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विशेषज्ञ से समझें भारत के चंद्रयान-3 मिशन की बारीकियां
विशेषज्ञ से समझें भारत के चंद्रयान-3 मिशन की बारीकियां
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का चंद्रमा के लिए तीसरा मिशन चंद्रयान -3 इस महीने की 14 तारीख को दोपहर 2:35 बजे भारत में आंध्र प्रदेश राज्य के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से लॉन्च किया जाएगा।
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का चंद्रमा के लिए तीसरा मिशन चंद्रयान -3 इस महीने की 14 तारीख को दोपहर 2:35 बजे भारत में आंध्र प्रदेश राज्य के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से लॉन्च किया जाएगा। भारत के सबसे महत्वाकांक्षी मिशनों में से एक मिशन चंद्रयान-3 के लिए करीब सारी तैयारी पूरी कर ली गई हैं, और अब बस इंतजार है 14 जुलाई का जब यह मिशन अपने तय समय से धरती से उड़ेगा और चंद्रमा की ओर अपना सफर शुरू करेगा। ISRO ने कहा कि चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और रोवर के सतह पर चलने की क्षमता प्रदर्शित करने के लिए चंद्रयान-2 के बाद जाने वाला अगला मिशन है। यह मिशन क्या है और इसमें क्या चुनौतियां हैं ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने के लिए Sputnik ने बात की भारत सरकार के अंतर्गत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक डॉ टी वी वेंकटेश्वरन से।उन्होंने चंद्रयान के बारे में बताया कि भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO ने चंद्रयान मिशन की शुरुआत 2008 में की थी। 15 साल बाद 14 जुलाई को चंद्रयान-3 मिशन अंतरिक्ष के लिए रवाना होगा जो भारत के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।चंद्रयान मिशन क्या है?डॉ टी वी वेंकटेश्वरन ने बताया कि चंद्रयान एक डीप स्पेस मिशन है जिसकी कल्पना ISRO ने चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के साथ चंद्रमा की सतह पर विभिन्न प्रयोग करने के लिए की थी। इसकी शुरुआत आज से 15 साल पहले हुई थी। जब इस अभियान के अन्तर्गत एक मानवरहित यान को 22 अक्टूबर, 2008 को चन्द्रमा पर भेजा गया, अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत चंद्रमा की तरफ भेजा जाने वाला चंद्रयान भारत का पहला अंतरिक्ष यान था। चंद्रयान ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब (MIP) 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा, जिससे भारत चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला चौथा देश बन गया। चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 के बीच क्या फ़र्क है? चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान ISRO द्वारा नियोजित तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन है जिसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और रोवर की पूरी क्षमता का प्रदर्शन करना है। यह चंद्रयान-2 मिशन के बाद का मिशन है। चंद्रयान-2 के दौरान विक्रम लैंडर की असफल लैंडिंग के बाद चंद्रयान-3 की आवश्यकता पड़ी। यह नया मिशन 2024 में प्रस्तावित चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन के लिए आवश्यक लैंडिंग कौशल को प्रदर्शित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। विज्ञान प्रसार के डॉ टी वी वेंकटेश्वरन ने आगे बताया कि चंद्रयान-1 एक बहुत ही सरल मिशन था। इसमें एक अंतरिक्ष यान भेजा जाता है जो चंद्रमा के पास पहुंचता है, और फिर यह एक उपग्रह की तरह चंद्रमा के चारों ओर घूमता है। सॉफ्ट लैंडिंग में समस्या क्यों है? सॉफ्ट लैंडिंग शब्द आप अक्सर चंद्रयान मिशन में सुनते हैं, तो मान लीजिए कि एक हवाई जहाज आकाश में है और फिर जब यह उतरता है तो यह धीरे से जमीन पर उतरता है इसे सॉफ्ट लैंडिंग कहते हैं। वहीं चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है, आप पैराशूट का उपयोग नहीं कर सकते क्योंकि वहां हवा नहीं है इसलिए तकनीक के जरिए अंतरिक्ष यान के चंद्रमा पर गिरने से पहले इसकी रफ्तार को धीमा किया जाता है।