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क्या है ग्लोबल साउथ, जिसकी दुनिया भर में आवाज़ बुलंद हो रही है?
क्या है ग्लोबल साउथ, जिसकी दुनिया भर में आवाज़ बुलंद हो रही है?
Sputnik भारत
वैश्विक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में देखे जा रहे मूलभूत परिवर्तनों के बीच पिछले डेढ़ साल में "ग्लोबल साउथ" शब्द में अकादमिक और सार्वजनिक रुचि बढ़ रही है।
2023-08-20T18:15+0530
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2024-03-12T19:16+0530
ग्लोबल साउथ
भारत का विदेश मंत्रालय (mea)
वैश्विक आर्थिक स्थिरता
राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता
आर्थिक मंच
वैश्विक दक्षिण
लैटिन अमेरिका
कैरेबियाई क्षेत्र
भारत
रूस
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यूक्रेन में चल रहे रूसी विशेष सैन्य अभियान के दौरान वैश्विक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में देखे जा रहे मूलभूत परिवर्तनों के बीच पिछले डेढ़ साल में "ग्लोबल साउथ" शब्द में अकादमिक और सार्वजनिक रुचि बढ़ रही है।अगले सप्ताह दक्षिण अफ्रीका जोहान्सबर्ग में 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में अफ्रीका सहित वैश्विक दक्षिण के नेताओं की मेजबानी करने की तैयारी कर रहा है। इस बीच, पश्चिमी मीडिया में चिंता बढ़ रही है कि जैसे-जैसे समय गुजर रहा है, ग्लोबल साउथ अमेरिकी राजनीति में रहने से और भी ज्यादा इनकार करता रहेगा।क्या है ग्लोबल साउथ?ग्लोबल साउथ शब्द का इस्तेमाल पहली बार शीत युद्ध के दौरान अमीर और गरीब देशों के बीच आर्थिक विभाजन को संदर्भित करने के लिए शुरू किया गया था। यानी पृथ्वी के उत्तर गोलार्द्ध में स्थित ज़्यादातर देश विकसित और संपन्न हैं, जबकि पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्द्ध में ज़्यादातर देश विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित हैं और ग़रीबी से जूझ रहे हैं।माना जाता है कि अमेरिका के राजनीतिक विशेषज्ञ कार्ल ओग्लेसबी ने ग्लोबल साउथ शब्द को आधुनिक अर्थों में सबसे पहले दिया था। उन्होंने 1969 में उदार 'कॉमनवेल' पत्रिका में वियतनाम युद्ध को लेकर लिखा कि सदियों से "उत्तरी देशों [अमेरिका सहित पश्चिमी देशों] का ग्लोबल साउथ पर प्रभुत्व एक असहनीय सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करने के लिए परिवर्तित कैसे हो गया है।"वैज्ञानिकों का कहना था कि सामान्य स्तर पर ग्लोबल साउथ के देशों को आय असमानता के उच्च स्तर, कम जीवन प्रत्याशा से लेकर रोज़गार की कमी और यहां तक कि लोगों के विदेश में 'बेहतर जीवन' की तलाश में चले जाने की प्रवृति जैसी कठिन जीवन स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इसके साथ-साथ, वैश्विक उत्तर के विकसित औद्योगीकृत देशों द्वारा अपिशिष्ट और प्रदूषण जैसी उत्पन्न की गई समस्याएं अक्सर ग्लोबल साउथ के देशों में असंगत रूप से जटिल होती हैं।1991 में सोवियत संघ का पतन, 2000 के दशक के अंत में ब्रिक्स देशों का उदय, पश्चिमी देशों में ग़ैर-औद्योगिकीरण की प्रवृति, यह सब ने 'ग्लोबल साउथ' जैसे शब्द के औचित्य के बारे में अकादमिकी दुनिया में बहस छेड़ दी है। हालांकि रूस द्वारा यूक्रेन में चलाए जा रहे विशेष सैन्य अभियान से पता चलता है कि पश्चिम और विकासशील देशों के बीच आर्थिक विभाजन अभी भी उपस्थित है, इसलिए यह शब्द कुछ हद तक प्रासंगिकता बनाए रखता है।ग्लोबल साउथ में कौन-कौन से देश सम्मिलित हैं?ग्लोबल साउथ शब्द की कोई विशुद्ध भौगोलिक परिभाषा नहीं है। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित ऑस्ट्रेलिया, इज़राइल, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देश वैश्विक दक्षिण समूह में सम्मिलित नहीं हैं - ये देश ग्लोबल उत्तर का भाग रहे हैं। ऐसे अधिकांश मानचित्रों पर ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ के देशों के बीच की असली सीमा कर्क रेखा, यूएस-मेक्सिको सीमा, मध्य पूर्व और मध्य एशिया के देशों की ऊपरी सीमा के साथ गुज़रती है। यानी ग्लोबल साउथ के देशों के रूप में ब्राज़ील, नाइजीरिया, मैक्सिको आदि माना जाता है।