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अमेरिकी राजदूत का भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की अवधारणा को विफल करने का लचर प्रयास

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सप्ताह की शुरुआत में रूस की यात्रा की और मास्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से गर्मजोशी से मुलाकात की। दोनों नेता जिस अंदाज़ में मिले, उसे देख अमेरिका सहित पश्चिमी देशों में निराशा के बादल छा गए।
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अब इसी कड़ी में नई दिल्ली में अमेरिकी दूत एरिक गार्सेटी ने भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की अवधारणा को विफल करने का कुत्सित लचर प्रयास करते हुए कहा कि "भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को पसंद करता है, लेकिन संघर्ष के समय में रणनीतिक स्वायत्तता जैसी कोई चीज़ नहीं होती।"
गार्सेटी ने कहा, "संकट के समय हमें एक-दूसरे को जानने की ज़रूरत होगी। मुझे परवाह नहीं है कि हम इसे क्या नाम देते हैं, हम एक-दूसरे के उपकरणों, प्रशिक्षण, प्रणालियों और हम एक-दूसरे को इंसान के तौर पर भी जानेंगे।"
हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब अमेरिका ने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति पर अपनी लाइन के अनुसार दबाव बनाने का असफल प्रयास किया हो, इससे पहले भी ऐसी नापाक हरकतें की गई हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने अपने कार्यकाल में राष्ट्र को सर्वोपरि रखने की नीति को बनाए रखा है और समय-समय पर भारत ने पश्चिमी हस्तक्षेप की नीति की मुखर रूप में निंदा की है।
दरअसल संयुक्त राज्य अमेरिका 2001 में अफगानिस्तान पर आक्रमण करने के बाद से लगातार युद्ध लड़ रहा है। अमेरिका स्वतंत्रता के बाद से लगभग हर वर्ष युद्ध में शामिल रहा है या अन्य देशों पर आक्रमण करता रहा है।

यूक्रेन को हथियारों की लगातार आपूर्ति कर अमेरिका एक ऐसे विश्व युद्ध से बस एक कदम दूर है जिसे वह हार सकता है। अमेरिका जिस तरह से यूक्रेन संकट को बढ़ावा दे रहा है वह कभी भी वैश्विक युद्ध में बदल सकता है। लेकिन अमेरिका की रूस को एक निर्णायक पराजय और अलग-थलग करने की रणनीति दिन-प्रतिदिन विफल हो रही है।

एक रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन में रूस द्वारा विशेष सैन्य अभियान की शुरूआत के बाद से अमेरिका ने लगभग 53.7 बिलियन डॉलर की सैन्य सहायता प्रदान की है।
हाल ही में ऑनलाइन लीक हुई कई तस्वीरें, जिनमें से अधिकांश गोपनीय अमेरिकी सैन्य और खुफिया आकलनों से युक्त हैं, दर्शाती हैं कि अमेरिका यूक्रेन संकट के लगभग हर पहलू में बहुत गहराई से शामिल है और रूस के खिलाफ यूक्रेन को जरिया बनाकर प्रॉक्सी युद्ध में शामिल है।
यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की नीति के कुछ घरेलू आलोचक खुले तौर पर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बयानों को दोहराते हैं कि पश्चिम का लक्ष्य रूस को नष्ट करना है।
दुर्भाग्य से, हित समूह की राजनीति ने लंबे समय से अमेरिकी विदेश नीति को भ्रष्ट कर दिया है, जिसमें दूसरे देशों के हितों को नुकसान पहुंचाने को प्राथमिकता दी गई है।
शीत युद्ध से बच निकलने के बाद, वाशिंगटन उन मुद्दों पर रूस से भिड़ने का मूर्खतापूर्ण जोखिम उठा रहा है, जिन्हें रूस महत्वपूर्ण मानता है, लेकिन जो अमेरिकियों के लिए महत्व के नहीं हैं।
ऐसा नहीं है कि अमेरिका सिर्फ विदेश नीति में दखल देने की कोशिश करता है, बल्कि उस पर भारत के खिलाफ आतंकवादियों की मदद करने का भी आरोप लगाया गया है। इसी वर्ष मार्च महीने में सिलिकॉन वैली में प्रतिष्ठित भारतीय-अमेरिकियों के एक समूह ने न्याय विभाग, एफबीआई और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक विशेष बैठक की और बताया कि अमेरिकी धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया जा रहा है।
अमेरिका पर दशकों से भारत को अस्थिर करने का आरोप लगता रहा है और भारत के पड़ोसी देश के जरिए आतंकवाद को पनाह दिए जाने की बात भी विशेषज्ञ करते रहे हैं।
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