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क्या हुआ था 1962 भारत चीन युद्ध में?
क्या हुआ था 1962 भारत चीन युद्ध में?
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20 अक्टूबर 1962 में शुरू हुए भारत और चीन के बीच हुए युद्ध में भले ही भारत को हार का सामना करना पड़ा हो लेकिन भारतीय सेना के जवानों ने बहादुरी से तादाद में कहीं ज्यादा दुश्मन का सामान किया।
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1950 से आरंभ हुआ भारत-चीन सीमा विवाद आज तक बना हुआ है। इस समस्या की शुरुआत चीन की विस्तारवादी नीति के अंतर्गत तिब्बत पर नियंत्रण करने से हुई जब चीनी सेना ने तिब्बत में प्रवेश कर तिब्बत पर अपना दावा ठोक दिया।10,000-20,000 भारतीय सैनिक और 80,000 चीनी सैनिक इस युद्ध में सम्मिलित हुए और यह युद्ध लगभग एक महीने तक जारी रहा और 21 नवंबर को चीन द्वारा युद्धविराम की घोषणा के बाद समाप्त हुआ।चीन और भारत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों पर 1954 में निष्कर्ष पर पहुंचे जिसके अंतर्गत भारत ने चीन के तिब्बत में चीनी शासन को स्वीकार किया। इसी समय भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे को बढ़ावा दिया था।इस बीच 1959 में तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा तिब्बत से भाग कर भारत आ गए जहां उन्होंने निर्वासित सरकार की स्थापना की, इसके उपरांत भारत और चीन के मध्य साल 1959 में सीमा पर दो झड़पें हुईं जिनमें से एक भारत में लद्दाख के पश्चिमी क्षेत्र में एक बड़ी झड़प भी सम्मिलित थी। इसमें गश्त के दौरान लगभग 12 भारतीय सुरक्षाकर्मी मारे गए।61 साल पूर्व भारत और चीन के मध्य आज ही के दिन संघर्ष प्रारंभ हुआ था जब चीन ने भारत पर आक्रमण बोल दिया जिसे भारत चीन युद्ध के रूप में जाना जाता है। Sputnik आज आपको इस युद्ध के कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को सामने रखेगा।भारत चीन युद्ध की शुरुआत कैसे हुई?1962 में 20 अक्टूबर को अर्थात आज ही के दिन पड़ोसी देश चीन ने पूर्व उत्तर पूर्वी सीमा एजेंसी वर्तमान में पूर्वी मोर्चे पर अरुणाचल प्रदेश और पश्चिमी मोर्चे पर अक्साई चिन क्षेत्र में भारतीय ठिकानों पर आक्रमण बोल दिया। चीन द्वारा किए गए आक्रमणों ने भारत और चीन के बीच युद्ध की शुरुआत की हालांकि एक महीने के उपरांत चीनी नेता माओत्से तुंग ने युद्धविराम की घोषणा की और अपने सैनिकों को उस स्थिति पर वापस बुला लिया जो उन्होंने पहले निर्धारित की थी, जिसके बाद 21 नवम्बर को युद्ध समाप्त हो गया।युद्ध समाप्त होने तक चीन ने भारत के 14,500 वर्ग मील अक्साई चीन क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया। विशेषज्ञों की माने तो भारतीय सेना उस समय युद्ध के लिए तैयार नहीं थी। आक्रमण को लेकर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिका से सहायता मांगी हालांकि दो दिन बाद ही युद्ध समाप्त हो गया।भारतीय सेना की कौन सी वीरता की कहानियाँ हैं?वालोंग की लड़ाई के दौरान भारतीय सेना को चीन से हर मोर्चे पर पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सेना की 6 कुमाऊं बटालियन ने पीपल लिबरेशन आर्मी के जवानों को 20 दिनों से अधिक समय तक तिब्बत क्षेत्र के निकट भारत के सबसे पूर्वी शहर वालोंग में रोके रखा।खास बात यह थी की सेना की इस बटालियन के पास कम मात्रा में गोला-बारूद और संसाधन थे लेकिन इसके बावजूद सेना के जवानों ने न मात्र चीनियों को रोका बल्कि शत्रु को रोकने के लिए 14 और 16 नवंबर 1962 के मध्य प्रतिउत्तरी आक्रमण आरंभ किया। हालाँकि, लड़ाई के अंतिम चरण में सेना को पीछे हटने के लिए कहा गया।भारतीय सेना के जवानों के पराक्रम के कारण चीनी जनरलों को तवांग से वालोंग तक अपने रिजर्व डिवीजन को नियुक्त करने के लिए विवश होना पड़ा। लेफ्टिनेंट बिक्रम सिंह राठौड़ ने 16 नवंबर को चीनी आक्रमण के दौरान तत्कालीन नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (अब अरुणाचल प्रदेश) में वालोंग की प्रसिद्ध लड़ाई में वीरता पूर्वक लड़ते हुए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।