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रूस और भारत मिलकर क्या ओरेश्निक मिसाइल विकसित कर सकते हैं? जानें विशेषज्ञ की राय

भारत युद्ध क्षेत्र में रूस और यूक्रेन और नाटो की गतिविधियों पर भी बारीकी से नज़र रख रहा है। DRDO और ISRO के समान मिसाइल विकसित करने में सक्षम होने के कारण भारत रूस के साथ एक और संयुक्त उद्यम स्थापित करने की संभावना पर विचार कर सकता है।
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Sputnik इंडिया ने भारतीय सैन्य विशेषज्ञ ग्रुप कैप्टन (सेवानिवृत्त) उत्तम कुमार देवनाथ से जानने का प्रयास किया कि रूस की नवीनतम ओरेश्निक मिसाइल के विकास को भारत द्वारा किस तरह लिया जाना चाहिए और क्या इस मिसाइल को देश में बनाने पर विचार होना चाहिए।
रूसी रक्षा मंत्रालय ने हाल के दिनों में पुष्टि की कि रूस ने युद्ध की स्थिति में पहली बार ओरेश्निक मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल का सफलतापूर्वक प्रयोग करके द्नेप्रोपेट्रोव्स्क में यूक्रेनी रक्षा उद्योग सुविधा को भेदते हुए ध्वस्त कर दिया और अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त किया।
इस मिसाइल ने द्नेप्रोपेट्रोव्स्क के रक्षा उद्योग की सुविधा में छह लक्ष्यों को निशाना बनाया। हालांकि यह देखने में परमाणु वारहेड द्वारा हमला जैसा लग रहा था, विनाश स्थल पर कोई विकिरण नहीं पाया गया, जिससे अंततः पुष्टि हुई कि रूस ने यूक्रेन के वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की की सेना पर एक पारंपरिक IRBM दागा था।
इस घातक मिसाइल के इस्तेमाल से इसकी महत्ता के बारे में पता चलने के बाद कई देश इसे अपने हथियारों के जखीरे में शामिल करना चाहते हैं। भारतीय विशेषज्ञ के अनुसार नई दिल्ली और मास्को भविष्य में इसको साथ मिलकर विकसित करने पर काम कर सकते हैं। इससे पहले भी ब्रह्मोस जैसी घातक मिसाइल का विकास दोनों देश मिलकर कर चुके हैं जिसका अब बड़े स्तर पर निर्यात भी किया जा रहा है।

देवनाथ ने बताया, "अगर हम विशेष रूप से यूक्रेन की वायु रक्षा के बारे में बात करते हैं, तो वे ऐसी मिसाइल से निपटने में सक्षम नहीं हैं। भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान ने ओरेश्निक पर ध्यान दिया होगा, क्योंकि नई दिल्ली यूक्रेन संघर्ष क्षेत्र में रूस नाटो दोनों की प्रतिक्रियाओं पर बारीकी से नज़र रख रही है। इस मिसाइल के प्रयोग के अगले दिन ही भारत की रणनीतिक कमान ने साउथ ब्लॉक में एक बैठक की और ओरेश्निक मिसाइल पर अपने विचारों का आदान-प्रदान किया।"

इस मिसाइल की कार्यप्रणाली के बारे में बात करते हुए सैन्य विशेषज्ञ ने कहा कि दुनिया की किसी भी वायु रक्षा प्रणाली के लिए ऐसी शानदार गति से यात्रा करने वाली मिसाइल को रोकना असंभव है। यह केवल एक हाइपरसोनिक मिसाइल नहीं है, यह एक उच्च-स्तरीय हाइपरसोनिक मिसाइल है, जिसका पता लगा पाना इस ग्रह पर मौजूदा वायु रक्षा प्लेटफार्मों द्वारा संभव नहीं है।

ग्रुप कैप्टन (सेवानिवृत्त) उत्तम कुमार ने कहा, "रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि यह एक बिल्कुल नया रूसी हथियार है। लॉन्च होने के बाद यह अपने अंतिम चरण में छह वारहेड्स छोड़ता है, लेकिन ओरेशनिक को अन्य हथियारों से अलग करने वाली बात इसकी मैक 10 की असाधारण गति है, जो ध्वनि की गति से 10 गुना अधिक है।"

ओरेश्निक की घातक क्षमता को देखते हुए भारत द्वारा इसे हासिल करने या अपना खुद का संस्करण बनाने पर उत्तम कुमार ने कहा कि युद्ध के मैदान में ओरेश्निक से होने वाले नुकसान और इसकी ट्रेसेबिलिटी से जुड़े "असंभव" कारक को देखते हुए भारतीय सशस्त्र बल निकटम भविष्य में निश्चित रूप से इस तरह की हथियार प्रणाली को हासिल करने के लिए उत्सुक होंगे।

उन्होंने अपने शब्दों को विराम देते हुए अंत में बताया, "इसे स्वदेशी विकास के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के साथ या रूस के साथ संयुक्त उद्यम के अंतर्गत ओरेश्निक के समान मिसाइल विकसित करने में यह संस्थान अति सक्षम हैं। अतीत में रूस ने भारत के साथ अनेकों महत्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकी अनुबंध सहजतापूर्वक हस्तांतरित किए हैं और ओरेशनिक के मामले में भी, यह विचार अलग नहीं होना चाहिए।"

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