भारत कैसे बन गया है ग्लोबल साउथ की आवाज़?समकालीन वैश्विक राजनीति में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस साल जनवरी में भारत ने पहली बार 'ग्लोबल साउथ की आवाज़' (वॉयस ऑफ़ द ग्लोबल साउथ) नामक एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की है। नई दिल्ली ने कहा था कि यह सम्मेलन एक ऐसा मंच है जिसमें विकासशील देश विभिन्न चिंताओं और दृष्टिकोणों को साझा कर सकते हैं तथा प्राथमिकताओं और समस्याओं के समाधान की दिशा में आवाज़ की एकता दिखा सकते हैं।भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार, इस शिखर सम्मेलन में 125 देशों ने भाग लिया था, जिनमें लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों में से 29, 47 अफ्रीकी देश, यूरोप के सात देश, 31 एशियाई देश और ओशिनिया के 11 देश सम्मिलित थे और यह दुनिया का सबसे बड़ा वर्चुअल शिखर सम्मेलन रहा।हालांकि हम भारत के नेतृत्व वाली पहल की भविष्य की संभावनाएं बाद में देखेंगे, लेकिन 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना करने के बाद 21वीं शताब्दी में यह ग्लोबल साउथ के देशों का एक ब्लॉक विहीन समूह बनाने का संभवतः इस तरह का सबसे महत्वपूर्ण प्रयास है।इतना ही नहीं, चूंकि वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय मंच पर ग्लोबल साउथ के देशों का प्रतिनिधित्व कम है, भारत ही इन देशों की आवाज़ बन रहा है। इस साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वैश्विक परिवर्तन के युग में भारत ग्लोबल साउथ की आवाज़ बन रहा है, "आज भारत ने जो कमाया है, वह दुनिया में स्थिरता की गारंटी लेकर आया है।"ग्लोबल साउथ का आगे क्या होगा?दुनिया में ब्रिक्स (BRICS) समूह की भूमिका बढ़ रही है, जिसमें ग्लोबल साउथ के चार देशों यानी भारत, ब्राजील, चीन और दक्षिण अफ़्रीका के साथ रूस भी सम्मिलित है। ये देश बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था बना रहे हैं, जिससे आशा उत्पन्न हो जाती है कि उत्तर और दक्षिण के बीच वर्तमान सामाजिक-आर्थिक असंतुलन और असमानताएं इसलिए दूर हो जाएंगे, क्योंकि पश्चिमी संस्थानों और गुटों के नए विकल्प सामने आएंगे।साथ ही, संकेत इस बात के हैं कि विकसित हो रही दुनिया में शक्ति के वैकल्पिक केंद्रों के उदय को देखते हुए अमेरिका सहित पश्चिमी देशों में चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, और संभवतः उनकी अगुवाई वाली एकध्रुवीयता के बहुध्रुवियता में परिवर्तित होने के विरुद्ध वे पूरी ताक़त झोंकने का जतन करेंगे ताकि उपनिवेश काल में उन्होंने जो संसाधन और वर्चस्व प्राप्त किए थे, वह सब उनके हाथ में रहे।
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यूक्रेन में नाटो-रूस छद्म-युद्ध, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आज़ादी की 77वीं वर्षगांठ, उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की आवाज़, ग्लोबल साउथ की आवाज़, अमीर और गरीब देशों के बीच आर्थिक विभाजन, विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित, 'कॉमनवेल' पत्रिका, वियतनाम युद्ध, आय असमानता के उच्च स्तर, कम जीवन प्रत्याशा, सोवियत ख़ेमे का लुप्त होना, ब्रिक्स देशों का उदय, पश्चिमी देशों में ग़ैर-औद्योगिकीरण की प्रवृति, ग्लोबल साउथ में कौन-कौन से देश सम्मिलित हैं?, भारत कैसे बन गया है ग्लोबल साउथ की आवाज़?, 'ग्लोबल साउथ की आवाज़' (वॉयस ऑफ़ द ग्लोबल साउथ) वर्चुअल शिखर सम्मेलन, दुनिया का सबसे बड़ा वर्चुअल शिखर सम्मेलन, गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना, ग्लोबल साउथ के देशों का कम प्रतिनिधित्व