रेजांग ला की लड़ाईपूर्वी लद्दाख में चुशूल का रेजांग ला 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारतीय सैनिकों की बहादुरी के लिए जाना जाता है जब कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन के अंतर्गत चार्ली कंपनी के 120 बहादुरों ने अंतिम गोली अंतिम आदमी की कहानी को चरितार्थ किया।मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 120 जवानों ने 18,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर 1б000 से अधिक चीनी सैनिकों से अंतिम गोली तक सामना किया। यह बताया गया है कि फुर्तीले भारतीय सैनिकों ने अपने संगीनों (युद्ध में काम आने वाला चाकू) से अपने खुद से अधिक चीनियों से डटकर सामना किया। सैनिक युद्ध के इतिहास में ऐसा कोई और युद्ध नहीं देखा है।रिपोर्ट के अनुसार मेजर शैतान सिंह कई गोलियों से घायल होने के बावजूद एक बंकर से दूसरे बंकर तक जाकर अपने जवानों का उत्साह बढ़ाते रहे। हालाँकि, भारतीय सेना के पास पुरानी राइफलें थीं तो चीनी संख्या में कहीं अधिक ही नहीं बल्कि अति उन्नत थे।दिन समाप्त होने से पूर्व चार्ली कंपनी के मेजर शैतान सिंह के साथ 114 जवान शहीद हो गए और पाँच को उन्होंने युद्ध बंदी बना लिया गया, बाद में वे सभी वहां से भाग निकले। इस एतिहासिक लड़ाई में 1,000 से ज्यादा चीनी सैनिक मारे गए थे।मेजर शैतान सिंह को सर्वोच्च बलिदान के लिए भारत में बहादुरी के दिए जाने वाले सर्वोच्च अवॉर्ड परमवीर चक्र से नवाजा गया।भारत यह लड़ाई में परजित्त अवश्य हो गए हों परंतु इसके कई कारण रहे जिनमें से मुख्य वजह यह थी कि भारतीय सैनिकों के पास पर्याप्त साधान और हथियार नहीं थे लेकिन भारत ने इससे सीख लेते हुए सेना की प्रबलता पर कार्य किया जिसकी वजह से आज विश्व भर में भारतीय सेना का नाम है। चीन से इस युद्ध के बाद भारतीय सेना ने युद्ध में पाकिस्तान को तीन बार और चीन को 1967 की झड़प में हराया था।
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क्या हुआ था 1962 भारत चीन युद्ध में?
20 अक्टूबर 1962 में शुरू हुए भारत और चीन के मध्य युद्ध में भले ही भारत को पराजय का सामना करना पड़ा हो परंतु भारतीय सेना के जवानों ने बहादुरी से संख्या में कहीं अधिक शत्रु सेना को पराजित किया। इस युद्ध का अंत एक महीने में हो गया।
1950 से आरंभ हुआ भारत-चीन सीमा विवाद आज तक बना हुआ है। इस समस्या की शुरुआत चीन की विस्तारवादी नीति के अंतर्गत तिब्बत पर नियंत्रण करने से हुई जब चीनी सेना ने तिब्बत में प्रवेश कर तिब्बत पर अपना दावा ठोक दिया।
10,000-20,000 भारतीय सैनिक और 80,000 चीनी सैनिक इस युद्ध में सम्मिलित हुए और यह युद्ध लगभग एक महीने तक जारी रहा और 21 नवंबर को चीन द्वारा
युद्धविराम की घोषणा के बाद समाप्त हुआ।
चीन और भारत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों पर 1954 में निष्कर्ष पर पहुंचे जिसके अंतर्गत भारत ने चीन के तिब्बत में चीनी शासन को स्वीकार किया। इसी समय भारत के पूर्व प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरू ने हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे को बढ़ावा दिया था।
इस बीच 1959 में तिब्बत के धर्मगुरु
दलाई लामा तिब्बत से भाग कर भारत आ गए जहां उन्होंने निर्वासित सरकार की स्थापना की, इसके उपरांत भारत और चीन के मध्य साल 1959 में सीमा पर दो झड़पें हुईं जिनमें से एक भारत में लद्दाख के पश्चिमी क्षेत्र में एक बड़ी झड़प भी सम्मिलित थी। इसमें गश्त के दौरान लगभग 12 भारतीय सुरक्षाकर्मी मारे गए।
61 साल पूर्व भारत और चीन के मध्य आज ही के दिन संघर्ष प्रारंभ हुआ था जब चीन ने भारत पर आक्रमण बोल दिया जिसे भारत चीन युद्ध के रूप में जाना जाता है।
Sputnik आज आपको इस युद्ध के कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को सामने रखेगा।
भारत चीन युद्ध की शुरुआत कैसे हुई?
