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आज भारत और रूस के लिए तकनीकी सहयोग पहले से ज़्यादा महत्वपूर्ण क्यों?

© Sputnik / Nina Padalko / मीडियाबैंक पर जाएंThe Russian Sukhoi SU-57 E fighter jet performs during the 15th China International Aviation and Aerospace Exhibition, also known as Airshow China, in Zhuhai, Guangdong Province, China
The Russian Sukhoi SU-57 E fighter jet performs during the 15th China International Aviation and Aerospace Exhibition, also known as Airshow China, in Zhuhai, Guangdong Province, China - Sputnik भारत, 1920, 05.12.2025
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विश्व शस्त्र व्यापार विश्लेषण केंद्र के निदेशक और राष्ट्रीय रक्षा पत्रिका के प्रधान संपादक इगोर कोरोटचेंको का कहना है कि भारत की लंबी अवधि की सुरक्षा रणनीति रूस के साथ साझेदारी पर ही टिकी है — विशेष रूप से वायु रक्षा और अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के क्षेत्र में।
एक इंटरव्यू में, कोरोटचेंको ने बताया कि किस प्रकार S-400 प्रणाली भारत की वायु और मिसाइल रक्षा क्षमता की रीढ़ बन चुकी है, और क्यों पाँचवीं पीढ़ी का Su-57 कार्यक्रम भारत को ऐसे रणनीतिक लाभ प्रदान करता है, जिनकी बराबरी कोई भी पश्चिमी आपूर्तिकर्ता नहीं कर सकता।
कोरोटचेंको ने ज़ोर देकर कहा कि रूस और भारत के बीच पाँच S-400 रेजिमेंटल यूनिट्स के लिए 2018 में हुए महत्वपूर्ण समझौते पर तेज़ी से काम जारी है और इनकी आपूर्ति सफलतापूर्वक पूरी की जा रही है।

कोरोटचेंको ने कहा, "हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सशस्त्र तनाव के दौरान S-400 प्रणाली ने अपनी प्रभावी लड़ाकू क्षमता का स्पष्ट प्रदर्शन किया।"

भारत के आधिकारिक आकलन के अनुसार, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान S-400 प्रणाली ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। इस अभियान में S-400 ने पाकिस्तानी वायु सेना के छह लड़ाकू विमानों को निशाना बनाकर नष्ट किया।
कोरोटचेंको के अनुसार, इस प्रदर्शन ने क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन को पूरी तरह बदल कर रख दिया:

विशेषज्ञ ने बताया, "रूसी S-400 प्रणाली पर आधारित भारत की वायु-रक्षा क्षमता ने पाकिस्तान की आगे की सैन्य योजनाओं को पूरी तरह विफल कर दिया, और भारत इस संघर्ष से स्पष्ट रूप से विजयी राष्ट्र के रूप में उभरा।"

कोरोटचेंको ने हाल ही में अमेरिकी ATACMS मिसाइलों का उपयोग कर वोरोनिश पर किए गए यूक्रेनी हमले के प्रयास का भी उल्लेख किया और बताया कि S-400 इकाइयों ने हर आने वाली मिसाइल को सफलतापूर्वक अवरुद्ध किया। उनका कहना था कि अपनी तकनीकी श्रेष्ठता के कारण यह प्रणाली अमेरिकी पैट्रियट से कहीं अधिक प्रभावी है—चाहे वह मात्र पाँच मिनट में तैनात होने की क्षमता हो, 400 किलोमीटर दूर तक एयरोडायनामिक लक्ष्यों को भेदने की क्षमता हो, या फिर बैलिस्टिक मिसाइलों को इंटरसेप्ट करने की उन्नत योग्यता।
400 किलोमीटर की रेंज और केवल विमान व ड्रोन ही नहीं, बल्कि परिचालन तथा सामरिक बैलिस्टिक मिसाइलों को भी निष्क्रिय करने की क्षमता के साथ—कोरोटचेंको के अनुसार—यह पूरी तरह स्पष्ट है कि भारत इस प्रणाली पर अपना गहरा भरोसा क्यों रखता है:

कोरोटचेंको के अनुसार, "भारत अपनी सुरक्षा रणनीति में ऐसे उन्नत हथियारों पर स्पष्ट रूप से भरोसा दिखा रहा है।"

