"नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर क्षेत्र में बाबा मेहर सिंह और लेट अर्जन सिंह ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। वायु सेना धीरे-धीरे बढ़ने लगी क्योंकि सैन्य उड्डयन का आधुनिकीकरण एक साथ हो रहा था। अंग्रेजों को अच्छे विमान, उन्नत विमान भी मिल रहे थे। भारतीय वायु सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा में कई अलग अलग विमानों के साथ जापान के विरुद्ध बमबारी कर अत्यंत उत्कृष्ट प्रदर्शन किया," रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बक्शी ने कहा।
"वायु सेना ने आधुनिकीकरण किया, बाइ प्लेन से लेकर स्पिटफायर तक। 1948 तक हमारे पास जेट विमान थे। हमारे पास राडार सिस्टम और एंटी-एयरक्राफ्ट गन आये जो हमारे उपकरणों का हिस्सा हैं," विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) प्रफुल्ल बक्शी ने कहा।
"हम रूसियों के साथ बहुत मजबूत ढ़ंग से आगे बढ़े और रूसियों ने हमारे लिए खुलकर सहायता की। रूसियों ने हमें लड़ाकू बेड़े की शुरुआत करने के लिए मिग-21 की आपूर्ति की और उन्होंने हमें परिवहन बेड़े के रूप में AN-12 दिया और निश्चित रूप से 1968-69 तक रूस से हमें अधिक तेज़, बेहतर लड़ाकू बमवर्षक सुखोई-7 मिला," रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बक्शी ने कहा।
"मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूं कि 1971 के युद्ध के दौरान रूसियों ने हमारा साथ दिया था जब उन्होंने अमेरिकी बेड़े को दूर रखा था। इसलिए भारतीय रूसियों के बहुत आभारी थे। सुखोई-7, MI-21 और MI-27 और सुखोई-30 का उन्नत संस्करण और क्रमिक रूप से सुखोई-30 Mki," रक्षा विशेषज्ञ बक्शी ने कहा।
"एक बार जब आपके पास अपनी हथियार प्रणाली हो तो आप अधिक सुरक्षित हो जाते हैं क्योंकि आपूर्तिकर्ता राजनीतिक कारणों से किसी भी समय आपूर्ति रोक सकता है, यही कारण है कि हमें स्वदेशीकरण प्रक्रिया को अपनाना चाहिए और इसीलिए हम यह कर रहे हैं। तो अब हम बहुत तेजी से भारतीयकरण की ओर सहजता एवं दृढ़ता से अग्रसर हो रहे हैं," विशेषज्ञ ने कहा।
"हम अपने बहुत पुराने विमानों को बदलने जा रहे हैं, कई पूरी तरह से नए विमानों की सूची में आना हमारी नीति के प्रति सकारात्मक सोच को दर्शाता है जो हमारी नीतियों में उल्लेखनीय परिवर्तन को दिखाता है। पिछले कोई आठ-नौ वर्षों से देश में नीति अभूतपूर्व है और हमें सरकार के नए निर्णय मिल रहे हैं, अगर हम सकारात्मक रूप से कार्य करते रहें तो हमें इससे भी कम समय लग सकता है," प्रफुल्ल बक्शी ने बताया।