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भारतीय वायु सेना भविष्य में दुनिया की सबसे मजबूत सेना में से एक होगी: पूर्व वायु सेना अधिकारी

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Air Force General - Sputnik भारत, 1920, 08.10.2023
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इस वर्ष भारतीय वायु सेना अपनी 91वीं वर्षगांठ मनाने जा रही है। भारतीय वायु सेना अपनी तकनीक, हुनर और लड़ाकू विमानों के दम पर दुनिया के चौथी सबसे बड़ी वायु सेना है।
पहले छह अधिकारी कैडेट सुब्रतो मुखर्जी, एचसी सरकार, भूपेन्द्र सिंह, ऐजाद अवान, अमरजीत सिंह और जगत नारायण टंडन ने सितंबर 1930 में RAF क्रैनवेल में अपना प्रशिक्षण आरंभ किया था। 8 अक्टूबर 1932 को भारतीय वायु सेना (IAF) की स्थापना की गई और छह फ्लाइट कैडेटों को उसी दिन कमीशन प्रदान किया गया।
चार वेस्टलैंड वैपिटी विमानों, छह RAF प्रशिक्षित अधिकारियों और 19 वायु सैनिकों के साथ IAF की नंबर 1 स्क्वाड्रन का गठन 1 अप्रैल 1933 को ड्रिघ रोड कराची (पाकिस्तान) में किया गया था।
90 साल के अपने इतिहास में भारतीय वायु सेना कई बड़े बदलावों से होकर गुजरी चाहे वह द्वितीय विश्व युद्ध में सम्मिलित होना हो या इसका ब्रिटिश हुकूमत से भारत द्वारा अधिग्रहण हो। वायु सेना के संस्थापक सदस्यों में से एक एयर मार्शल सुब्रतो मुखर्जी ने पहले भारतीय वायु सेना प्रमुख के रूप में 1 अप्रैल 1954 को पदभार संभाला।
भारतीय वायु सेना ने सितंबर 1939 में केवल एक पूरी स्क्वाड्रन के साथ द्वितीय विश्व युद्ध में प्रवेश किया था लेकिन अगस्त 1940 में, 24 भारतीयों को 'सक्रिय सेवा शर्तों के अंतर्गत भारतीय कर्मियों की लड़ने की गुणवत्ता' का आकलन करने की मंशा से पायलट प्रशिक्षण के लिए यूके भेजा गया और आठ भारतीयों को लड़ाकू पायलट के रूप में प्रशिक्षित किया गया जिसके बाद RAF स्क्वाड्रन में परिचालन के बाद उड़ान भरना शुरू कर दिया हालांकि 24 वॉलेंट्री करने वालों में से एक तिहाई युद्ध में मारे गए।
IAF ने अब तक 77 तरह के अलग अलग विमानों को उड़ाया है, समय के साथ साथ इसमें काफी बदलाव आए, उदाहरण के लिए वायु सेना की यात्रा की शुरुआत 1932 में वेस्टलैंड वैपिटी विमानों से हुई जो अब राफेल विमानों तक जा चुकी है।
Indian Air Force's fighter aircraft Tejas performs aerobatic maneuvers on the fourth day of the Aero India 2023 at Yelahanka air base in Bengaluru, India, Thursday, Feb. 16, 2023. - Sputnik भारत, 1920, 01.09.2023
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भारतीय वायु सेना 91वां स्थापना दिवस 8 अक्टूबर को मनाने के लिए तैयार है। Sputnik ने भारतीय वायु सेना से विंग कमांडर के पद से सेवानिवृत्त और रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बक्शी से बात की। उन्होंने वायु सेना की प्रारंभिक काल, 90 सालों में प्रयोग किये गए विमानों, अन्य देशों से लाए गए विमानों के साथ वायु सेना की आधुनिकता के बारे में बताया।
रक्षा विशेषज्ञ बक्शी कहते हैं कि भारतीय वायु सेना का इतिहास दशकों से आ रहा है और इसकी स्थापना 1932 में हुई थी लेकिन प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय पहले से ही रॉयल फ्लाइंग कोर में सम्मिलित हो गए थे। 6 से 7 पायलटों तक प्रथम विश्व युद्ध में थे जिन्होंने विशिष्टता अर्जित की थी क्योंकि उन्होंने जर्मन जहाज को मार गिराया था।

"नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर क्षेत्र में बाबा मेहर सिंह और लेट अर्जन सिंह ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। वायु सेना धीरे-धीरे बढ़ने लगी क्योंकि सैन्य उड्डयन का आधुनिकीकरण एक साथ हो रहा था। अंग्रेजों को अच्छे विमान, उन्नत विमान भी मिल रहे थे। भारतीय वायु सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा में कई अलग अलग विमानों के साथ जापान के विरुद्ध बमबारी कर अत्यंत उत्कृष्ट प्रदर्शन किया," रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बक्शी ने कहा।

बक्शी आगे कहते हैं कि भारतीय वायु सेना न केवल विमान बल्कि उपकरणों में भी आगे बढ़ रही थी। वायु सेना अलग अलग मोर्चे पर भी जाने लगी थी जैसे बर्मा, यूरोपीय थिएटर, जिसके बाद 1946 में भारतीय वायु सेना को रॉयल इंडियन एयर फ़ोर्स की उपाधि दी गई। हालांकि, बाद में विभाजन के बाद वायु सेना भारतीय वायु सेना बन गई।

"वायु सेना ने आधुनिकीकरण किया, बाइ प्लेन से लेकर स्पिटफायर तक। 1948 तक हमारे पास जेट विमान थे। हमारे पास राडार सिस्टम और एंटी-एयरक्राफ्ट गन आये जो हमारे उपकरणों का हिस्सा हैं," विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) प्रफुल्ल बक्शी ने कहा।

स्वतंत्रता के बाद भारतीय वायु सेना के सभी विमानों को पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ बांट दिया गया लेकिन जब जेट युग आया और आधुनिकीकरण किया गया और 1948 में वेमपायर विमान आया हालांकि 1954 में हमने अपनी आवश्यकता के अनुसार जेट विमानों की मांग की जो तत्कालीन समय की आवश्यकता थी। देश में फ़्रांस में निर्मित दसॉल्ट ऑरेगन आया जिसका भारतीय नाम "तूफ़ानी" था। लेकिन हमें बॉम्बर की भी आवश्यकता थी जैसे हंटर्स, कैनबरा जैसे अधिकल उन्नत विमान भारत आए।
Defence Minister of India Rajnath Singh attends the unveiling ceremony of C-295 MW at the Hindon Air Force Station - Sputnik भारत, 1920, 25.09.2023
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1962 के युद्ध के बाद रुसियों ने अपना विमानों का बाजार भारत के लिए खोल दिया जिसके बाद कई आधुनिक विमान भारत ने खरीदे और वायु सेना को आधुनिक बनाया गया। प्रफुल्ल बक्शी ने आगे Sputnik को बताया कि हमें रूस से परिवहन हेलीकाप्टर के अतिरिक्त MI-4 हेलीकाप्टर भी दिया जिसने बहुत शानदार गतिविधि को परिणाम दिया। उससे पहले हमारे पास सिकोरस्की हेलीकॉप्टर था।

"हम रूसियों के साथ बहुत मजबूत ढ़ंग से आगे बढ़े और रूसियों ने हमारे लिए खुलकर सहायता की। रूसियों ने हमें लड़ाकू बेड़े की शुरुआत करने के लिए मिग-21 की आपूर्ति की और उन्होंने हमें परिवहन बेड़े के रूप में AN-12 दिया और निश्चित रूप से 1968-69 तक रूस से हमें अधिक तेज़, बेहतर लड़ाकू बमवर्षक सुखोई-7 मिला," रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बक्शी ने कहा।

रूस ने MI-4 और उसके बाद दूसरे परिवहन बेड़े भारत तक पहुंचाए और फिर उन्होंने हमें बड़े विमान दिए। MI-4 के बाद MI-8 आया और फिर MI-17 आया जिसके बाद परिवहन बेड़े के लिए हम न मकेवल IL-14 पर निर्भर रहे जो पहाड़ों के लिए उपयोगी था, इसके अतिरिक्त MIG-24 भी रूस से भारत लाया गया।

"मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूं कि 1971 के युद्ध के दौरान रूसियों ने हमारा साथ दिया था जब उन्होंने अमेरिकी बेड़े को दूर रखा था। इसलिए भारतीय रूसियों के बहुत आभारी थे। सुखोई-7, MI-21 और MI-27 और सुखोई-30 का उन्नत संस्करण और क्रमिक रूप से सुखोई-30 Mki," रक्षा विशेषज्ञ बक्शी ने कहा।

इसके साथ ही रूसियों ने भारत को रडार, वायु रक्षा रडार, पी-13, पी-14 दिए। ये सभी रडार और विमान बहुत-बहुत अच्छी गुणवत्ता वाले हैं।
विशेषज्ञ बक्शी ने आज के समय में भारत के स्वावलम्बी बनने और भारतीयकरण पर जोर दिया जिसका तात्पर्य है कि जब आप हथियार बनाते हैं तो हम अपने स्वयं के हथियार सिस्टम बनाते हैं। जब आप आपूर्ति करते हैं तो आप बहुत सारी विदेशी मुद्रा अर्जित करते हैं।

"एक बार जब आपके पास अपनी हथियार प्रणाली हो तो आप अधिक सुरक्षित हो जाते हैं क्योंकि आपूर्तिकर्ता राजनीतिक कारणों से किसी भी समय आपूर्ति रोक सकता है, यही कारण है कि हमें स्वदेशीकरण प्रक्रिया को अपनाना चाहिए और इसीलिए हम यह कर रहे हैं। तो अब हम बहुत तेजी से भारतीयकरण की ओर सहजता एवं दृढ़ता से अग्रसर हो रहे हैं," विशेषज्ञ ने कहा।

अब हम विदेशी प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित करने जा रहे हैं, जब हम अपने स्वयं के अनुसंधान और विकास के लिए विदेशी प्रौद्योगिकी के साथ-साथ अपने निजी उद्यमियों को भी सम्मिलित कर रहे हैं और हम अपने अनुसंधान और विकास पर अधिक पैसा खर्च करने जा रहे हैं, और सबसे बड़ी समस्या भारतीय वायुसेना को हो रही है जहां हमें 42 स्क्वाड्रन की आवश्यकता है वहीं हम 28 पर आ गए हैं हालांकि अब हम बहुत सबल होकर आगे बढ़ रहे हैं।
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भारतीय वायु सेना स्वदेशी परियोजनाओं के जरिए बढ़ाएगी लड़ाकू क्षमता
आखिर में वायु सेना के आधुनिकीकरण के बारे में बताते हुए भारतीय वायु सेना से विंग कमांडर के पद से सेवानिवृत्त और रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बक्शी ने देश में आए सबसे नवीनतम लड़ाकू विमान राफेल के बारे में बात करते हुए बताया कि राफेल का उन्नत संस्करण,एक जुड़वां इंजन वाला LCA, LCA का नौसैनिक संस्करण विकसित किया जाएगा, इसलिए हम अपने लड़ाकू बेड़े में सुधार और परिवहन विमानों को इस प्रकार से देखते हैं।

"हम अपने बहुत पुराने विमानों को बदलने जा रहे हैं, कई पूरी तरह से नए विमानों की सूची में आना हमारी नीति के प्रति सकारात्मक सोच को दर्शाता है जो हमारी नीतियों में उल्लेखनीय परिवर्तन को दिखाता है। पिछले कोई आठ-नौ वर्षों से देश में नीति अभूतपूर्व है और हमें सरकार के नए निर्णय मिल रहे हैं, अगर हम सकारात्मक रूप से कार्य करते रहें तो हमें इससे भी कम समय लग सकता है," प्रफुल्ल बक्शी ने बताया।

बक्शी ने कहा कि मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि अगले 25 वर्षों में भारतीय वायु सेना संभवतः सबसे सफल वायु सेनाओं में से एक हो पाएगी जो विश्व की सबसे शक्तिशाली वायु सेनाों में से एक होगी।
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