"अभी यह नहीं कह सकते कि पूरी तरह से ब्रिक्स चुनौती दे सकता है लेकिन एक बात अवश्य है कि जिन देशों को पारंपरिक व्यवस्था से सहायता नहीं मिल रही है। अगर वहां से उन्हें विकास में सहायता नहीं मिल रही है तो उसके लिए ब्रिक्स एक विकल्प के तौर पर काम कर सकता है हालाँकि अभी यह कहना शीघ्रता होगी कि ब्रिक्स पूरी तरह से जो G-7 देशों की या ब्रिटेनहुड इंस्टीट्यूशन की जो संस्थाएं हैं उसका एक विकल्प के तौर पर उभरा है," मार्जनी ने कहा।
"वैश्विक परिदृश्य में जो यूरोप केंद्रित व्यवस्था थी चाहे अर्थव्यवस्था हो या सामंतिक व्यवस्था हो वह बदलकर अब एशिया केंद्र बन गया है तो स्वाभाविक है कि अगर हम सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का विकास दर देखें तो पश्चिमी देशों से ज्यादा होगा विशेषकर भारत का योगदान सबसे अधिक होगा," मार्जनी ने कहा।
"पश्चिमी देशों को विकासशील देशों के प्रति थोड़ा ज्यादा संवेदनशील होना पड़ेगा। क्योंकि अगर ब्रिक्स पश्चिमी व्यवस्था को चुनौती देने की बात कर रहा है तो पश्चिमी देशों को भी सोचना चाहिए। अगर पश्चिमी देशों का रवैया नहीं बदला तो संघर्ष ही बढ़ेगा और विकासशील देश यानी ग्लोबल साउथ के जो देश है उनका नुकसान ज्यादा होता है। पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था भी एशिया के देशों पर ज्यादा निर्भर रहने लगी है इसलिए अपने लाभ के लिए पश्चिमी देशों को नीतियां बदलने की जरूरत है," मार्जनी ने कहा।
"ब्रिक्स का अभी विस्तार हुआ है और नए देश ब्रिक्स के साथ जुड़ रहे हैं। अभी यह देखना कि ब्रिक्स भविष्य में किस दिशा में जाता है। वैश्विक परिदृश्य में नया आकार ब्रिक्स के सन्दर्भ में भी देख सकते हैं और ब्रिक्स के बाहर भी देख सकते हैं। दुनिया की अर्थव्यवस्था अधिक से अधिक एशिया या अफ्रीका की तरफ केंद्रित हो रही है और पश्चिमी देशों की भागीदारी कम हो रही है। ऐसे में एशिया और अफ्रीका नए आर्थिक केंद्र के स्तर पर उभर रहे हैं और इन देशों की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है जबकि पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था एशियाई देशों की तुलना में नहीं बढ़ रही है," मार्जनी ने बताया।