https://hindi.sputniknews.in/20240518/why-india-needs-a-unmanned-aerial-combat-technology-like-cats-warriors-7390033.html
जानें भारत को CATS-वॉरियर्स जैसी मानव रहित हवाई युद्ध तकनीक की आवश्यकता क्यों है?
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CATS वॉरियर एक स्वायत्त विंगमैन ड्रोन है, जिसका वजन 1600 किलोग्राम है। यह स्वचालित रूप से टेक-ऑफ और लैंडिंग में सक्षम है।
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ड्रोन, जिसे वॉरियर कहा जाता है, कॉम्बैट एयर टीमिंग सिस्टम (CATS) नामक एक स्वदेशी कार्यक्रम का हिस्सा है। इसे मानवयुक्त और मानव रहित प्लेटफार्मों का एक समग्र समामेलन कहा जाता है जो भारी सुरक्षा वाले दुश्मन के हवाई क्षेत्र में घुसने के लिए मिलकर काम करते हैं।इस रक्षा उपकरण का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (हिएलि) द्वारा भारतीय सशस्त्र बल की भविष्य की युद्ध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अगली पीढ़ी के स्तर पर उन्नत किया जा रहा है।दरअसल वारियर ड्रोन को भारतीय वायु सेना के पायलट द्वारा उड़ाए जाने वाले भारतीय निर्मित तेजस लड़ाकू विमान के साथ संचालित करने के लिए डिज़ाइन किया जा रहा है, जब वे एक साथ युद्ध में उतरेंगे तो वह इसकी रक्षा करेगा और लड़ेगा।CATS-वॉरियर्स जैसी मानव रहित हवाई युद्ध तकनीक की आवश्यकता के बारे में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के पूर्व वैज्ञानिक और प्रवक्ता रहे रवि गुप्ता ने Sputnik India को बताया कि "मानव रहित वाहन (UAV) का जो क्षेत्र है उसमें बहुत तेजी से प्रगति हो रही है। इसके साथ ही जो वायु रक्षा प्रणाली हैं जिसमें राडार निहित हैं, डिटेक्शन और न्यूट्रलाइज करने की तकनीक भी बहुत तेजी से विकसित हो रही है।"उन्होंने साथ ही कहा कि हालांकि अभी CATS वॉरियर पर काम चल रहा है। अभी तो ये सबसोनिक (ध्वनि की गति से कम रफ़्तार) है लेकिन आने वाले समय में सुपरसोनिक (ध्वनि की स्पीड से पांच गुना ज़्यादा) भी होंगे और उस चरम तक पहुंचने की क्षमता इनमें होगी। क्योंकि उसमें पायलट नहीं होगा तो मानव शरीर की तकनीकी सीमाएं इसमें बाधा नहीं होगी।हालांकि वॉरियर एक आउट-एंड-आउट स्टील्थ प्लेटफ़ॉर्म नहीं है, जो इसे रडार की पकड़ में जाने से बचने की अनुमति देता है। इसे 'कम अवलोकन योग्य' वर्गीकृत किया गया है, जो समकालीन प्रणालियों के लिए इसका पता लगाना चुनौतीपूर्ण बनाता है।अपनी लागत-प्रभावशीलता के बावजूद CATS-वॉरियर्स एक आंतरिक हथियार प्रणाली से सुसज्जित है, जो इसे दुश्मन के लक्ष्यों के विरुद्ध मिसाइलों और अन्य हथियारों को ले जाने और नियुक्त करने की अनुमति देता है, जिसमें हवाई रक्षा प्रणालियों द्वारा संरक्षित लक्ष्य भी शामिल हैं।
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जानें भारत को CATS-वॉरियर्स जैसी मानव रहित हवाई युद्ध तकनीक की आवश्यकता क्यों है?
