भारतीय रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी Request for Information (RFI) के मुताबिक ऐसे 75 सिस्टम खरीदे जाएंगे। इन्हें भारतीय सेना के मौजूदा T-72 और T-90 टैंकों में लगाया जाएगा।
यह सिस्टम First person View (FPV) ड्रोन, झुंड में हमला करने वाले यानी Swarm drones, लॉइटरिंग म्यूनिशन, आत्मघाती यानी कामिकेज़ ड्रोन का एक्टिव और पैसिव दोनों तरह से पता लगाएगा।
इस सिस्टम के लगने के बाद भी टैंकों को पूरी तरह सीलबंद करने की क्षमता में कोई कमी नहीं आएगी और वह पहले की तरह परमाणु, जैविक या रासायनिक हमले से सुरक्षित रहेगा। यह सिस्टम भारत के हर तरह के वातावरण यानी रेगिस्तान की गर्मी और ऊंचे पहाड़ों की सर्दी में काम कर सकेगा।
पिछले कुछ सालों में युद्ध में UAS का प्रयोग बहुत तेज़ी से बढ़ा है। खासतौर पर टैंकों के लिए यह बड़ा खतरा बनकर सामने आए हैं। ये सस्ते हैं और इन्हें छिपकर आसानी से प्रयोग किया जा सकता है।
टैंकों में सामने और अगल-बगल मज़बूत कवच होता है जो उसे किसी भी प्रहार से सुरक्षा देता है। लेकिन 90 डिग्री के कोण पर ऊपर से किया गया हमला या पीछे से किया गया UAS का वार टैंकों के लिए घातक सिद्ध होता है।
भारतीय सेना अपनी सुरक्षा के लिए टैंकों पर बहुत ज्यादा निर्भर है इसलिए वह अपने टैंकों को अभेद्य बनाना चाहती है।