रक्षा अधिकारियों ने स्थानीय मीडिया को बताया, "भारतीय नौसेना टीम हाल ही में परियोजना की देखरेख के लिए रूस में थी और कार्यक्रम की समीक्षा करने के लिए रूसी शिपयार्ड का दौरा किया, जहां फ्रिगेट बनाए जा रहे हैं। काम अब अच्छी गति से चल रहा है और पहला युद्धपोत समुद्री परीक्षणों के लिए भी लॉन्च किया जा चुका है।"
नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन (NMF) के सीनियर फेलो कैप्टन (सेवानिवृत्त) केके अग्निहोत्री ने Sputnik India को बताया, "भारतीय नौसेना के पास पहले से ही आईएनएस तबर, त्रिशूल और तलवार युद्धपोत हैं, जिनका निर्माण भारत ने मुंबई के शिपयार्ड में किया है और रूस से बनकर आने वाले जहाज भी उसी क्षमता के हैं। इन युद्धपोतों का वर्गीकरण फ्रिगेट जहाज के तौर पर किया जाता है। भारतीय नौसेना बेड़े में दो और युद्धपोत के शामिल होने से रक्षा क्षमता में बढ़ोत्तरी होगी और भारतीय नौसेना की क्षमता बढ़ेगी।"
रूसी हथियार हमेशा की तरह भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
अग्निहोत्री ने कहा, "करीब 50 वर्षों से सोवियत संघ यानी वर्तमान रूस हमारा सबसे भरोसेमंद मित्र रहा है। सोवियत संघ और अब रूस ने हमेशा भारत की मदद की और कभी युद्धपोत और पनडुब्बियां देने से मना नहीं किया। इस वजह से शुरू में भारत ने युद्धपोत, पनडुब्बियां और लड़ाकू विमान खरीदे। बाद में रूस के तकनीक ट्रांसफर के जरिये भारत के स्वयं हथियार निर्माण को लेकर स्वाबलंबन की प्रक्रिया मजबूत हुई है। युद्धपोत में 60 प्रतिशत निर्माण भारत स्वयं करता है, जबकि 40 प्रतिशत में अधिकतर रूस से आता है, क्योंकि रूस हमें बिना शर्त सामग्री उपलब्ध करता है।"