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क्या ब्रिक्स को ट्रम्प की धमकी अमेरिकी डॉलर का भाग्य बचा सकती है?
क्या ब्रिक्स को ट्रम्प की धमकी अमेरिकी डॉलर का भाग्य बचा सकती है?
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अमेरिकी नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल मीडिया एक्स पर ब्रिक्स द्वारा एक नई मुद्रा बनाने या विश्व के रिजर्व के रूप में किसी अन्य विकल्प का समर्थन करने के लिए "100 प्रतिशत टैरिफ" लगाने का ऐलान किया है।
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क्रेमलिन प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने ट्रम्प के बयान पर कहा कि डॉलर के इस्तेमाल के लिए दवाब बनाने से देश डॉलर को बदलने में तेजी कर सकते हैं। इसके साथ, हाल ही में अमेरिकी डॉलर पर भारत के रुख को स्पष्ट करते हुए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि न ही भारत की डॉलर से कोई दुश्मनी है और न ही वह आर्थिक या रणनीतिक नीतियों के माध्यम से इसे लक्षित करता है। हालाँकि, जब व्यापार भागीदारों के पास डॉलर की कमी होती है, तो चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे भारत को वैकल्पिक "समाधान तलाशने" पड़ते हैं।ट्रम्प द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने से पहले ब्रिक्स देशों को लेकर किए गए ऐलान पर भारत में आर्थिक मामलों के जानकार डॉ. शरद कोहली ने Sputnik India को बताया कि हमने डॉलर की निर्भरता की वजह से अर्थव्यवस्थाओं को ढहते देखा है। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी पर बोलते हुए डॉ. शरद कोहली ने कहा कि यह धमकी अनुचित और अव्यवहारिक है। वहीं प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और तीन दशकों तक जवाहर लाल विश्वविद्यालय (JNU) में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफेसर अरुण कुमार ने ट्रम्प के बयान पर Sputnik India को बताया कि अमेरिका नहीं चाहेगा कि वैकल्पिक मुद्रा उभरे क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में डॉलर अमेरिका को बहुत सारे लाभ प्रदान करता है। प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा, "रूस जैसे राज्यों के खिलाफ प्रतिबंध, स्विफ्ट से बहिष्कार, और स्थानीय मुद्राओं में व्यापार निपटाने के लिए ब्रिक्स के विकासशील रुझान डी-डॉलरीकरण पैटर्न को और अधिक व्यापक बना रहे हैं।"
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क्या ब्रिक्स को ट्रम्प की धमकी अमेरिकी डॉलर का भाग्य बचा सकती है?
19:19 02.12.2024 (अपडेटेड: 19:20 02.12.2024) अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर ब्रिक्स द्वारा एक नई मुद्रा बनाने या विश्व के रिजर्व के रूप में किसी अन्य विकल्प का समर्थन करने के लिए "100 प्रतिशत टैरिफ" लगाने का ऐलान किया है।
क्रेमलिन प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने ट्रम्प के बयान पर कहा कि डॉलर के इस्तेमाल के लिए दवाब बनाने से देश डॉलर को बदलने में तेजी कर सकते हैं।
पेसकोव ने कहा, "यदि संयुक्त राज्य अमेरिका बल का प्रयोग करके देशों को डॉलर का उपयोग करने के लिए बाध्य करता है, तो इससे राष्ट्रीय मुद्राओं पर स्विच करने की प्रवृत्ति में तेजी आ सकती है।"
इसके साथ, हाल ही में
अमेरिकी डॉलर पर भारत के रुख को स्पष्ट करते हुए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि न ही भारत की डॉलर से कोई दुश्मनी है और न ही वह आर्थिक या रणनीतिक नीतियों के माध्यम से इसे लक्षित करता है। हालाँकि, जब व्यापार भागीदारों के पास डॉलर की कमी होती है, तो चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे भारत को वैकल्पिक "समाधान तलाशने" पड़ते हैं।
जयशंकर ने कहा "अमेरिकी नीतियाँ कभी-कभी डॉलर-आधारित व्यापार को जटिल बना देती हैं, जिससे व्यापार को बनाए रखने के लिए समाधान की आवश्यकता होती है।"
ट्रम्प द्वारा
अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने से पहले ब्रिक्स देशों को लेकर किए गए ऐलान पर भारत में आर्थिक मामलों के जानकार
डॉ. शरद कोहली ने Sputnik India को बताया कि हमने डॉलर की निर्भरता की वजह से अर्थव्यवस्थाओं को ढहते देखा है।
डॉ. कोहली ने कहा, "विकासशील देशों में 60% विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर में है। कच्चे तेल का व्यापार, स्विफ्ट ट्रांसफर और अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय भुगतान डॉलर में होते हैं। यह प्रभुत्व अमेरिका को अपार आर्थिक शक्ति देता है। देश अब इस "डॉलर दादागिरी" से बचना चाहते हैं और अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं। ब्रिक्स मुद्रा प्रस्ताव का उद्देश्य सदस्य देशों को डॉलर की अस्थिरता, विनिमय दर में उतार-चढ़ाव और आर्थिक संकट के दौरान विदेशी मुद्रा की कमी से बचाना है।"
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी पर बोलते हुए डॉ. शरद कोहली ने कहा कि यह धमकी अनुचित और अव्यवहारिक है।
उन्होंने कहा, "उदाहरण के लिए, भारत पर 100% टैरिफ लगाने से अमेरिकी नागरिकों के लिए सामान बेहद महंगे हो जाएंगे क्योंकि वह अपनी जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। इस तरह के टैरिफ अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर असर डालेंगे और विकासशील तथा ब्रिक्स देशों को आर्थिक युद्ध की ओर ले जा सकते हैं। यह व्यावहारिकता से अधिक बयानबाजी लगती है। ऐसे उपायों को लागू करने से ब्रिक्स देशों के हितों के साथ-साथ अमेरिकी हितों को भी नुकसान पहुंचेगा।"
वहीं प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और तीन दशकों तक जवाहर लाल विश्वविद्यालय (JNU) में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले
प्रोफेसर अरुण कुमार ने ट्रम्प के बयान पर Sputnik India को बताया कि अमेरिका नहीं चाहेगा कि
वैकल्पिक मुद्रा उभरे क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में डॉलर अमेरिका को बहुत सारे लाभ प्रदान करता है।
प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा, "रूस जैसे राज्यों के खिलाफ प्रतिबंध, स्विफ्ट से बहिष्कार, और स्थानीय मुद्राओं में व्यापार निपटाने के लिए ब्रिक्स के विकासशील रुझान डी-डॉलरीकरण पैटर्न को और अधिक व्यापक बना रहे हैं।"
अंत में उन्होंने कहा, "नये अमेरिकी करों से अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे पर कम निर्भर हो जाएंगी और समय के साथ विश्व में अमेरिका का एकाधिकार कमज़ोर हो जाएगा। डॉलर का आधिपत्य और अमेरिकियों की शक्ति समय के साथ खत्म हो जाएगी, और फिर बड़े पैमाने पर एक बहुध्रुवीय दुनिया उभरेगी।"