विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

UAV को मंगल ग्रह पर उड़ाने के लिए ग्रह का हल्का वातावरण होगा चुनौती: वैज्ञानिक

© Photo : NASA/JPL-Caltech via APMars
Mars - Sputnik भारत, 1920, 21.02.2024
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भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अपने पहले सफल मंगल मिशन के बाद दूसरे मंगल मिशन की तैयारी कर रही है और मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस बार इसरो एक हेलीकॉप्टर नुमा यान को ख़ास उपकरणों के साथ मंगल पर भेज सकती है हालांकि यह अभी वैचारिक चरण में है।
मार्बल पर आयोजित एक वेबिनार के दौरान यह जानकारी कुछ दिन पहले विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला के वैज्ञानिक जयदेव प्रदीप ने साझा की थी। इस आयोजन के दौरान उन्होंने अपनी राय में बताया कि इस तरह के हेलीकॉप्टर के जरिए उपकरणों को मंगल पर भेजा जा सकता है।
मंगल ग्रह पर जाने वाला UAV, मार्सियन बाउंड्री लेयर एक्सप्लोरर ले जाएगा, जिसमें मंगल ग्रह के हवाई अन्वेषण के लिए पेलोड का एक सूट होगा। हवाई वाहन को मंगल ग्रह के वायुमंडल की रूपरेखा तैयार करने के लिए मंगल ग्रह की पतली हवा में 100 मीटर तक उड़ान भरने में सक्षम बनाने के लिए डिज़ाइन किया जाएगा।
इसके जरिए ग्रह के वायुमंडलीय मापदंडों की उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली ऊर्ध्वाधर प्रोफाइलिंग की जा सकेगी और मंगल की निकट-सतह सीमा परतों में अपनी तरह का पहला इन-सीटू माप कर सकेगा। इस रोटरक्राफ्ट के साथ जाने वाले पेलोड में धूल एरोसोल के ऊर्ध्वाधर वितरण को मापने के लिए तापमान सेंसर, आर्द्रता सेंसर, दबाव सेंसर, हवा की गति सेंसर, विद्युत क्षेत्र सेंसर और ट्रेस प्रजाति और धूल सेंसर शामिल किये जा सकेंगे।
Sputnik India ने इस वैचारिक मंगल मिशन के बारे में भारत में विज्ञान प्रसार विभाग के विज्ञान और प्रौद्योगिकी में वैज्ञानिक डॉ टी वी वेंकटेश्वरन से बात की। उन्होंने आगे बताया कि कुछ दिन पहले एयरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने इसरो के साथ वेबिनार आयोजित किया था। उस आयोजन में मंगल ग्रह को जानने का एक तरीका सुझाया गया था।
उन्होंने आगे बताया कि मंगल ग्रह पर उड़ने के लिए चार मुख्य तरीके हैं, जिनमें हीलीयम गैस के गुब्बारा, फिक्स विंग तकनीक, फ्लैप विंग और चौथा है रोटर की मदद से हेलिकाप्टर नुमा यान की मदद से उड़ना। इन सभी तरीकों की अपनी अपनी चुनौतियां हैं लेकिन उड़ान की संभावना भी बहुत प्रबल है।

"बड़े हीलियम गुब्बारे का इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उसे कंट्रोल करना मुश्किल होगा। वहीं फिक्स विंग की तकनीक से उड़ान संभव है लेकिन उसकी उड़ान क्षमता अधिक नहीं होती है। तीसरा है फ्लैप विंग लेकिन उसे भी उड़ाकर कंट्रोल करना एक बड़ी चुनौती है। और चौथा तरीका है हेलिकॉप्टर जैसे रोटर की मदद से उड़ान लेकिन मंगल पर इसमें से कौन सा तरीका अपनाया जाएगा वह हमारे अध्ययन पर निर्भर होगा," डॉ टी वी वेंकटेश्वरन ने बताया।

आगे उन्होंने Sputnik India को बताया कि मान लीजिए कि UAV को उड़ाने के प्रपोजल को इसरो द्वारा मान लिया जाता है तो सबसे पहले इससे जुड़ी रिसर्च करने वाले लोगों को इकट्ठा करना होगा।

"भारत को देखना होगा कि यह कितना वजन लेकर जाएगा यह उसी के हिसाब से बनाया जाएगा। और इसके बाद उसे विभिन्न चरणों में अलग अलग तरीकों से टेस्ट किया जाएगा तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह आने वाले मंगल मिशन में जाएगा या नहीं, क्योंकि इसमें और समय लगेगा," डॉ वेंकटेश्वरन ने कहा।

जब वैज्ञानिक से मंगल ग्रह पर UAV तैनात करने से जुड़े संभावित जोखिमों के बारे में पूछा गया, उन्होंने कहा कि मंगल ग्रह का वातावरण इसमें सबसे बड़ा खतरा होगा। क्योंकि मंगल और पृथ्वी के वातावरण में बहुत बड़ा अंतर है। मंगल का वातावरण बहुत हल्का होता है जिसमें किसी भी यान को उड़ाना मुश्किल होगा।

"मंगल पर कुछ भी उड़ाना है तो यह बहुत कठिन होता है क्योंकि इसके लिए अपथ्रस्ट चाहिए होगा। मंगल पर वातावरण बहुत हल्का है। इसलिए वहां किसी भी चीज को उड़ाना बहुत मुश्किल है, उसके लिए बहुत रिसर्च चाहिए जैसे वजन कम होना, ताकत से उड़ना जैसे बारीकियों को ध्यान में रखकर यह UAV तैयार करना होगा। इसके साथ साथ हमें मंगल की धूल भरी आंधियों को भी याद रखना जरूरी है," वैज्ञानिक ने बताया।

इसरो मंगलयान के लिए एक अनुवर्ती मिशन भेजने की योजना पर विचार कर रहा है, जो मंगल की सतह पर उतरेगा। उम्मीद है कि UAV मिशन का हिस्सा हो और लैंडर के साथ लाल ग्रह तक जाए।
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