1962 में 20 अक्टूबर को अर्थात आज ही के दिन पड़ोसी देश चीन ने पूर्व उत्तर पूर्वी सीमा एजेंसी वर्तमान में पूर्वी मोर्चे पर अरुणाचल प्रदेश और पश्चिमी मोर्चे पर अक्साई चिन क्षेत्र में भारतीय ठिकानों पर आक्रमण बोल दिया। चीन द्वारा किए गए आक्रमणों ने
भारत और चीन के बीच युद्ध की शुरुआत की हालांकि एक महीने के उपरांत चीनी नेता माओत्से तुंग ने युद्धविराम की घोषणा की और अपने सैनिकों को उस स्थिति पर वापस बुला लिया जो उन्होंने पहले निर्धारित की थी, जिसके बाद 21 नवम्बर को युद्ध समाप्त हो गया।
युद्ध समाप्त होने तक चीन ने भारत के 14,500 वर्ग मील अक्साई चीन क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया। विशेषज्ञों की माने तो भारतीय सेना उस समय युद्ध के लिए तैयार नहीं थी। आक्रमण को लेकर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिका से सहायता मांगी हालांकि दो दिन बाद ही युद्ध समाप्त हो गया।
भारतीय सेना की कौन सी वीरता की कहानियाँ हैं?
वालोंग की लड़ाई के दौरान भारतीय सेना को चीन से हर मोर्चे पर पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सेना की 6 कुमाऊं बटालियन ने
पीपल लिबरेशन आर्मी के जवानों को 20 दिनों से अधिक समय तक तिब्बत क्षेत्र के निकट भारत के सबसे पूर्वी शहर वालोंग में रोके रखा।
खास बात यह थी की सेना की इस बटालियन के पास कम मात्रा में गोला-बारूद और संसाधन थे लेकिन इसके बावजूद सेना के जवानों ने न मात्र चीनियों को रोका बल्कि शत्रु को रोकने के लिए 14 और 16 नवंबर 1962 के मध्य प्रतिउत्तरी आक्रमण आरंभ किया। हालाँकि, लड़ाई के अंतिम चरण में सेना को पीछे हटने के लिए कहा गया।
भारतीय सेना के जवानों के पराक्रम के कारण चीनी जनरलों को तवांग से वालोंग तक अपने रिजर्व डिवीजन को नियुक्त करने के लिए विवश होना पड़ा। लेफ्टिनेंट बिक्रम सिंह राठौड़ ने 16 नवंबर को चीनी आक्रमण के दौरान तत्कालीन नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (अब अरुणाचल प्रदेश) में वालोंग की प्रसिद्ध लड़ाई में वीरता पूर्वक लड़ते हुए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।
पूर्वी लद्दाख में चुशूल का रेजांग ला 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारतीय सैनिकों की बहादुरी के लिए जाना जाता है जब कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन के अंतर्गत चार्ली कंपनी के 120 बहादुरों ने अंतिम गोली अंतिम आदमी की कहानी को चरितार्थ किया।
मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 120 जवानों ने 18,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर 1б000 से अधिक चीनी सैनिकों से अंतिम गोली तक सामना किया। यह बताया गया है कि फुर्तीले
भारतीय सैनिकों ने अपने संगीनों (युद्ध में काम आने वाला चाकू) से अपने खुद से अधिक चीनियों से डटकर सामना किया। सैनिक युद्ध के इतिहास में ऐसा कोई और युद्ध नहीं देखा है।
रिपोर्ट के अनुसार मेजर शैतान सिंह कई गोलियों से घायल होने के बावजूद एक बंकर से दूसरे बंकर तक जाकर अपने जवानों का उत्साह बढ़ाते रहे। हालाँकि, भारतीय सेना के पास पुरानी राइफलें थीं तो चीनी संख्या में कहीं अधिक ही नहीं बल्कि अति उन्नत थे।
दिन समाप्त होने से पूर्व चार्ली कंपनी के मेजर शैतान सिंह के साथ 114 जवान शहीद हो गए और पाँच को उन्होंने युद्ध बंदी बना लिया गया, बाद में वे सभी वहां से भाग निकले। इस एतिहासिक लड़ाई में 1,000 से ज्यादा चीनी सैनिक मारे गए थे।
मेजर शैतान सिंह को सर्वोच्च बलिदान के लिए भारत में बहादुरी के दिए जाने वाले सर्वोच्च अवॉर्ड परमवीर चक्र से नवाजा गया।
भारत यह लड़ाई में परजित्त अवश्य हो गए हों परंतु इसके कई कारण रहे जिनमें से मुख्य वजह यह थी कि भारतीय सैनिकों के पास पर्याप्त साधान और हथियार नहीं थे लेकिन भारत ने इससे सीख लेते हुए सेना की प्रबलता पर कार्य किया जिसकी वजह से आज विश्व भर में भारतीय सेना का नाम है। चीन से इस युद्ध के बाद भारतीय सेना ने युद्ध में पाकिस्तान को तीन बार और चीन को 1967 की झड़प में हराया था।