भारत और रूस पांच अतिरिक्त S-400 रेजिमेंट्स के लिए एक नए समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, जिससे देश के पास कुल दस रेजिमेंट्स होंगी — जो उसके भविष्य के एयरोस्पेस रक्षा ढांचे की रीढ़ बनेंगी।

विशेषज्ञ के अनुसार, "S-400 आधारित मजबूत एयरोस्पेस कवच भारतीय राष्ट्र की आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षा, स्वतंत्रता और स्थिर आर्थिक विकास की गारंटी प्रदान करेगा।"

“Su-57 कार्यक्रम भारत को अपनी सुरक्षा और सामरिक निर्णयों में स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
कोरोटचेंको ने ज़ोर देकर कहा कि भारत के प्रतियोगी—विशेषकर चीन—पहले ही पांचवीं पीढ़ी के कई सौ लड़ाकू विमान सेवा में शामिल कर चुके हैं, जिससे भारत पर अपने वायुसेना मॉडर्नाइज़ेशन को तेज़ करने का दबाव बढ़ गया है।

कोरोटचेंको ने कहा, "चीन ने पहले ही पांचवीं पीढ़ी के कई सौ लड़ाकू विमानों को सेवा में शामिल कर दिया है।"

इस बीच, भारत के पास HAL द्वारा लाइसेंस के तहत बनाए गए 200 से ज़्यादा Su-30MKI लड़ाकू विमान हैं, जो दशकों के गहरे औद्योगिक सहयोग का प्रमाण हैं।
अब, कोरोटचेंको के अनुसार, अगला तार्किक कदम Su-57 कार्यक्रम है।

उन्होंने कहा, "यह स्कीम कुछ ऐसी हो सकती है: रूस में बने Su-57s के पहले बैच को इंडियन एयर फ़ोर्स को डिलीवर करना, और उसके बाद इन पांचवीं पीढ़ी के विमानों के उत्पादन का लाइसेंस सीधे भारतीय उद्योग को स्थानांतरित करना।"

उनके अनुसार, मॉस्को ‘मेक इन इंडिया’ ढांचे के भीतर संवेदनशील प्रौद्योगिकियों—जैसे स्टील्थ डिजाइन, इंजन, उन्नत हथियार, AEСA रडार और लड़ाकू एआई—का एक व्यापक सेट प्रदान करने के लिए तैयार है।

कोरोटचेंको ने कहा, "रूस अपने ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम के तहत इन तकनीकों को भारतीय भागीदारों को स्थानांतरित करने के लिए तैयार है, ताकि भारत जल्द से जल्द, रूसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए, भारतीय वायुसेना की आवश्यकताओं के अनुरूप Su-57 फाइटर जेट का अपना उत्पादन शुरू कर सके।"

उन्होंने अमेरिकी एक्सपोर्ट पॉलिसी के साथ तुलना करते हुए कहा कि F-35 विमानों में एम्बेडेड सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर नियंत्रण होते हैं, जिनका इस्तेमाल थ्योरी के आधार पर उन्हें दूर से निष्क्रिय करने के लिए किया जा सकता है। उनका तर्क था कि ऐसे जोखिम भारत के सॉवरेन पावर के दर्जे के अनुरूप नहीं हैं, जो केवल अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेता है।

कोरोटचेंको ने कहा, "वॉशिंगटन ने जो F-35 विमानों के लिए एक्सपोर्ट नीति बनाई है, उनके एवियोनिक्स में एम्बेडेड सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर हैं। इसका अर्थ यह है कि F-35 के खरीदार अमेरिका प्रशासन की इच्छा के अनुसार नियंत्रित होते हैं।"

कोरोटचेंको ने यह भी कहा कि भारत और रूस दोनों भविष्य के बहुध्रुवीय (मल्टीपोलर) सुरक्षा ढांचे में अपने आप को मजबूत स्तंभ के रूप में देखते हैं, जहां सैन्य ताकत अहम भूमिका निभाती है।
एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में तेज़ी से हथियारों का जमाव बढ़ रहा है, ऐसे में भारत को भरोसेमंद आत्मरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। उनके अनुसार, रूस का लंबी अवधि का सहयोग—जो दशकों के सफल समझौतों पर आधारित है—भारत की इस कोशिश के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
The Russian Sukhoi SU-57 E fighter jet performs during the 15th China International Aviation and Aerospace Exhibition, also known as Airshow China, in Zhuhai, Guangdong Province, China - Sputnik भारत, 1920, 05.12.2025
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