रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने Sputnik India को बताया है कि इनमें से केवल 1 जहाज़ रूस में बनाया जा रहा है शेष सभी का निर्माण भारत में ही किया जा रहा है।
इनमें से सबसे बड़ा विशाखापट्टनम क्लास का चौथा और अंतिम गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर सूरत है जिसके दिसंबर में नौसेना में शामिल होने की संभावना है। 7400 टन वज़नी यह डिस्ट्रॉयर लंबी दूरी तक मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस है जो इसकी मुख्य संहारक शक्ति है।
इसमें हवाई हमले से सुरक्षा करने के लिए 32 बराक मिसाइलें लगी हैं, दुश्मन की सबमरीन से निबटने के लिए रॉकेट्स और टॉरपीडो लगे हैं। इसमें दो हेलीकॉप्टर तैनात किए जा सकते हैं। यह सबसे अच्छे संचार साधनों और रडार से लैस है। इसमें 300 नौसैनिकों के साथ 45 दिन तक समुद्र में रहने की क्षमता है और यह एक बार में 15000 किमी की यात्रा कर सकता है।
दूसरा बड़ा युद्धपोत नीलगिरि श्रेणी का पहला निर्देशित मिसाइल फ्रिगेट नीलगिरि है जिसका वज़न 6670 टन है। इसमें लंबी दूरी तक मार करने वाली 8 ब्रह्मोस मिसाइलें लगी हैं जिनका प्रयोग दुश्मन के जहाज़ या ज़मीनी ठिकानों के विरुद्ध किया जा सकता है।
हवाई हमले से सुरक्षा के लिए 100 किमी तक मार करने वाली बराक मिसाइलों के साथ-साथ दुश्मन की सबमरीन के लिए रॉकेट और टॉरपीडो लगाए गए हैं। इसमें भी अत्याधुनिक संचार साधन और रडार लगे हैं। यह 226 नौसैनिकों के साथ 10000 किमी तक जा सकता है। यह भी दिसंबर तक नौसेना में शामिल हो सकता है।
रूस में बन रहा तलवार श्रेणी का पहला गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट तुशील (तीसरा बैच) अगले एक से दो महीने में भारतीय नौसेना में शामिल हो जाएगा। इसका वज़न 3600 टन से अधिक है और यह 180 नौसैनिकों को ले जा सकता है और समुद्र में 9000 किलोमीटर तक की यात्रा कर सकता है। यह ज़मीन या दुश्मन के जहाज़ों पर हमला करने के लिए ब्रह्मोस मिसाइलों से भी लैस है।
कलवरी क्लास की 6वीं और अंतिम सबमरीन वागशीर के भी नवंबर में नौसेना में शामिल होने की संभावना है। कलवरी क्लास की सबमरीन भारतीय नौसेना की सबसे आधुनिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक समबरीन हैं। यह 43 नौसैनिकों के साथ 50 दिनों तक समुद्र में रह सकती है और 12000 किमी तक की यात्रा कर सकती हैं। इसमें दुश्मन की सबमरीन या युद्धपोतों पर हमला करने के लिए टॉरपीडो लगे हैं और यह इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर के बेहतरीन उपकरणों से लैस है।
दुश्मन की सबमरीन का शिकार करने के लिए बनाए जा रहे माहे क्लास के एंटी सबमरीन युद्धपोतों में पहला पोत नवंबर में नौसेना में शामिल होगा। यह समुद्र तट के पास कम गहरे पानी में सबमरीन का पता लगाने और उन्हें ध्वस्त करने के लिए बनाया गया है। 700 से 900 टन वज़नी ये जहाज़ 57 नौसैनिकों का क्रू ले जा सकते हैं, इनमें आधुनिक सोनार सिस्टम लगाए गए हैं।
समुद्र के अंदर अन्वेषण करने वाले संध्यायक क्लास बड़े सर्वेक्षण पोत का दूसरा पोत निर्देशक नवंबर या दिसंबर में नौसेना में शामिल होगा जिसका वज़न 3300 टन है। इसके अलावा समुद्र में संकटग्रस्त सबमरीन की सहायता के लिए बनाया जा रहा पहला निस्तार क्लास का डाइविंग सपोर्ट वेसेल और तटों के पास गोताखोरी में सहायता के लिए बनाया जा रहा डाइविंग सपोर्ट क्राफ्ट इस साल के अंत तक नौसेना में शामिल हो जाएगा।