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रूसी तकनीक ट्रांसफर से भारत के हथियार निर्माण को लेकर स्वाबलंबन की प्रक्रिया मजबूत हुई है: विशेषज्ञ
रूसी तकनीक ट्रांसफर से भारत के हथियार निर्माण को लेकर स्वाबलंबन की प्रक्रिया मजबूत हुई है: विशेषज्ञ
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रूस में बनाए जा रहे दो युद्धपोतों के इस साल के अंत तक भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हो जाने की उम्मीद है।
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यह भारत द्वारा रूस से अनुबंधित चार फॉलोऑन फ्रिगेट का हिस्सा है, जिनमें से दो रूस में बनाए जा रहे हैं और दो प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत में निर्माणाधीन हैं।मिली जानकारी के मुताबिक पहला युद्धपोत आईएनएस तुशिल के नाम से जाना जाएगा, जबकि दूसरा युद्धपोत आईएनएस तमाल होगा। स्टील्थ फ्रिगेट को तुशिल वर्ग के युद्धपोतों के हिस्से के रूप में बनाया जा रहा है। तुशिल एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'रक्षक ढाल' होता है।साथ ही अधिकारियों के हवाले से कहा गया कि दोनों युद्धपोतों के इस साल क्रमश: अगस्त और दिसंबर तक भारतीय नौसेना में शामिल होने की उम्मीद है।रूसी हथियार हमेशा की तरह भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?भारत ने 1950 के दशक में रूस से हथियार खरीदना शुरू किया। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से रूस पर भारत की आयात निर्भरता में लगातार वृद्धि हुई है। भारत के पास सोवियत निर्मित प्लेटफार्मों की एक बड़ी संख्या है और भारत ने नियमित रूप से रूस के साथ कई रक्षा समझौते किए हैं और अभी भी रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है।भारत में गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) में रूसी सहयोग से तकनीक ट्रांसफर के जरिए श्रृंखला के अन्य दो युद्धपोत को बनाने का काम जारी है। जीएसएल द्वारा निकट भविष्य में परीक्षण के लिए पहला युद्धपोत लॉन्च करने की उम्मीद है और आपूर्ति 2026 में पूरी करने की योजना है।
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रूसी तकनीक ट्रांसफर से भारत के हथियार निर्माण को लेकर स्वाबलंबन की प्रक्रिया मजबूत हुई है: विशेषज्ञ
रूस में बनाए जा रहे दो युद्धपोतों के इस साल के अंत तक भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हो जाने की उम्मीद है। भारतीय नौसेना बेसब्री से इस एडवांस स्टील्थ फ्रिगेट युद्धपोत का इंतजार कर रही है।
यह भारत द्वारा रूस से अनुबंधित चार फॉलोऑन फ्रिगेट का हिस्सा है, जिनमें से दो रूस में बनाए जा रहे हैं और दो प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत में निर्माणाधीन हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक पहला युद्धपोत आईएनएस तुशिल के नाम से जाना जाएगा, जबकि दूसरा युद्धपोत आईएनएस तमाल होगा। स्टील्थ फ्रिगेट को तुशिल वर्ग के युद्धपोतों के हिस्से के रूप में बनाया जा रहा है। तुशिल एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'रक्षक ढाल' होता है।
रक्षा अधिकारियों ने स्थानीय मीडिया को बताया, "भारतीय नौसेना टीम हाल ही में परियोजना की देखरेख के लिए रूस में थी और कार्यक्रम की समीक्षा करने के लिए रूसी शिपयार्ड का दौरा किया, जहां फ्रिगेट बनाए जा रहे हैं। काम अब अच्छी गति से चल रहा है और पहला युद्धपोत समुद्री परीक्षणों के लिए भी लॉन्च किया जा चुका है।"
साथ ही अधिकारियों के हवाले से कहा गया कि दोनों युद्धपोतों के इस साल क्रमश: अगस्त और दिसंबर तक भारतीय नौसेना में शामिल होने की उम्मीद है।
नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन (NMF) के सीनियर फेलो कैप्टन (सेवानिवृत्त) केके अग्निहोत्री ने Sputnik India को बताया, "भारतीय नौसेना के पास पहले से ही आईएनएस तबर, त्रिशूल और तलवार युद्धपोत हैं, जिनका निर्माण भारत ने मुंबई के शिपयार्ड में किया है और रूस से बनकर आने वाले जहाज भी उसी क्षमता के हैं। इन युद्धपोतों का वर्गीकरण फ्रिगेट जहाज के तौर पर किया जाता है। भारतीय नौसेना बेड़े में दो और युद्धपोत के शामिल होने से रक्षा क्षमता में बढ़ोत्तरी होगी और भारतीय नौसेना की क्षमता बढ़ेगी।"
रूसी हथियार हमेशा की तरह भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
भारत ने 1950 के दशक में
रूस से हथियार खरीदना शुरू किया। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से रूस पर भारत की आयात निर्भरता में लगातार वृद्धि हुई है। भारत के पास सोवियत निर्मित प्लेटफार्मों की एक बड़ी संख्या है और भारत ने नियमित रूप से रूस के साथ कई रक्षा समझौते किए हैं और अभी भी रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है।
अग्निहोत्री ने कहा, "करीब 50 वर्षों से सोवियत संघ यानी वर्तमान रूस हमारा सबसे भरोसेमंद मित्र रहा है। सोवियत संघ और अब रूस ने हमेशा भारत की मदद की और कभी युद्धपोत और पनडुब्बियां देने से मना नहीं किया। इस वजह से शुरू में भारत ने युद्धपोत, पनडुब्बियां और लड़ाकू विमान खरीदे। बाद में रूस के तकनीक ट्रांसफर के जरिये भारत के स्वयं हथियार निर्माण को लेकर स्वाबलंबन की प्रक्रिया मजबूत हुई है। युद्धपोत में 60 प्रतिशत निर्माण भारत स्वयं करता है, जबकि 40 प्रतिशत में अधिकतर रूस से आता है, क्योंकि रूस हमें बिना शर्त सामग्री उपलब्ध करता है।"
भारत में गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) में
रूसी सहयोग से तकनीक ट्रांसफर के जरिए श्रृंखला के अन्य दो युद्धपोत को बनाने का काम जारी है। जीएसएल द्वारा निकट भविष्य में परीक्षण के लिए पहला युद्धपोत लॉन्च करने की उम्मीद है और आपूर्ति 2026 में पूरी करने की योजना है।