"आज के परमाणु युद्ध के खतरे के समय में, ड्रोन, मानव रहित विमान, मिसाइल, क्रूज़ मिसाइल और लड़ाकू विमानों से हमले के खतरे यानी हर तरह के खतरे बढ़ते चले जा रहे हैं। तो ऐसी स्थिति में भारत के लिए अपनी और अपनी संपत्ति की रक्षा करना बहुत आवश्यक है। इस दृष्टि से एक बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली बहुत ही आवश्यक हो जाती है। तो भारत का उतना ही अधिकार है जितना किसी और देश को अपनी रक्षा करने का अधिकार है," DRDO के पूर्व वैज्ञानिक रवि गुप्ता ने Sputnik India को बताया।
"जब आपको किसी विदेशी प्रणाली पर निर्भर रहना पड़ता है, तो ऐसी गलतियों की संभावना होती है। जैसे भारत की वायु रक्षा प्रणाली, चाहे वह आकाश हो, या बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली, कोई भी वायु रक्षा प्रणाली हो, इसमें दो महत्वपूर्ण अंग होते हैं, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर। क्योंकि जब भी दुश्मन का हमला होता है तो आजकल इन हथियारों को मैन्युअली चलाना संभव नहीं है। आज ये सभी उपकरण जो सुपरसोनिक मिसाइलों या बैलिस्टिक मिसाइलों से हमारी संपत्ति की रक्षा कर सकते हैं, वे पूरी तरह से स्वचालित होती हैं। ऐसे में सॉफ्टवेयर का महत्व बहुत बढ़ जाता है," गुप्ता ने टिप्पणी की।
"भारत ने इस क्षेत्र में काफी प्रगति की है। एक दशक पहले भारत ने बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली विकसित की, जो परमाणु हथियारों से लैस बैलिस्टिक मिसाइलों को मार गिराने में सक्षम है। भारत ने इसे कई बार प्रदर्शित किया है। इसे DRDO ने बनाया है। यह पूरी तरह से स्वदेशी है। इसके सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर दोनों पर भारत का पूर्ण नियंत्रण है। और इसी तरह, आकाश एयर डिफेंस सिस्टम, हमारे पास बहुत ही कारगर है, जिसे अन्य देश भी खरीदना चाहते हैं। इसकी मांग बढ़ती जा रही है, क्योंकि यह बहुत सस्ता है और बहुत अधिक कारगर भी है। यह सुपरसोनिक गति से चलता है। कुछ समय पहले, भारत ने प्रदर्शित किया था कि इस एक वायु रक्षा प्रणाली ने एक ही समय में चार लक्ष्यों को मार गिराया था। यह क्षमता किसी अन्य प्रणाली में कभी प्रदर्शित नहीं की गई है," उन्होंने कहा।