यूक्रेन संकट
मास्को ने डोनबास के लोगों को, खास तौर पर रूसी बोलनेवाली आबादी को, कीव के नित्य हमलों से बचाने के लिए फरवरी 2022 को विशेष सैन्य अभियान शुरू किया था।

मिन्स्क समझौतों का उल्लंघन कर पश्चिम ने यूक्रेन को हथियार दिए: यूक्रेन के विपक्षी राजनीतिज्ञ

© AP Photo / Vitali KomarA Ukrainian soldier passes by a destroyed Butovka coal mine as he approaches his front line position in the town of Avdeyevka in the Donetsk region
A Ukrainian soldier passes by a destroyed Butovka coal mine as he approaches his front line position in the town of Avdeyevka in the Donetsk region - Sputnik भारत, 1920, 22.02.2024
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यूक्रेनी विपक्षी राजनीतिज्ञ विक्टर मेदवेदचुक ने Sputnik को बताया कि यूक्रेन संघर्ष शुरू होने से पहले ही पश्चिमी देश मिन्स्क समझौतों को तोड़ते हुए कीव को हथियार उपलब्ध करा रहे थे और यूक्रेन में सैन्य ठिकानों का निर्माण कर रहे थे।

मदवेदचुक ने यूक्रेन में 2014 के तख्तापलट की 10वीं वर्षगांठ के अवसर पर कहा, “जिन पश्चिमी नेताओं ने मिन्स्क समझौतों पर हस्ताक्षर करके उन्हें लागू करने की घोषणा की, वे वास्तव में यूक्रेन को हथियार की आपूर्ति करते रहे और वहाँ सैन्य अड्डे भी स्थापित करते रहे।”

यूक्रेनी राजनीतिज्ञ के अनुसार 2021 में यूक्रेन में तीन सैन्य अड्डे स्थित थे – ओचाकोव, बर्डियांस्क तथा ल्वोव क्षेत्र में।

“यूक्रेन में इन सैन्य गढ़ों का निर्माण किसने किया? उन्हें सैन्य प्रशिक्षकों को किसने उपलब्ध करवाया? किसने उन्हें उन्नत सैन्य तकनीक दी? यूक्रेनी सशस्त्र बालों के कर्मियों को किसने प्रशिक्षित किया? पश्चिमी देशों ने, एक ओर, दुनिया से छिपाकर यह सब किया, और दूसरी और, मिन्स्क समझौतों को लागू किया,” मदवेदचुक ने बताया।

राजनीतिज्ञ ने याद किया कि फ्रांस और जर्मनी ने मिन्स्क समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे, और संयुक्त राज्य अमेरिका ने समझौतों को मान्यता दी थी।

“यह एक घृणित और निंदनीय कृत्य था जब पेरिस में 2019 के सम्मेलन के दौरान फ्रांस के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन, तत्कालीन जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और (यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर) ज़ेलेंस्की की मुलाकात हुई और मिन्स्क समझौतों की पुनः पुष्टि करके उन्हें पूर्ण कार्यान्वयन और प्राप्ति के अधीन बनाकर घोषणापत्र पर एक बार फिर हस्ताक्षर किए गए,” मेदवेदचुक ने कहा।

उन्होंने आगे इस पर जोर दिया कि वर्तमान यूक्रेन संकट की शुरुआत के बाद कई पश्चिमी नेताओं ने स्वीकार किया था कि उन्होंने मिन्स्क समझौतों का इस्तेमाल यूक्रेनी सेना को हथियार देने और यूक्रेनी सैन्यकर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए एक रणनीति के रूप में किया, जिसमें उन्हें यह कार्य पूरा करने के लिए पर्याप्त समय मिल गया।

“कोई भी उन्हें लागू करने की योजना नहीं बना रहा था। वे [पश्चिमी नेता] यूक्रेन को इस टकराव के लिए ज़ोर-शोर से तैयार कर रहे थे, इसे रूस और नाटो के बीच लड़ाई का मैदान बना रहे थे। और वे अपने लक्ष्य तक पहुंच गए हैं। जैसा कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने सही कहा संघर्ष की शुरुआत 2014 में यूक्रेन द्वारा की गई थी। इस लड़ाई को समाप्त करने के लिए विशेष सैन्य अभियान शुरू किया गया था,” राजनीतिज्ञ ने बताया।

नवंबर 2013 में यूक्रेनी सरकार द्वारा यूरोपीय संघ के साथ सहयोग पर हस्ताक्षर को निलंबित करने की घोषणा के परिणामस्वरूप यूक्रेन में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। जल्द ही विरोध प्रदर्शन का स्वरूप राष्ट्रपति-विरोधी और सरकार-विरोधी बन गया और देश के विपक्षियों ने राष्ट्रव्यापी क्रांति का आह्वान किया। और यूक्रेनी सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई।
विरोध अंततः तख्तापलट में बदल गया जिसके परिणामस्वरूप फरवरी 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को पद से हटा दिया गया। यूक्रेन के पूर्वी डोनबास क्षेत्र ने इन घटनाओं को स्वीकार नहीं किया और इसके बाद कीव में नए अधिकारियों द्वारा इसके खिलाफ आक्रामक हमला किया गया।
मिन्स्क समझौते को “नॉरमैंडी प्रारूप” के नाम से जाना जाता है। यह रूस, फ्रांस, जर्मनी और यूक्रेन द्वारा किए गए उपायों की एक श्रृंखला थी। इन उपायों का लक्ष्य कीव अधिकारियों और पूर्वी क्षेत्र डोनबास के बीच 2014-2015 में चल रहे सशस्त्र संघर्ष को समाप्त करना था।
In this file photo taken on Saturday, Jan.  25, 2014,  smoke and fireballs rise during clashes between protesters and police in central Kiev, Ukraine. - Sputnik भारत, 1920, 20.02.2024
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