वायुसेना के एक चिनूक हेलीकॉप्टर ने पुष्पक को कर्नाटक के चित्रदुर्ग की टेस्ट रेंज में ज़मीन के 4.5 किमी ऊपर छोड़ा। पुष्पक ने खुद ही लैंडिंग की दूरी तय की, रनवे का रास्ता तलाश किया और रनवे के बीच में सफल लैंडिंग की।
लैंडिंग के समय पुष्पक की रफ्तार 320 किमी प्रति घंटे की थी जिसे उसने ब्रेक पैराशूट का इस्तेमाल करके 100 किमी तक घटाया। इसके बाद लैंडिंग गियर के ब्रेक का इस्तेमाल करके उसने खुद को रोक लिया।
पुष्पक ने पिछली लैंडिंग 22 मार्च को की थी लेकिन इसबार हवाएं तेज़ चल रहीं थीं इसलिए लैंडिंग ज्यादा मुश्किल थी। इसरो ने अपनी विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि इस लैंडिंग से अंतरिक्ष जाकर वापस आने वाले लॉन्च ह्वीकल्स को बनाने की क्षमता ज्यादा मज़बूत हुई है।
इस लैंडिंग में बहुत तेज़ रफ्तार से लैंडिंग, रनवे तक पहुंचने जैसी जटिल तकनीक में महारत होने की ज़रूरत थी जिन्हें पुष्पक ने सफलतापूर्वक किया। इस लैंडिंग से आरएलवी यानि अंतरिक्ष से सुरक्षित वापस लाकर दोबारा वापस जाने वाले ह्वीकल्स बनाने की इसरो की क़ाबिलियत का पता चलता है।