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भारत की रणनीतिक स्वायत्तता: ईरान से संबंधों में बाहरी दबाव से बचने की कोशिश
भारत की रणनीतिक स्वायत्तता: ईरान से संबंधों में बाहरी दबाव से बचने की कोशिश
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नए अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा मार्को रुबियो और माइकल वाल्ट्ज को राष्ट्रीय सुरक्षा दल में चुने जाने के बाद इससे भारत की कनेक्टिविटी पहल और ईरान-भारत संबंधों पर... 13.11.2024, Sputnik भारत
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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा दल में ईरान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की वकालत करने वाले सीनेटर मार्को रुबियो को राज्य सचिव और प्रतिनिधि माइकल वाल्ट्ज को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया।दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने ट्रम्प द्वारा चुने गए दोनों नेताओं को इजराइल समर्थक और ईरान का कट्टर विरोधी माना जाता है। इन नियुक्तियों के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि ईरान के प्रति ट्रंप का रवैया आक्रामक रहने वाला है। भारत ने अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक व्यापार पहुँच के लिए महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह में निवेश किया हुआ है जो ईरान को लेकर कड़ी अमेरिकी नीति के कारण संकट में पड़ सकता है।इसके अतिरिक्त, ईरान भारत के लिए एक महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है और अगर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान पर कड़े प्रतिबंध तेल आयात को सीमित करने का दवाब बनाते हैं तो इससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित होगी। यह रुख भारत के सामरिक संतुलन को भी जटिल बना सकता है क्योंकि यह अमेरिका और ईरान दोनों के साथ संबंधों को आगे बढ़ाता है।अगर अमेरिका और ईरान के बीच नई सरकार में भी इसी तरह से तनाव बढ़ता रहा तो मध्य पूर्व में अस्थिरता आ सकती है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और खाड़ी में भारत के आर्थिक हित प्रभावित हो सकते हैं। ईरान पर ट्रंप के आक्रामक रुख पर भारतीय सामरिक मामलों और मध्य पूर्व विशेषज्ञ कमर आगा ने Sputnik भारत को बताया कि ईरान के विरुद्ध नीति पर ट्रंप का 'अधिकतम दबाव' अमेरिका के लिए उल्टा पड़ सकता है, अगर वह अपने पहले राष्ट्रपति पद के रुख को दोहराना चाहते हैं।ब्रिक्स और SCO में प्रवेश के बाद ईरान की स्थिति के बारे में बात करते हुए सामरिक विशेषज्ञ ने कहा कि ब्रिक्स और SCO जैसे गैर-पश्चिमी समूहों में ईरान का प्रवेश भी उसे अमेरिकी दबाव का सामाना करने के लिए बहुपक्षीय ढाँचे का लाभ उठाने का अवसर प्रदान करता है।इजराइल द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले को लेकर ट्रंप द्वारा पिछली सरकार के निर्णय को बदलने वाली सोच को नकारते हुए कमर आगा कहते हैं कि अगर ट्रंप ईरानी परमाणु सुविधाओं पर आक्रमण करने में इजरायल का समर्थन करने का निर्णय करते हैं, तो इससे अमेरिका को मध्य-पूर्व और व्यापक क्षेत्र में अपनी विश्वसनीयता खो का संकट होगा।ट्रम्प के ईरान को लेकर देखे जा रहे रवैये से भारत पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जानकारी देते हुए आगा कहते हैं कि भारत से अपनी विदेश नीति के विकल्पों में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने की आशा है, और इसमें ईरान के साथ उसके संबंध भी समिलित हैं।अंत में मध्य पूर्व विशेषज्ञ कमर आगा ने कहा कि भारत से आशा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने में एक शांत कूटनीति अपनाएगा, जो पहले ट्रंप प्रशासन के दौरान भी दिखाई दी थी।
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भारत, भारत सरकार, भारत का विकास, दिल्ली , अमेरिका, डॉनल्ड ट्रम्प, ईरान, ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी, इजराइल , विशेषज्ञ, 2024 चुनाव, चुनाव , जो बाइडन , नरेन्द्र मोदी
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भारत की रणनीतिक स्वायत्तता: ईरान से संबंधों में बाहरी दबाव से बचने की कोशिश
नए अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा मार्को रुबियो और माइकल वाल्ट्ज को राष्ट्रीय सुरक्षा दल में चुने जाने के बाद इससे भारत की कनेक्टिविटी पहल और ईरान-भारत संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में Sputnik भारत ने विशेषज्ञ के द्वारा जानने का प्रयास किया।