चंद्रयान जब नीचे गिर रहा होगा तब रॉकेट के जरिए इसे थ्रस्ट दिया जाता है और फिर यह ऊपर की ओर जाने वाली परस्पर क्रिया करता है और इसके जरिए यह धीरे-धीरे गिरता है। "ये सब बहुत बड़ी तकनीकी चुनौतियां हैं और यह सब आप पृथ्वी से नियंत्रित नहीं कर सकते क्योंकि पृथ्वी से चंद्रमा तक सिग्नल जाने में बहुत समय लगता है। यह बहुत दूर है, भले ही यह प्रकाश की गति से यात्रा करे, इसमें 1.2 सेकंड से अधिक समय लगेगा। तो यह अधिक समय है, लैंडिंग के दृष्टिकोण से, आपको चीजों को एक सेकंड में तय करना चाहिए, यही कारण है कि लैंडर कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोट संचालित स्वायत्त नेविगेशन प्रणाली से सक्षम है। चंद्रयान-3 कब तक पहुंचेगा चंद्रमा पर LVM3-M4/चंद्रयान-3 नामित यह मिशन LVM3 रॉकेट द्वारा पूरा किया जाएगा। 3,900 किलोग्राम वजनी अंतरिक्ष यान LVM3 रॉकेट की कुल वहन क्षमता से थोड़ा कम होगा। इसमें 2,148 किलोग्राम वजनी एक ऑर्बिटर (या प्रोपल्शन मॉड्यूल), विक्रम नामक एक लैंडर और प्रज्ञान नामक एक रोवर शामिल है। चंद्रयान-3 का प्राथमिक उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर लैंडर को सफलतापूर्वक उतारना है, इसके बाद वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए रोवर की तैनाती करना है।चंद्रयान -2 मिशन को 2019 में चंद्रमा पर उतरने का प्रयास किया था, जिसे चंद्रमा तक पहुंचने में लगभग 48 दिन लगे, अगर प्रौद्योगिकी विभाग में विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक डॉ टी वी वेंकटेश्वरन की मानें तो अगर सब कुछ सही रहा तो चंद्रयान--3 42 दिनों में चंद्रमा तक पहुँच जाएगा। आखिर में वैज्ञानिक वेंकटेश्वरन ने बताया कि चंद्रमा पर उतरना कोई बहुत सरल बात नहीं है, यह वास्तव में बहुत, बहुत जटिल है। मंगल पर उतरना चंद्रमा पर उतरने से कम चुनौतीपूर्ण होगा, मंगल पर जाना कठिन होगा लेकिन मंगल पर उतरना आसान क्योंकि वहां वायुमंडल है और आप पैराशूट का उपयोग कर सकते हैं इसलिए मंगल पर चंद्रमा पर उतरने की तुलना में कम चुनौतीपूर्ण है।
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विशेषज्ञ से समझें भारत के चंद्रयान-3 मिशन की बारीकियां
17:48 09.07.2023 (अपडेटेड: 18:00 09.07.2023) चंद्रयान-2 के विपरीत, यह ऑर्बिटर अनुसंधान पेलोड से सुसज्जित नहीं होगा। चंद्रयान-3 अंतरग्रहीय मिशनों के लिए नई तकनीक विकसित करने का मिशन है। इसमें एक लैंडर मॉड्यूल, एक प्रोपल्शन मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का चंद्रमा के लिए तीसरा मिशन चंद्रयान -3 इस महीने की 14 तारीख को दोपहर 2:35 बजे भारत में आंध्र प्रदेश राज्य के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से लॉन्च किया जाएगा।
"LVM3-M4/चंद्रयान-3 मिशन लॉन्च अब 14 जुलाई, 2023 को दोपहर 2:35 बजे SDSC, श्रीहरिकोटा से निर्धारित किया गया है," लॉन्च की घोषणा करते हुए ISRO ने कहा।
भारत के सबसे महत्वाकांक्षी मिशनों में से एक
मिशन चंद्रयान-3 के लिए करीब सारी तैयारी पूरी कर ली गई हैं, और अब बस इंतजार है 14 जुलाई का जब यह मिशन अपने तय समय से धरती से उड़ेगा और चंद्रमा की ओर अपना सफर शुरू करेगा।
ISRO ने कहा कि चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और रोवर के सतह पर चलने की क्षमता प्रदर्शित करने के लिए चंद्रयान-2 के बाद जाने वाला अगला मिशन है।
