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जस्टिन ट्रूडो तुष्टिकरण की राजनीति के 'हैंगओवर' में
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जस्टिन ट्रूडो के आरोपों के बाद भारत और कनाडा के बीच संबंध खराब दौर से गुजर रहे हैं और कनाडा में एक और घटनाक्रम पहले से ही तनावपूर्ण रिश्ते को और खराब कर सकता है।
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कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो सिख मतदाताओं के एक छोटे वर्ग और कनाडाई संसद के सिख सदस्यों के आभारी हैं, जिनके समर्थन के बिना उनकी सरकार नहीं चल सकती, दो अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञों ने कहा है।कनाडा के संघीय चुनाव 2019 और 2021 में विदेशी हस्तक्षेप की जांच कर रहे विशेष आयोग ने बुधवार को कनाडा की सरकार से भारत से संबंधित कई जानकारियां उपलब्ध कराने को कहा है। ट्रूडो का भारतीय राजनीति में दखल का इतिहासप्रोफेसर महापात्रा ने बताया कि हाल ही में कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की मौत को लेकर ओटावा ने भारत पर बेबुनियाद और सार्वजनिक आरोप लगाए थे। भारत सरकार की संलिप्तता का कोई सबूत देने में विफल रहने के बाद ट्रूडो सरकार ने चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप का एक और आरोप लगाया है।नई दिल्ली स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के वरिष्ठ रिसर्च फेलो बिनय कुमार सिंह ने माना कि ट्रूडो के पास राजनीति के बारे में एक अदूरदर्शी दृष्टिकोण है।विचारक ने रेखांकित किया कि जब ट्रूडो कट्टर अलगाववादी समूहों को खुश करने की कोशिश करते हैं। इसका उद्देश्य सिख समुदाय के कल्याण के लिए नहीं होता है, बल्कि यह केवल उनको क्रूरता और ह्रास की ओर ले जाता है।सिंह के अनुसार, कनाडा के चुनावों में भारत की भागीदारी के बारे में पूछताछ करने वाले आयोग का मकसद वास्तविक नहीं है। क्योंकि संस्था के सदस्यों को पहले से ही पता है कि उनका इरादा भारत-कनाडाई संबंधों को खराब करने का है।
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जस्टिन ट्रूडो तुष्टिकरण की राजनीति के 'हैंगओवर' में
जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर आरोप किए जाने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध खराब दौर से गुजर रहे हैं और कनाडा में एक और घटनाक्रम पहले से ही तनावपूर्ण रिश्ते को और खराब कर सकता है।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो सिख मतदाताओं के एक छोटे वर्ग और कनाडाई संसद के सिख सदस्यों के आभारी हैं, जिनके समर्थन के बिना उनकी सरकार नहीं चल सकती, दो अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञों ने कहा है।
कनाडा के संघीय चुनाव 2019 और 2021 में विदेशी हस्तक्षेप की जांच कर रहे विशेष आयोग ने बुधवार को कनाडा की सरकार से भारत से संबंधित कई जानकारियां उपलब्ध कराने को कहा है।
ट्रूडो का भारतीय राजनीति में दखल का इतिहास
कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडो-पैसिफिक स्टडीज (KIIPS) के संस्थापक प्रोफेसर चिंतामणि महापात्र ने गुरुवार को Sputnik भारत को बताया, "ट्रूडो ने अपनी पिछली भारत यात्रा के दौरान आंदोलनकारी किसानों का पक्ष लेकर भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करके भारतीय राजनयिक मिशनों को नुकसान पहुंचाने तथा भारत विरोधी अलगाववादियों को बढ़ावा देने वाले तत्वों द्वारा भारतीय राजनयिकों के खिलाफ धमकियों को रोकने में अपनी निष्क्रियता के कारण पहले ही भारत के साथ लड़ाई छेड़ दी है।"
प्रोफेसर महापात्रा ने बताया कि हाल ही में कनाडा में
खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की मौत को लेकर ओटावा ने भारत पर बेबुनियाद और सार्वजनिक आरोप लगाए थे। भारत सरकार की संलिप्तता का कोई सबूत देने में विफल रहने के बाद ट्रूडो सरकार ने चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप का एक और आरोप लगाया है।
प्रोफेसर महापात्रा ने कहा, "तथ्य यह है कि 25 सदस्यीय न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थन के बिना, ट्रूडो के नेतृत्व वाली लिबरल पार्टी कनाडाई संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में बहुमत का समर्थन खो देगी। और खालिस्तानी समर्थक जगमीत सिंह न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता हैं।"
नई दिल्ली स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के वरिष्ठ रिसर्च फेलो
बिनय कुमार सिंह ने माना कि
ट्रूडो के पास राजनीति के बारे में एक अदूरदर्शी दृष्टिकोण है।
सिंह ने Sputnik भारत से कहा, "जस्टिन ट्रूडो की राजनीति की शैली भारत में गठबंधन सहयोगियों की राजनीति से अलग नहीं है। दोनों की दृष्टि अदूरदर्शी है और वे तुष्टीकरण की राजनीति के हैंगओवर में हैं।"
विचारक ने रेखांकित किया कि जब ट्रूडो कट्टर अलगाववादी समूहों को खुश करने की कोशिश करते हैं। इसका उद्देश्य सिख समुदाय के कल्याण के लिए नहीं होता है, बल्कि यह केवल उनको क्रूरता और ह्रास की ओर ले जाता है।
सिंह के अनुसार, कनाडा के चुनावों में भारत की भागीदारी के बारे में पूछताछ करने वाले आयोग का मकसद वास्तविक नहीं है। क्योंकि संस्था के सदस्यों को पहले से ही पता है कि उनका इरादा
भारत-कनाडाई संबंधों को खराब करने का है।
"लेकिन आज का भारत वह भारत नहीं है जो तीन दशक पहले हुआ करता था। यह एक नया भारत है, और अगर कनाडा ने इसके गौरव को ठेस पहुंचाने की कोशिश की तो वह पीछे नहीं हटेगा।"