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क्या है सूर्य पर जाने वाला इसरो का आदित्य-L1 मिशन?
क्या है सूर्य पर जाने वाला इसरो का आदित्य-L1 मिशन?
Sputnik भारत
इसरो सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य L1 को लॉन्च करने की योजना बना रहा है जो सूर्य, उसके पर्यावरण, सौर ज्वालाओं, सौर तूफानों सहित बहुत कुछ अध्ययन करेगा।
2023-08-25T18:19+0530
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) के पास कई अंतरिक्ष मिशन हैं, चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक लैंडिंग के बाद सितंबर के पहले सप्ताह में इसरो सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य L1 को लॉन्च करने की योजना बना रहा है जो सूर्य, उसके पर्यावरण, सौर ज्वालाओं, सौर तूफानों सहित बहुत चीजों का अध्ययन करेगा। इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ ने चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद पत्रकारों से बात करते हुए बताया था कि इसरो का अगला मिशन आदित्य L1 मिशन है, जो श्रीहरिकोटा में तैयार हो रहा है।इसरो के अनुसार, मिशन को PSLV रॉकेट द्वारा लॉन्च किया जाएगा, प्रारम्भिक स्थिति में यह यान पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित होगा और उसके उपरांत में अंतरिक्ष यान ऑन-बोर्ड प्रपोल्शन का उपयोग करके L1 बिंदु की ओर प्रक्षेपित किया जाएगा।इसरो के अनुसार लॉन्च के बाद से लेकर L1 बिंदु तक की यात्रा में आदित्य-L1 को लगभग चार महीने का समय लगेगा। इसके अतिरिक्त आदित्य L1 के उपरांत, इसरो का प्लान 2025 में मानव को अंतरिक्ष में भेजने का है।PSLV-C 57/आदित्य-L1 मिशन पहले ही भारत में आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले में स्थित श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में पहुंच चुका है, हालांकि इसके लॉन्च की कोई तारीख तय नहीं की गई है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसे सितंबर के पहले सप्ताह में लॉन्च किया जा सकता है। इस मिशन में अंतरिक्ष यान अपने साथ सूर्य के विभिन्न भागों का अध्ययन करने के लिए सात वैज्ञानिक पेलोड लेकर रवाना होगा। आदित्य-L1 मिशन क्या है? आदित्य L1 मिशन भारत द्वारा सूर्य के अध्ययन के लिए भेजे जाने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित मिशन होगा। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (L1) के चारों ओर पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा। उपग्रह को इस कक्षा में रखे जाने का लाभ है कि इसे किसी भी तरह के ग्रहण से कोई दिक्कत नहीं होगी और यह लगातार सूर्य पर अपनी नजर बनाए रख सकेगा। यह अंतरिक्ष यान विद्युत चुंबकीय कण और चुंबकीय क्षेत्र डिटेक्टरों का उपयोग करके प्रकाश मंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए अपने साथ सात पेलोड ले जाएगा और आशा है कि आदित्य L1 पेलोड के सूट कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियों और उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता, कण और क्षेत्रों के प्रसार की समस्या को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगा। लाग्रंगियन बिंदु (लैग्रेंज पॉइंट) अंतरिक्ष में स्थित वे स्थान हैं जहां सूर्य और पृथ्वी जैसी दो-पिंड प्रणाली के गुरुत्वाकर्षण बल आकर्षण और प्रतिकर्षण के उन्नत क्षेत्र उत्पन्न करते हैं। आदित्य L1 कौन से और कितने पेलोड हैं ? आदित्य L1 के उपकरणों को सौर वातावरण में मुख्य रूप से क्रोमोस्फीयर और कोरोना का निरीक्षण करने के लिए ट्यून किया गया है। इन-सीटू उपकरण (ऑन साइट उपकरण) L1 पर स्थानीय वातावरण का निरीक्षण करेंगे। यान पर कुल सात पेलोड हैं जिनमें से चार सूर्य की रिमोट सेंसिंग करेंगे और तीन इन-सीटू अवलोकन करेंगे। विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC) कोरोना, इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी और कोरोनल मास इजेक्शन का अध्ययन करेगा वहीं दूसरा पैलोड सौर पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT) फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर इमेजिंग और संकीर्ण और ब्रॉडबैंड पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ सौर विकिरण विविधताओं को भी मापेगा। तीसरा और चौथा पेलोड सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS) और हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS) व्यापक एक्स-रे ऊर्जा रेंज में सूर्य से निकलने वाली नरम और कठोर एक्स-रे फ्लेयर्स का अध्ययन करेंगे। पांचवा और छतवाँ आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX) और प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (PAPA) सौर पवन या कणों में इलेक्ट्रॉनों और प्रोटॉनों का विश्लेषण करने के साथ-साथ ऊर्जावान आयनों का अध्ययन भी करेंगे। और अंत में सातवां पैलोड उन्नत त्रि-अक्षीय उच्च रिज़ॉल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर L1 बिंदु पर अंतरग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करेगा।आदित्य-L1 मिशन का उद्देश्य क्या है? आदित्य-L1 मिशन के प्रमुख वैज्ञानिक उद्देश्यों में से:
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क्या है सूर्य पर जाने वाला इसरो का आदित्य-L1 मिशन?
