर सकता। यह स्पष्ट कर दें कि मोदी के सत्ता में रहते हुए भारत के लोग ऐसा नहीं होने देंगे।"

Indian Prime Minister Narendra Modi addresses party supporters, standing next to his Bharatiya Janata Party (BJP) President Amit Shah at their headquarters in New Delhi, India, Thursday, May 23, 2019.  - Sputnik भारत, 1920, 17.02.2024
राजनीति
आगामी चुनाव में मोदी को मिले मजबूत जनादेश से अमेरिका असहज
न्यूज़ फ़ीड
0
loader
चैट्स
Заголовок открываемого материала