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भारत दुर्लभ मृदाओं की आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा: विश्व ऊर्जा परिषद प्रमुख
भारत दुर्लभ मृदाओं की आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा: विश्व ऊर्जा परिषद प्रमुख
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दुर्लभ मृदा तत्व या महत्वपूर्ण खनिज, विमानन, अंतरिक्ष और मिसाइलों सहित अनेक उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिससे वे राष्ट्र-राज्यों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बन जाते हैं।
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विश्व ऊर्जा परिषद के अध्यक्ष अदनान अमीन के अनुसार, यदि भारत प्रसंस्करण क्षमता और औद्योगिक अवसंरचना विकसित कर लेता है, तो वह विश्व में दुर्लभ मृदाओं की आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को दुर्लभ मृदा खनिजों के शोधन हेतु प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि वह इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में उभर सके, क्योंकि दुर्लभ मृदा खनिज इतने "दुर्लभ" नहीं हैं।गौरतलब है कि अमेरिका ने कुछ दिन पहले ही अपने दीर्घकालिक सहयोगी जापान के साथ दुर्लभ धातुओं की खरीद के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और अमीन का मानना है कि निकट भविष्य में अधिक से अधिक देश इन महत्वपूर्ण खनिजों से जुड़ी अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के इच्छुक होंगे।यह बात रेखांकित करना उचित है कि दुर्लभ मृदा तत्वों पर चीन का लगभग एकाधिकार है तथा इसके उत्पादन में 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा चीन का है।इस वर्ष के प्रारम्भ में चीन ने अमेरिका को दुर्लभ मृदा तत्वों के निर्यात पर रोक लगा दी थी, जिसके परिणामस्वरूप विश्व की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच लम्बे समय तक तनाव बना रहा।इसके बाद पिछले महीने के अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग के साथ बैठक के बाद, दुर्लभ मृदा संबंधी बाधा को हटा लिया गया।
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भारत दुर्लभ मृदाओं की आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा: विश्व ऊर्जा परिषद प्रमुख
दुर्लभ मृदा तत्व या महत्वपूर्ण खनिज विमानन, अंतरिक्ष और मिसाइलों सहित अनेक उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिससे वे राष्ट्र-राज्यों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बन जाते हैं।
विश्व ऊर्जा परिषद के अध्यक्ष अदनान अमीन के अनुसार, यदि भारत प्रसंस्करण क्षमता और औद्योगिक अवसंरचना विकसित कर लेता है, तो वह विश्व में दुर्लभ मृदाओं की आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
अमीन ने शुक्रवार को कहा, महत्वपूर्ण खनिज मुद्दा इस समय बहुत ही प्रासंगिक है। मुझे लगता है कि इसके बारे में हमें कुछ बुनियादी बातें समझने की ज़रूरत है। पहली बात तो यह है कि जब हम दुर्लभ मृदा खनिजों की बात करते हैं, तो वे वास्तव में इतने दुर्लभ नहीं हैं। वे भारत सहित कई जगहों पर उपलब्ध हैं। वास्तविक मुद्दा यह है कि आप इन दुर्लभ खनिजों को ऊर्जा परिवर्तन के लिए उपयोगी तत्वों में परिष्कृत और संसाधित करने की क्षमता कैसे विकसित करते हैं?
उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को दुर्लभ
मृदा खनिजों के शोधन हेतु प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि वह इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में उभर सके, क्योंकि दुर्लभ मृदा खनिज इतने "दुर्लभ" नहीं हैं।
अमीन ने कहा, "भारत में संभावना है, लेकिन यह पुनः नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने जैसा ही है, जिसमें प्रसंस्करण और शोधन के लिए औद्योगिक क्षमता का विकास करना शामिल है, जो कि इसका मूल बिंदु होगा।"
गौरतलब है कि अमेरिका ने कुछ दिन पहले ही अपने दीर्घकालिक सहयोगी जापान के साथ दुर्लभ धातुओं की खरीद के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और अमीन का मानना है कि निकट भविष्य में अधिक से अधिक देश इन महत्वपूर्ण खनिजों से जुड़ी अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के इच्छुक होंगे।
अमीन ने कहा, "यह (दुर्लभ मृदा) एक ऐसा क्षेत्र होगा, जहां कई लोग आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के तरीकों पर विचार करेंगे। और मेरा मानना है कि इसमें भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है।"
यह बात रेखांकित करना उचित है कि
दुर्लभ मृदा तत्वों पर चीन का लगभग एकाधिकार है तथा इसके उत्पादन में 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा चीन का है।
इस वर्ष के प्रारम्भ में चीन ने अमेरिका को दुर्लभ मृदा तत्वों के निर्यात पर रोक लगा दी थी, जिसके परिणामस्वरूप विश्व की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच लम्बे समय तक तनाव बना रहा।
इसके बाद पिछले महीने के अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग के साथ बैठक के बाद,
दुर्लभ मृदा संबंधी बाधा को हटा लिया गया।