18:19 25.08.2023 (अपडेटेड: 14:13 03.09.2023) भारत 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया, इस मिशन की सफलता के साथ ही भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो में अपने आने वाले मिशनों के लिए एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) के पास कई अंतरिक्ष मिशन हैं, चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक लैंडिंग के बाद सितंबर के पहले सप्ताह में इसरो सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य L1 को लॉन्च करने की योजना बना रहा है जो सूर्य, उसके पर्यावरण, सौर ज्वालाओं, सौर तूफानों सहित बहुत चीजों का अध्ययन करेगा।
इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ ने
चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद पत्रकारों से बात करते हुए बताया था कि इसरो का अगला मिशन आदित्य L1 मिशन है, जो श्रीहरिकोटा में तैयार हो रहा है।
इसरो के अनुसार, मिशन को
PSLV रॉकेट द्वारा लॉन्च किया जाएगा, प्रारम्भिक स्थिति में यह यान पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित होगा और उसके उपरांत में अंतरिक्ष यान ऑन-बोर्ड प्रपोल्शन का उपयोग करके L1 बिंदु की ओर प्रक्षेपित किया जाएगा।
इसरो के अनुसार लॉन्च के बाद से लेकर L1 बिंदु तक की यात्रा में आदित्य-L1 को लगभग चार महीने का समय लगेगा। इसके अतिरिक्त आदित्य L1 के उपरांत, इसरो का प्लान 2025 में मानव को अंतरिक्ष में भेजने का है।
"हम अपने क्रू मॉड्यूल और क्रू एस्केप क्षमता को प्रदर्शित करने के लिए सितंबर या अक्टूबर के अंत तक एक मिशन की योजना बना रहे हैं, जिसके बाद कई परीक्षण मिशन होंगे जब तक कि हम अंतरिक्ष में अपना पहला मानवयुक्त मिशन (गगनयान) लॉन्च नहीं कर देते, संभवतः 2025 तक," इसरो के प्रमुख ने कहा।
PSLV-C 57/आदित्य-L1 मिशन पहले ही भारत में आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले में स्थित श्रीहरिकोटा के
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में पहुंच चुका है, हालांकि इसके लॉन्च की कोई तारीख तय नहीं की गई है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसे सितंबर के पहले सप्ताह में लॉन्च किया जा सकता है। इस मिशन में अंतरिक्ष यान अपने साथ सूर्य के विभिन्न भागों का अध्ययन करने के लिए सात वैज्ञानिक पेलोड लेकर रवाना होगा।
आदित्य L1 मिशन भारत द्वारा सूर्य के अध्ययन के लिए भेजे जाने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित मिशन होगा। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (L1) के चारों ओर पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा। उपग्रह को इस कक्षा में रखे जाने का लाभ है कि इसे किसी भी तरह के ग्रहण से कोई दिक्कत नहीं होगी और यह लगातार सूर्य पर अपनी नजर बनाए रख सकेगा।
यह अंतरिक्ष यान विद्युत चुंबकीय कण और चुंबकीय क्षेत्र डिटेक्टरों का उपयोग करके प्रकाश मंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का
निरीक्षण करने के लिए अपने साथ सात पेलोड ले जाएगा और आशा है कि
आदित्य L1 पेलोड के सूट कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियों और उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता, कण और क्षेत्रों के प्रसार की समस्या को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगा।
लाग्रंगियन बिंदु (लैग्रेंज पॉइंट) अंतरिक्ष में स्थित वे स्थान हैं जहां सूर्य और पृथ्वी जैसी दो-पिंड प्रणाली के गुरुत्वाकर्षण बल आकर्षण और प्रतिकर्षण के उन्नत क्षेत्र उत्पन्न करते हैं।
आदित्य L1 कौन से और कितने पेलोड हैं ?
आदित्य L1 के उपकरणों को सौर वातावरण में मुख्य रूप से क्रोमोस्फीयर और कोरोना का
निरीक्षण करने के लिए ट्यून किया गया है। इन-सीटू उपकरण (ऑन साइट उपकरण) L1 पर स्थानीय वातावरण का निरीक्षण करेंगे। यान पर कुल
सात पेलोड हैं जिनमें से चार सूर्य की रिमोट सेंसिंग करेंगे और तीन इन-सीटू अवलोकन करेंगे।
विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC) कोरोना, इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी और कोरोनल मास इजेक्शन का अध्ययन करेगा वहीं दूसरा पैलोड सौर पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT) फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर इमेजिंग और संकीर्ण और ब्रॉडबैंड पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ सौर विकिरण विविधताओं को भी मापेगा।
तीसरा और चौथा पेलोड सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS) और हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS) व्यापक एक्स-रे ऊर्जा रेंज में सूर्य से निकलने वाली नरम और कठोर एक्स-रे फ्लेयर्स का अध्ययन करेंगे।
पांचवा और छतवाँ आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX) और प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (PAPA) सौर पवन या कणों में इलेक्ट्रॉनों और प्रोटॉनों का विश्लेषण करने के साथ-साथ ऊर्जावान आयनों का अध्ययन भी करेंगे।
और अंत में सातवां पैलोड उन्नत त्रि-अक्षीय उच्च रिज़ॉल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर L1 बिंदु पर अंतरग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करेगा।
आदित्य-L1 मिशन का उद्देश्य क्या है?
आदित्य-L1 मिशन के प्रमुख वैज्ञानिक उद्देश्यों में से:
1.
सौर कोरोना और इसके तापन तंत्र के पीछे के
वैज्ञानिक कारणों को समझना;
2.
सूर्य की सबसे बाहरी परत के तापमान, वेग और घनत्व की गणना करना;
3.
सूर्य की विभिन्न परतों का अध्ययन करने के साथ-साथ सौर चुंबकीय क्षेत्र को एकत्र कर कोरोना को मापना;
4.
क्रोमोस्फेरिक और कोरोनल हीटिंग को समझना;
5.
सौर वायु और
अंतरिक्ष मौसम के गठन और संरचना का अध्ययन;
6.
सूर्य और सौर वातावरण के बारे में अधिक जानकारी देना जो सूर्य की गतिविधियों से प्रभावित होता है।