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा दल में ईरान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की वकालत करने वाले सीनेटर मार्को रुबियो को राज्य सचिव और प्रतिनिधि माइकल वाल्ट्ज को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया।
दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने ट्रम्प द्वारा चुने गए दोनों नेताओं को इजराइल समर्थक और ईरान का कट्टर विरोधी माना जाता है। इन नियुक्तियों के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि ईरान के प्रति ट्रंप का रवैया आक्रामक रहने वाला है। भारत ने अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक व्यापार पहुँच के लिए महत्वपूर्ण
चाबहार बंदरगाह में निवेश किया हुआ है जो ईरान को लेकर कड़ी अमेरिकी नीति के कारण संकट में पड़ सकता है।
इसके अतिरिक्त, ईरान भारत के लिए एक महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है और अगर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान पर कड़े प्रतिबंध
तेल आयात को सीमित करने का दवाब बनाते हैं तो इससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित होगी। यह रुख भारत के सामरिक संतुलन को भी जटिल बना सकता है क्योंकि यह अमेरिका और ईरान दोनों के साथ संबंधों को आगे बढ़ाता है।
अगर अमेरिका और ईरान के बीच नई सरकार में भी इसी तरह से तनाव बढ़ता रहा तो मध्य पूर्व में अस्थिरता आ सकती है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और खाड़ी में
भारत के आर्थिक हित प्रभावित हो सकते हैं। ईरान पर ट्रंप के आक्रामक रुख पर भारतीय सामरिक मामलों और मध्य पूर्व विशेषज्ञ
कमर आगा ने Sputnik भारत को बताया कि ईरान के विरुद्ध नीति पर ट्रंप का 'अधिकतम दबाव' अमेरिका के लिए उल्टा पड़ सकता है, अगर वह अपने पहले राष्ट्रपति पद के रुख को दोहराना चाहते हैं।
कमर आगा ने कहा, "ईरान चार वर्ष पहले की तुलना में अमेरिकी नीति का सामना करने के लिए बेहतर स्थिति में है। तेल व्यापार के संदर्भ में, सदैव देखा कि चीन के साथ बढ़ते आर्थिक और सामरिक संबंधों के कारण पिछले वर्ष ईरान का निर्यात पाँच वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया। ईरान और सऊदी अरब के मध्य चीन की मध्यस्थता वाले शांति समझौते ने तेहरान और अरब दुनिया के मध्य तनाव को कम करने का भी कार्य किया है, जिससे रणनीतिक समझ में योगदान मिला है।"
ब्रिक्स और SCO में प्रवेश के बाद ईरान की स्थिति के बारे में बात करते हुए सामरिक विशेषज्ञ ने कहा कि ब्रिक्स और SCO जैसे गैर-पश्चिमी समूहों में ईरान का प्रवेश भी उसे
अमेरिकी दबाव का सामाना करने के लिए बहुपक्षीय ढाँचे का लाभ उठाने का अवसर प्रदान करता है।
उन्होंने बताया, "राष्ट्रीय मुद्राओं के बढ़ते उपयोग और बहुध्रुवीयता की ओर एक स्पष्ट परिवर्तन के कारण ईरान पर प्रतिबंधों को बढ़ाने की संभावना लगभग अप्रभावी हो जाएगी, जिसमें वैश्विक दक्षिण देशों की वैश्विक व्यवस्था में अधिक भूमिका होगी।"
इजराइल द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले को लेकर ट्रंप द्वारा पिछली सरकार के निर्णय को बदलने वाली सोच को नकारते हुए कमर आगा कहते हैं कि अगर ट्रंप
ईरानी परमाणु सुविधाओं पर आक्रमण करने में इजरायल का समर्थन करने का निर्णय करते हैं, तो इससे अमेरिका को मध्य-पूर्व और व्यापक क्षेत्र में अपनी विश्वसनीयता खो का संकट होगा।
कमर आगा ने बताया, "हमने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के मतदान पैटर्न के माध्यम से देखा कि इजरायल में निरंतर सैन्य अभियानों का समर्थन करने में अमेरिका लगभग अलग-थलग पड़ गया है। इजरायल को अमेरिका के लिए एक दायित्व के रूप में देखा जाने लगा है और अरब-तेहरान सामान्यीकरण के साथ, इसे अब इस क्षेत्र में अमेरिकी विदेश नीति के हितों की सेवा करने के रूप में नहीं देखा जाता है जैसा कि वह पहले करता था।"
ट्रम्प के ईरान को लेकर देखे जा रहे रवैये से भारत पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जानकारी देते हुए आगा कहते हैं कि भारत से अपनी
विदेश नीति के विकल्पों में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने की आशा है, और इसमें ईरान के साथ उसके संबंध भी समिलित हैं।
आगा ने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति निरंतरता और परिवर्तन के मंत्र की विशेषता रही है, जिसे हम बाहरी परिस्थितियों की परवाह किए बिना मजबूत किए जाने की आशा करते हैं। जैसा कि भारतीय नीति-निर्माताओं ने कई अवसरों पर कहा है, भारत चाबहार बंदरगाह और ईरान के साथ अपने ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।"
अंत में मध्य पूर्व विशेषज्ञ कमर आगा ने कहा कि भारत से आशा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने में एक शांत कूटनीति अपनाएगा, जो पहले ट्रंप प्रशासन के दौरान भी दिखाई दी थी।