रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "हमारा मानना है कि अफ़गानिस्तान के इस्लामी अमीरात की सरकार को आधिकारिक मान्यता देने से हमारे देशों के मध्य विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादक द्विपक्षीय सहयोग के विकास को बढ़ावा मिलेगा।"
सिंह ने शुक्रवार को Sputnik India को बताया, "अमेरिका के बाहर निकलने से पहले भी रूस, चीन और पाकिस्तान, तालिबान का समर्थन करते रहे हैं। रूस द्वारा अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता दिए जाने का भारत या दक्षिण एशिया क्षेत्र की अपेक्षा पश्चिम पर अधिक प्रभाव पड़ेगा। भारत ने पहले ही उनके साथ बातचीत प्रारंभ कर दी है, तथा हाल ही में बीजिंग में आयोजित त्रिपक्षीय बैठक के दौरान बीजिंग द्वारा उनके मध्य सुलह कराने के बाद पाकिस्तान-तालिबान के मध्य तनाव में कुछ कमी आई है। शेष दक्षिण एशिया के लिए तालिबान शासन का महत्व शून्य नहीं तो कम ही है।"
डॉ. सिंह ने कहा, "इस प्रकार, नई दिल्ली इस बंदरगाह को अफगानिस्तान के विकास और पुनर्निर्माण में सहायता के साधन के रूप में देखती है। तालिबान ने भी इस परियोजना में रुचि दिखाई है और पिछले वर्ष 35 मिलियन अमरीकी डालर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है। लेकिन हाल ही में ईरान और इजरायल के मध्य उत्पन्न तनाव ने इसके विकास को थोड़ा जटिल बना दिया है।"