यह मिशन क्या है और इसमें क्या चुनौतियां हैं ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने के लिए Sputnik ने बात की भारत सरकार के अंतर्गत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक डॉ टी वी वेंकटेश्वरन से।
उन्होंने चंद्रयान के बारे में बताया कि
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO ने चंद्रयान मिशन की शुरुआत 2008 में की थी। 15 साल बाद 14 जुलाई को चंद्रयान-3 मिशन अंतरिक्ष के लिए रवाना होगा जो भारत के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।
डॉ टी वी वेंकटेश्वरन ने बताया कि चंद्रयान एक डीप स्पेस मिशन है जिसकी कल्पना ISRO ने चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के साथ चंद्रमा की सतह पर विभिन्न प्रयोग करने के लिए की थी। इसकी शुरुआत आज से 15 साल पहले हुई थी। जब इस अभियान के अन्तर्गत एक मानवरहित यान को 22 अक्टूबर, 2008 को चन्द्रमा पर भेजा गया, अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत चंद्रमा की तरफ भेजा जाने वाला
चंद्रयान भारत का पहला अंतरिक्ष यान था।
चंद्रयान ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब (MIP) 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा, जिससे भारत चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला चौथा देश बन गया।
"यात्रा 2008 में चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण से शुरू हुई, जहां केवल एक ऑर्बिटर था जो चंद्रमा के चारों ओर गया और जिसने फिर एक छोटा प्रॉब चंद्रमा की सतह पर भेजा। 2019 में हम अगले चरण पर पहुंचे जहां हम वास्तव में चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करना चाहते थे और हमारे विचार में लैंडर के उतरने के बाद थैली खुलती और फिर एक रोवर चंद्रमा की सतह के चारों ओर जाता, लेकिन दुर्भाग्य से हम सभी जानते हैं कि विभिन्न तकनीकी दोषों के कारण लैंडर उतरने में विफल रहा। इसलिए यह चंद्रयान-3 अस्तित्व में आया। इस से यह सुनिश्चित करना है कि हमारे पास चंद्रमा पर नरम भूमि पर उतरने की तकनीक है," डॉ वेंकटेश्वरन ने बताया।
चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 के बीच क्या फ़र्क है?
चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान ISRO द्वारा नियोजित तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन है जिसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और रोवर की पूरी क्षमता का प्रदर्शन करना है। यह चंद्रयान-2 मिशन के बाद का मिशन है।
चंद्रयान-2 के दौरान विक्रम लैंडर की असफल लैंडिंग के बाद चंद्रयान-3 की आवश्यकता पड़ी। यह नया मिशन 2024 में प्रस्तावित चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन के लिए आवश्यक लैंडिंग कौशल को प्रदर्शित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
विज्ञान प्रसार के डॉ टी वी वेंकटेश्वरन ने आगे बताया कि चंद्रयान-1 एक बहुत ही सरल मिशन था। इसमें एक अंतरिक्ष यान भेजा जाता है जो चंद्रमा के पास पहुंचता है, और फिर यह एक उपग्रह की तरह चंद्रमा के चारों ओर घूमता है।
"चंद्रयान-2 एक बहुत ही महत्वाकांक्षी मिशन था जहां लॉन्च के बाद एक भाग उपग्रह की तरह चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगायेगा और दूसरा भाग अलग हो कर चंद्रमा की सतह पर लेंड करेगा, लेकिन दुर्भाग्य से वह हो न पाया तो चंद्रयान-3 यह करने वाला है। दो बार हमने साबित किया है कि हम चंद्रमा तक पहुंच कर चंद्रमा की परिक्रमा कर सकते हैं। तो हम जानते हैं कि तकनीकी बिल्कुल स्पष्ट है। चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग एक प्रमुख चुनौती है। चंद्रयान-3 से यही अपेक्षित है," टी वी वेंकटेश्वरन ने आगे बताया।
सॉफ्ट लैंडिंग में समस्या क्यों है?
