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रूस के अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का अनुभव भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण: विशेषज्ञ
रूस के अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का अनुभव भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण: विशेषज्ञ
Sputnik India ने अंतरिक्ष विशेषज्ञ ग्रुप कैप्टन (सेवानिवृत्त) अजय लेले से बात की, जिन्होंने बताया कि भारत और रूस अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग कैसे कर सकते हैं।
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भारत और रूस के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में दीर्घकालिक सहयोग है। रूस ने अंतरिक्ष क्षेत्र में कई मील के पत्थर हासिल करने में भारत का समर्थन किया है, चाहे वह भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट को अंतरिक्ष में लॉन्च करना हो या पहले भारतीय को कक्षा में पहुंचने में सक्षम बनाना हो।रूस के पास तकनीकी विशेषज्ञता और लॉजिस्टिक समर्थन के साथ भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को सक्रिय रूप से मदद करने का एक लंबा इतिहास है। इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि रूस ने भारत को कक्षा में मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजने के मिशन में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध किया है।भारत-रूस की समय-परीक्षणित साझेदारी तब सामने आई थी जब भारत की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन गगनयान के लिए चयनित अंतरिक्ष यात्रियों को गहन प्रशिक्षण से गुजरने के लिए रूस भेजा गया था।रूस न केवल भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित किया, बल्कि क्रू कैप्सूल में जीवन समर्थन प्रणाली का निर्माण भी किया और अन्य क्षेत्रों में भी भारत के महत्वपूर्ण प्रथम मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम में सहयोग कर रहा है।भारत के शुक्र ग्रह मिशन के बारे मेंदरअसल पिछले महीने, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने ग्रह शुक्र पर भारत के आगामी मिशन की घोषणा की। अगस्त में चंद्रयान-3 चंद्रमा मिशन के सफल प्रक्षेपण के बाद, शुक्र मिशन की तैयारियां आगे बढ़ गई हैं, जो भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों में एक महत्वपूर्ण प्रगति है।दिल्ली में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी में बोलते हुए, सोमनाथ ने उल्लेख किया कि कई मिशन वैचारिक चरण में हैं, और शुक्र मिशन की योजना पहले से ही चल रही है, जिसमें पेलोड पहले से ही तैयार हैं। उन्होंने शुक्र को एक दिलचस्प ग्रह बताया और कहा कि इस ग्रह पर शोध से अंतरिक्ष विज्ञान में विभिन्न अनसुलझे सवालों के बारे में जानकारी मिल सकती है।बता दें कि अंतरिक्ष में भारत-रूस सहयोग 1975 से चला आ रहा है क्योंकि रूस (तब सोवियत संघ) भारत के पहले मानव रहित उपग्रह, आर्यभट्ट को लॉन्च करने और देश के उपग्रह कार्यक्रम को शुरू करने में अतिविशिष्ट योगदान किया था। आर्यभट्ट, जिसका नाम प्रसिद्ध भारतीय खगोलशास्त्री के नाम पर रखा गया है, पूरी तरह से इसरो वैज्ञानिकों द्वारा भारत के बेंगलुरु में डिजाइन और निर्मित किया गया था और कपुस्टिन यार से सोवियत कोसमोस-3एम रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया था।
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रूस के अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का अनुभव भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण: विशेषज्ञ
Sputnik India ने अंतरिक्ष विशेषज्ञ ग्रुप कैप्टन (सेवानिवृत्त) अजय लेले से बात की, जिन्होंने बताया कि भारत और रूस अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग कैसे कर सकते हैं।
