"बड़े हीलियम गुब्बारे का इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उसे कंट्रोल करना मुश्किल होगा। वहीं फिक्स विंग की तकनीक से उड़ान संभव है लेकिन उसकी उड़ान क्षमता अधिक नहीं होती है। तीसरा है फ्लैप विंग लेकिन उसे भी उड़ाकर कंट्रोल करना एक बड़ी चुनौती है। और चौथा तरीका है हेलिकॉप्टर जैसे रोटर की मदद से उड़ान लेकिन मंगल पर इसमें से कौन सा तरीका अपनाया जाएगा वह हमारे अध्ययन पर निर्भर होगा," डॉ टी वी वेंकटेश्वरन ने बताया।
"भारत को देखना होगा कि यह कितना वजन लेकर जाएगा यह उसी के हिसाब से बनाया जाएगा। और इसके बाद उसे विभिन्न चरणों में अलग अलग तरीकों से टेस्ट किया जाएगा तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह आने वाले मंगल मिशन में जाएगा या नहीं, क्योंकि इसमें और समय लगेगा," डॉ वेंकटेश्वरन ने कहा।
"मंगल पर कुछ भी उड़ाना है तो यह बहुत कठिन होता है क्योंकि इसके लिए अपथ्रस्ट चाहिए होगा। मंगल पर वातावरण बहुत हल्का है। इसलिए वहां किसी भी चीज को उड़ाना बहुत मुश्किल है, उसके लिए बहुत रिसर्च चाहिए जैसे वजन कम होना, ताकत से उड़ना जैसे बारीकियों को ध्यान में रखकर यह UAV तैयार करना होगा। इसके साथ साथ हमें मंगल की धूल भरी आंधियों को भी याद रखना जरूरी है," वैज्ञानिक ने बताया।