सॉफ्ट लैंडिंग शब्द आप अक्सर
चंद्रयान मिशन में सुनते हैं, तो मान लीजिए कि एक हवाई जहाज आकाश में है और फिर जब यह उतरता है तो यह धीरे से जमीन पर उतरता है इसे सॉफ्ट लैंडिंग कहते हैं। वहीं चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है, आप पैराशूट का उपयोग नहीं कर सकते क्योंकि वहां हवा नहीं है इसलिए तकनीक के जरिए अंतरिक्ष यान के चंद्रमा पर गिरने से पहले इसकी रफ्तार को धीमा किया जाता है।
चंद्रयान जब नीचे गिर रहा होगा तब रॉकेट के जरिए इसे थ्रस्ट दिया जाता है और फिर यह ऊपर की ओर जाने वाली परस्पर क्रिया करता है और इसके जरिए यह धीरे-धीरे गिरता है।
"चंद्रमा पर लेन्डर उतरना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि वहां कोई वायुमंडल नहीं है। चंद्रमा की सतह छोटे-बड़े गड्ढों से भरी हुई है। वहाँ ढलान और बोल्डर भी हैं यदि आप उतरते हैं और आपके लेन्डर का एक पैर बोल्डर पर है, तो आपका अंतरिक्ष यान झुका हुआ होगा जिससे अंतरिक्ष यान के एक हिस्से को सूरज की रोशनी नहीं मिल पाएगी, तो आपका सौर पैनल काम नहीं कर सकेगाै और यदि यह झुका हुआ होगा, आपका रैम नहीं खुल सकेगा जिससे रोवर नीचे नहीं आ सकेगा। आपको लगभग समतल सतह पर उतरना होगा, जो बहुत कठिन है," वेंकटेश्वरन ने आगे Sputnik को बताया।
"ये सब बहुत बड़ी तकनीकी चुनौतियां हैं और यह सब आप पृथ्वी से नियंत्रित नहीं कर सकते क्योंकि पृथ्वी से चंद्रमा तक सिग्नल जाने में बहुत समय लगता है। यह बहुत दूर है, भले ही यह प्रकाश की गति से यात्रा करे, इसमें 1.2 सेकंड से अधिक समय लगेगा। तो यह अधिक समय है, लैंडिंग के दृष्टिकोण से, आपको चीजों को एक सेकंड में तय करना चाहिए, यही कारण है कि लैंडर कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोट संचालित स्वायत्त नेविगेशन प्रणाली से सक्षम है।
चंद्रयान-3 कब तक पहुंचेगा चंद्रमा पर
LVM3-M4/चंद्रयान-3 नामित यह मिशन LVM3 रॉकेट द्वारा पूरा किया जाएगा। 3,900 किलोग्राम वजनी
अंतरिक्ष यान LVM3 रॉकेट की कुल वहन क्षमता से थोड़ा कम होगा। इसमें 2,148 किलोग्राम वजनी एक ऑर्बिटर (या प्रोपल्शन मॉड्यूल), विक्रम नामक एक लैंडर और प्रज्ञान नामक एक रोवर शामिल है।
चंद्रयान-3 का प्राथमिक उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर लैंडर को सफलतापूर्वक उतारना है, इसके बाद
वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए रोवर की तैनाती करना है।
चंद्रयान -2 मिशन को 2019 में चंद्रमा पर उतरने का प्रयास किया था, जिसे चंद्रमा तक पहुंचने में लगभग 48 दिन लगे, अगर प्रौद्योगिकी विभाग में विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक डॉ टी वी वेंकटेश्वरन की मानें तो अगर सब कुछ सही रहा तो चंद्रयान--3 42 दिनों में चंद्रमा तक पहुँच जाएगा।
"अब ISRO ने घोषणा की है कि वे 14 जुलाई को चंद्रयान-3 लॉन्च करने जा रहे हैं। मोटे तौर पर इसे चंद्रमा तक पहुंचने में लगभग 42 दिन लगेंगे क्योंकि हमारे रॉकेट इतने शक्तिशाली नहीं हैं कि अंतरिक्ष यान को चंद्रमा की ओर प्रक्षेपित कर सकें। तो पहले यह पृथ्वी की परिक्रमा करके गति पकड़ेगा और फिर चंद्रमा की ओर जाएगा तो कुल मिलाकर टच डाउन होने में लगभग 42 दिन लगेंगे। इसे 42 से 45 दिनों के बीच भी लग सकते हैं और उसके बाद टच डाउन होगा," डॉ वेंकटेश्वरन ने बताया।
आखिर में वैज्ञानिक वेंकटेश्वरन ने बताया कि चंद्रमा पर उतरना कोई बहुत सरल बात नहीं है, यह वास्तव में बहुत, बहुत जटिल है। मंगल पर उतरना चंद्रमा पर उतरने से कम चुनौतीपूर्ण होगा, मंगल पर जाना कठिन होगा लेकिन मंगल पर उतरना आसान क्योंकि वहां वायुमंडल है और आप पैराशूट का उपयोग कर सकते हैं इसलिए मंगल पर चंद्रमा पर उतरने की तुलना में कम चुनौतीपूर्ण है।