भारत और रूस के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में दीर्घकालिक सहयोग है। रूस ने अंतरिक्ष क्षेत्र में कई मील के पत्थर हासिल करने में भारत का समर्थन किया है, चाहे वह भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट को अंतरिक्ष में लॉन्च करना हो या पहले भारतीय को कक्षा में पहुंचने में सक्षम बनाना हो।
रूस के पास तकनीकी विशेषज्ञता और लॉजिस्टिक समर्थन के साथ भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को सक्रिय रूप से मदद करने का एक लंबा इतिहास है। इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि रूस ने भारत को कक्षा में मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजने के मिशन में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध किया है।
भारत-रूस की समय-परीक्षणित साझेदारी तब सामने आई थी जब भारत की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसी,
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन
गगनयान के लिए चयनित अंतरिक्ष यात्रियों को गहन प्रशिक्षण से गुजरने के लिए रूस भेजा गया था।
रूस न केवल भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित किया, बल्कि क्रू कैप्सूल में जीवन समर्थन प्रणाली का निर्माण भी किया और अन्य क्षेत्रों में भी भारत के महत्वपूर्ण प्रथम मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम में सहयोग कर रहा है।
"भारत का एक अपना मनोबल है कि वह अपना एक अंतरिक्ष स्टेशन बना दे। रूस का अभी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष में काफी मजबूत पकड़ है और आने वाले दिनों में ऐसा कहा जा रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन प्रोग्राम खत्म होने वाला है। [अगर] आने वाले दिनों में भारत और रूस साथ मिलकर अंतरिक्ष स्टेशन बनाएंगे तो बहुत अच्छी चीज होगी। विज्ञान की दृष्टिकोण से रूस का जो अनुभव है वो भारत के काम आएगा, और पहले ही रूस भारत के अंतरिक्ष यात्री को प्रशिक्षित कर चुका है। भारत और रूस का मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम में बहुत सारा योगदान रहा है और वे इसी को अच्छी तरह आगे बढ़ा सकते हैं," अंतरिक्ष विशेषज्ञ अजय लेले ने Sputnik India को बताया।
भारत के शुक्र ग्रह मिशन के बारे में
दरअसल पिछले महीने, भारतीय
अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष
एस. सोमनाथ ने ग्रह शुक्र पर भारत के आगामी मिशन की घोषणा की। अगस्त में चंद्रयान-3 चंद्रमा मिशन के सफल प्रक्षेपण के बाद, शुक्र मिशन की तैयारियां आगे बढ़ गई हैं, जो भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों में एक महत्वपूर्ण प्रगति है।
दिल्ली में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी में बोलते हुए, सोमनाथ ने उल्लेख किया कि कई मिशन वैचारिक चरण में हैं, और शुक्र मिशन की योजना पहले से ही चल रही है, जिसमें पेलोड पहले से ही तैयार हैं। उन्होंने शुक्र को एक दिलचस्प ग्रह बताया और कहा कि इस ग्रह पर शोध से अंतरिक्ष विज्ञान में विभिन्न अनसुलझे सवालों के बारे में जानकारी मिल सकती है।
"भारत का शुक्र ग्रह (वीनस मिशन) मिशन जाने वाला है, लेकिन इसमें अभी काफी समय लगेगा। यही एक मौका है जहां वीनस मिशन के लिए भारत और रूस सहयोग कर सकते हैं। चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद भारत अब आगे देख रहा है। [...] आने वाले दिनों में ऐसा कहा जा रहा है कि भारत चंद्रयान 4 मिशन लॉन्च कर सकता है। लेकिन यहाँ पर रूस को भी एक अवसर है कि भारत के साथ संयुक्त प्रोग्राम चंद्रमा पर जाने के लिए तैयार हो जाए," लेले ने Sputnik India को बताया।
बता दें कि अंतरिक्ष में
भारत-रूस सहयोग 1975 से चला आ रहा है क्योंकि रूस (तब सोवियत संघ) भारत के पहले मानव रहित उपग्रह, आर्यभट्ट को लॉन्च करने और देश के उपग्रह कार्यक्रम को शुरू करने में अतिविशिष्ट योगदान किया था। आर्यभट्ट, जिसका नाम प्रसिद्ध भारतीय खगोलशास्त्री के नाम पर रखा गया है, पूरी तरह से इसरो वैज्ञानिकों द्वारा भारत के बेंगलुरु में डिजाइन और निर्मित किया गया था और कपुस्टिन यार से सोवियत कोसमोस-3एम रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया था।