यूक्रेन में नाटो-रूस छद्म-युद्ध, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आज़ादी की 77वीं वर्षगांठ, उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की आवाज़, ग्लोबल साउथ की आवाज़, अमीर और गरीब देशों के बीच आर्थिक विभाजन, विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित, 'कॉमनवेल' पत्रिका, वियतनाम युद्ध, आय असमानता के उच्च स्तर, कम जीवन प्रत्याशा, सोवियत ख़ेमे का लुप्त होना, ब्रिक्स देशों का उदय, पश्चिमी देशों में ग़ैर-औद्योगिकीरण की प्रवृति, ग्लोबल साउथ में कौन-कौन से देश सम्मिलित हैं?, भारत कैसे बन गया है ग्लोबल साउथ की आवाज़?, 'ग्लोबल साउथ की आवाज़' (वॉयस ऑफ़ द ग्लोबल साउथ) वर्चुअल शिखर सम्मेलन, दुनिया का सबसे बड़ा वर्चुअल शिखर सम्मेलन, गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना, ग्लोबल साउथ के देशों का कम प्रतिनिधित्व
क्या है ग्लोबल साउथ, जिसकी दुनिया भर में आवाज़ बुलंद हो रही है?
18:15 20.08.2023 (अपडेटेड: 19:16 12.03.2024) भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज़ादी की 77वीं वर्षगांठ के अवसर पर कहा कि भारत ग्लोबल साउथ की आवाज़ बन रहा है जिससे कम प्रतिनिधित्व वाले देशों की ज़रूरतों और प्रस्तावों को सम्मानित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत करने में सहायता मिल सकती है।
यूक्रेन में चल रहे रूसी विशेष सैन्य अभियान के दौरान वैश्विक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में देखे जा रहे मूलभूत परिवर्तनों के बीच पिछले डेढ़ साल में "ग्लोबल साउथ" शब्द में अकादमिक और सार्वजनिक रुचि बढ़ रही है।
अगले सप्ताह दक्षिण अफ्रीका जोहान्सबर्ग में 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में अफ्रीका सहित वैश्विक दक्षिण के नेताओं की मेजबानी करने की तैयारी कर रहा है। इस बीच, पश्चिमी मीडिया में चिंता बढ़ रही है कि जैसे-जैसे समय गुजर रहा है, ग्लोबल साउथ अमेरिकी राजनीति में रहने से और भी ज्यादा इनकार करता रहेगा।
ग्लोबल साउथ शब्द का इस्तेमाल पहली बार शीत युद्ध के दौरान अमीर और गरीब देशों के बीच आर्थिक विभाजन को संदर्भित करने के लिए शुरू किया गया था। यानी पृथ्वी के उत्तर गोलार्द्ध में स्थित ज़्यादातर देश विकसित और संपन्न हैं, जबकि पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्द्ध में ज़्यादातर देश विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित हैं और ग़रीबी से जूझ रहे हैं।
माना जाता है कि अमेरिका के राजनीतिक विशेषज्ञ
कार्ल ओग्लेसबी ने ग्लोबल साउथ शब्द को आधुनिक अर्थों में सबसे पहले दिया था। उन्होंने 1969 में उदार '
कॉमनवेल' पत्रिका में
वियतनाम युद्ध को लेकर लिखा कि सदियों से "उत्तरी देशों [अमेरिका सहित पश्चिमी देशों] का ग्लोबल साउथ पर प्रभुत्व एक असहनीय सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करने के लिए परिवर्तित कैसे हो गया है।"
वैज्ञानिकों का कहना था कि सामान्य स्तर पर ग्लोबल साउथ के देशों को आय असमानता के उच्च स्तर, कम जीवन प्रत्याशा से लेकर रोज़गार की कमी और यहां तक कि लोगों के विदेश में 'बेहतर जीवन' की तलाश में चले जाने की प्रवृति जैसी कठिन जीवन स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इसके साथ-साथ, वैश्विक उत्तर के विकसित औद्योगीकृत देशों द्वारा अपिशिष्ट और प्रदूषण जैसी उत्पन्न की गई समस्याएं अक्सर ग्लोबल साउथ के देशों में असंगत रूप से जटिल होती हैं।
1991 में
सोवियत संघ का पतन, 2000 के दशक के अंत में ब्रिक्स देशों का उदय, पश्चिमी देशों में ग़ैर-औद्योगिकीरण की प्रवृति, यह सब ने 'ग्लोबल साउथ' जैसे शब्द के औचित्य के बारे में अकादमिकी दुनिया में बहस छेड़ दी है। हालांकि रूस द्वारा यूक्रेन में चलाए जा रहे
विशेष सैन्य अभियान से पता चलता है कि पश्चिम और विकासशील देशों के बीच आर्थिक विभाजन अभी भी उपस्थित है, इसलिए यह शब्द कुछ हद तक प्रासंगिकता बनाए रखता है।
ग्लोबल साउथ में कौन-कौन से देश सम्मिलित हैं?
