गुप्ता ने कहा, "ऐसी स्थिति में यदि भारत को दुश्मन के क्षेत्र में अंदर तक घुसकर कहीं पर लक्ष्य को न्यूट्रलाइज करना होता है तो पायलट के लिए संकट बढ़ता चला जाता है, क्योंकि पायलट संचालित लड़ाकू विमान की कुछ सीमा होती हैं। एक तो इंसान 9G (नौ गुणा गुरुत्वाकर्षण) से अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकता है। हालांकि सामान्य तौर पर इंसान बहुत कम बर्दाश्त कर पाते हैं लेकिन पायलट बहुत अधिक प्रशिक्षण के बाद वे कहीं इस चरम मात्रा तक पहुंच पाते हैं। लेकिन अगर वायुयान में पायलट नहीं है मानव रहित है तो फिर ऐसी कोई सीमा नहीं रह जाती।"
गुप्ता ने कहा, "यदि हमें दुश्मन के राडार से बचने के लिए नीचे उड़ना चाहते हैं तो ऐसे में खतरा भी बहुत बढ़ता चला जाता है। चूंकि भारत का अधिकांश बॉर्डर क्षेत्र ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है। पहाड़ों में जमीन की सतह के साथ उड़ना बहुत खतरनाक हो जाता है। ऐसी स्थिति में यूएवी बहुत काम आते हैं। इसलिए भारत उन सिस्टम की ओर आगे बढ़ रहा है जो पायलट संचालित वाहन की तरह काम करे।"
गुप्ता ने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा, "CATS-वॉरियर्स पायलट संचालित एयरक्राफ्ट की तरह भी काम कर पाते हैं वे रक्षात्मक और मारक क्षमता को कई गुणा बढ़ा देता है। भारतीय वायु सेना बहुत उच्च तकनीक दक्षता प्राप्त है। इसलिए उनके पास नई तकनीक से तालमेल बिठाने की बहुत अधिक क्षमता है। इसलिए भारतीय वायु सेना को CATS-वॉरियर्स से तालमेल बिठाने में कोई समस्या नहीं आएगी।"