डिफेंस
भारतीय सेना, इसके देशी और विदेशी भागीदारों और प्रतिद्वन्द्वियों की गरमा गरम खबरें।

जम्मू में सेना की आतंकवादियों से फिर मुठभेड़

जम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में एक कैप्टन सहित सेना के 4 सैनिकों को वीरगति मिली। जम्मू-कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के एक सिपाही की भी मृत्यु हो गई।
Sputnik
आतंकवादियों के बारे में खुफ़िया सूचना मिलने पर 15 जुलाई की शाम से डोडा ज़िला मुख्यालय से लगभग 55 किमी दूर डेसा के जंगलों में आतंवादियों का तलाशी अभियान शुरू हुआ था।
जंगल में सेना के आतंकवाद विरोधी संगठन राष्ट्रीय राइफल्स और जम्मू-कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने मिलकर CORDON AND SEARCH OPERATION( CASO) शुरू किया। रात 9 बजे आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हुई जिसमें कई सैनिक घायल हो गए थे।

सेना के सूत्रों ने Sputnik भारत को बताया कि एक कैप्टन सहित चार सैनिकों की बाद में मृत्यु हो गई। जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक जवान की भी इलाज़ के दौरान मृत्यु हो गई। अंतिम समाचार मिलने तक जंगलों में आतंकवादियों की तलाश जारी है और इलाक़े में अतिरिक्त सुरक्षा बल भेज दिए गए हैं।

केवल एक हफ्ते में जम्मू में सेना पर यह दूसरा बड़ा हमला है जिसमें अब तक कुल 10 सैनिकों की मृत्यु हो चुकी है। भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने सेना की ओर से मुठभेड़ में वीरगति पाने वाले कैप्टन ब्रिजेश थापा, नायक डी राजेश, सिपाही बिजेन्द्र और सिपाही अजय को श्रद्धांजलि दी है। डोडा इलाक़े में भारतीय सेना के आतंकवाद विरोधी संगठन राष्ट्रीय राइफल्स की डेल्टा फोर्स तैनात रहती है।
डेल्टा फोर्स के उप प्रमुख रहे ब्रिगेडियर संदीप थापर( सेवानिवृत्त) ने Sputnik भारत को बताया कि यहां आतंकवादियों की हरक़तें बढ़ना पंजाब, हिमाचल जैसे पड़ोसी राज्यों के लिए भी खतरनाक है।

उन्होंने कहा, "नियंत्रण रेखा के पास छोटी पहाड़ियां है जो धीरे-धीरे ऊपर उठती जाती हैं। डोडा के इलाक़े में ये पहाड़ 12 से 16 हज़ार फीट तक हैं जो बर्फीला और घने जंगलों का इलाक़ा है। यहां घुमक्कड़ पशुपालक गुज्जर-बकरवालों के अलावा बहुत कम आबादी है। आतंकवादियों के लिए यहां छिपना और निकलकर हमले करना आसान है।"

1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत में जम्मू के इन्ही पहाड़ी इलाक़ों में आतंकवादियों ने अपने बड़े ठिकाने बना लिए थे। इनसे निबटने के लिए भारतीय सेना ने 2003 में सीमावर्ती पुंछ-सुरनकोट के पहाड़ों में ऑपरेशन सर्प विनाश चलाया था। यहां आतंकवादियों ने लगभग 150 वर्ग किमी के इलाक़े में अपने अड्डे बना रखे थे जिनमें बंकरों के अलावा घायलों के इलाज़ की भी सुविधा थी। इसे जम्मू-कश्मीर में लगभग तीन दशक से चल रहे आतंकवाद के खिलाफ़ सबसे बड़ी कार्रवाई माना गया था जिसमें 64 आतंकवादी मारे गए थे। इसके बाद के समय में जम्मू में आतंकवाद बहुत कम हो गया था। ब्रिगेडियर थापर ने बताया कि 2016-17 में पूरे डोडा इलाक़े में केवल 2 आतंकवादी बचे थे और वे भी निष्क्रिय थे।

"लेकिन अब आतंकवादी कश्मीर के बजाय जम्मू को निशाना बना रहे हैं। साफ़ है कि कश्मीर में आतंकवादी सुरक्षा बलों का दबाव महसूस कर रहे हैं इसलिए जम्मू इलाक़े के पहाड़ों को ठिकाना बना रहे हैं," ब्रिगेडियर थापर ने कहा।

हालांकि उनका ये भी मानना है कि बहुत जल्द सुरक्षा बल इस इलाक़े में अपनी ज़मीनी पकड़ दोबारा हासिल कर लेंगे।
सेना के सूत्रों के मुताबिक जम्मू के इलाक़े में 3 से 5 आतंकवादियों के 4-5 गिरोह सक्रिय हैं। सेना घने जंगलों और पहाड़ों में छिपे आतंकवादियों का ठिकानों का पता लगाने के लिए कम्यूनिकेशन मैपिंग का सहारा ले रही है। इसके ज़रिए आतंकवादियों की रेडियो सेट्स पर बातचीत को ट्रैक कर उनके ठिकानों की सटीक जानकारी मिल सकती है।
हालांकि सेना को मिली जानकारी के मुताबिक आतंकवादी आपस में संपर्क के लिए अत्याधुनिक अल्ट्रा सेट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं जिन्हें ट्रैक करना मुश्किल हो रहा है।
डिफेंस
पाकिस्तान में आतंकी हमले में सुरक्षा बलों के 3 सैनिकों की हुई मौत, 54 सैनिक घायल
विचार-विमर्श करें