ग्लोबल साउथ शब्द की कोई विशुद्ध भौगोलिक परिभाषा नहीं है। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित ऑस्ट्रेलिया, इज़राइल, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देश वैश्विक दक्षिण समूह में सम्मिलित नहीं हैं - ये देश ग्लोबल उत्तर का भाग रहे हैं।
ऐसे अधिकांश मानचित्रों पर ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ के देशों के बीच की असली सीमा कर्क रेखा, यूएस-मेक्सिको सीमा, मध्य पूर्व और मध्य एशिया के देशों की ऊपरी सीमा के साथ गुज़रती है। यानी ग्लोबल साउथ के देशों के रूप में ब्राज़ील, नाइजीरिया, मैक्सिको आदि माना जाता है।
भारत कैसे बन गया है ग्लोबल साउथ की आवाज़?
समकालीन वैश्विक राजनीति में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस साल जनवरी में भारत ने पहली बार 'ग्लोबल साउथ की आवाज़' (वॉयस ऑफ़ द ग्लोबल साउथ) नामक एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की है। नई दिल्ली ने कहा था कि यह सम्मेलन एक ऐसा मंच है जिसमें विकासशील देश विभिन्न चिंताओं और दृष्टिकोणों को साझा कर सकते हैं तथा प्राथमिकताओं और समस्याओं के समाधान की दिशा में आवाज़ की एकता दिखा सकते हैं।
भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार, इस शिखर सम्मेलन में 125 देशों ने भाग लिया था, जिनमें लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों में से 29, 47 अफ्रीकी देश, यूरोप के सात देश, 31 एशियाई देश और ओशिनिया के 11 देश सम्मिलित थे और यह
दुनिया का सबसे बड़ा वर्चुअल शिखर सम्मेलन रहा।
हालांकि हम भारत के नेतृत्व वाली पहल की भविष्य की संभावनाएं बाद में देखेंगे, लेकिन 1961 में
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना करने के बाद 21वीं शताब्दी में यह ग्लोबल साउथ के देशों का एक ब्लॉक विहीन समूह बनाने का संभवतः इस तरह का सबसे महत्वपूर्ण प्रयास है।
इतना ही नहीं, चूंकि वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय मंच पर
ग्लोबल साउथ के देशों का प्रतिनिधित्व कम है, भारत ही इन देशों की आवाज़ बन रहा है। इस साल
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने कहा कि वैश्विक परिवर्तन के युग में भारत ग्लोबल साउथ की आवाज़ बन रहा है, "आज भारत ने जो कमाया है, वह दुनिया में स्थिरता की गारंटी लेकर आया है।"
ग्लोबल साउथ का आगे क्या होगा?
दुनिया में
ब्रिक्स (BRICS) समूह की भूमिका बढ़ रही है, जिसमें ग्लोबल साउथ के चार देशों यानी भारत, ब्राजील, चीन और दक्षिण अफ़्रीका के साथ रूस भी सम्मिलित है। ये देश बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था बना रहे हैं, जिससे आशा उत्पन्न हो जाती है कि उत्तर और दक्षिण के बीच वर्तमान सामाजिक-आर्थिक असंतुलन और असमानताएं इसलिए दूर हो जाएंगे, क्योंकि
पश्चिमी संस्थानों और गुटों के नए विकल्प सामने आएंगे।
साथ ही, संकेत इस बात के हैं कि विकसित हो रही दुनिया में शक्ति के वैकल्पिक केंद्रों के उदय को देखते हुए अमेरिका सहित पश्चिमी देशों में चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, और संभवतः उनकी अगुवाई वाली एकध्रुवीयता के बहुध्रुवियता में परिवर्तित होने के विरुद्ध वे पूरी ताक़त झोंकने का जतन करेंगे ताकि उपनिवेश काल में उन्होंने जो संसाधन और वर्चस्व प्राप्त किए थे, वह सब उनके हाथ में रहे।