CATS वॉरियर एक स्वायत्त विंगमैन ड्रोन है, जिसका वजन 1600 किलोग्राम है। यह स्वचालित रूप से टेक-ऑफ और लैंडिंग में सक्षम है। यह मानव रहित विमान 2024 के अंत या 2025 की शुरुआत में अपनी पहली उड़ान भरेगा।
ड्रोन, जिसे वॉरियर कहा जाता है, कॉम्बैट एयर टीमिंग सिस्टम (CATS) नामक एक स्वदेशी कार्यक्रम का हिस्सा है। इसे मानवयुक्त और मानव रहित प्लेटफार्मों का एक समग्र समामेलन कहा जाता है जो भारी सुरक्षा वाले दुश्मन के हवाई क्षेत्र में घुसने के लिए मिलकर काम करते हैं।
इस रक्षा उपकरण का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (हिएलि) द्वारा भारतीय सशस्त्र बल की भविष्य की युद्ध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अगली पीढ़ी के स्तर पर उन्नत किया जा रहा है।
दरअसल वारियर ड्रोन को भारतीय वायु सेना के पायलट द्वारा उड़ाए जाने वाले भारतीय निर्मित तेजस लड़ाकू विमान के साथ संचालित करने के लिए डिज़ाइन किया जा रहा है, जब वे एक साथ युद्ध में उतरेंगे तो वह इसकी रक्षा करेगा और लड़ेगा।
CATS-वॉरियर्स जैसी मानव रहित हवाई युद्ध तकनीक की आवश्यकता के बारे में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के पूर्व वैज्ञानिक और प्रवक्ता रहे
रवि गुप्ता ने Sputnik India को बताया कि "मानव रहित वाहन (UAV) का जो क्षेत्र है उसमें बहुत तेजी से प्रगति हो रही है। इसके साथ ही जो
वायु रक्षा प्रणाली हैं जिसमें राडार निहित हैं, डिटेक्शन और न्यूट्रलाइज करने की तकनीक भी बहुत तेजी से विकसित हो रही है।"
गुप्ता ने कहा, "ऐसी स्थिति में यदि भारत को दुश्मन के क्षेत्र में अंदर तक घुसकर कहीं पर लक्ष्य को न्यूट्रलाइज करना होता है तो पायलट के लिए संकट बढ़ता चला जाता है, क्योंकि पायलट संचालित लड़ाकू विमान की कुछ सीमा होती हैं। एक तो इंसान 9G (नौ गुणा गुरुत्वाकर्षण) से अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकता है। हालांकि सामान्य तौर पर इंसान बहुत कम बर्दाश्त कर पाते हैं लेकिन पायलट बहुत अधिक प्रशिक्षण के बाद वे कहीं इस चरम मात्रा तक पहुंच पाते हैं। लेकिन अगर वायुयान में पायलट नहीं है मानव रहित है तो फिर ऐसी कोई सीमा नहीं रह जाती।"
उन्होंने साथ ही कहा कि हालांकि अभी CATS वॉरियर पर काम चल रहा है। अभी तो ये सबसोनिक (ध्वनि की गति से कम रफ़्तार) है लेकिन आने वाले समय में सुपरसोनिक (ध्वनि की स्पीड से पांच गुना ज़्यादा) भी होंगे और उस चरम तक पहुंचने की क्षमता इनमें होगी। क्योंकि उसमें पायलट नहीं होगा तो मानव शरीर की तकनीकी सीमाएं इसमें बाधा नहीं होगी।
हालांकि वॉरियर एक आउट-एंड-आउट स्टील्थ प्लेटफ़ॉर्म नहीं है, जो इसे
रडार की पकड़ में जाने से बचने की अनुमति देता है। इसे 'कम अवलोकन योग्य' वर्गीकृत किया गया है, जो समकालीन प्रणालियों के लिए इसका पता लगाना चुनौतीपूर्ण बनाता है।
गुप्ता ने कहा, "यदि हमें दुश्मन के राडार से बचने के लिए नीचे उड़ना चाहते हैं तो ऐसे में खतरा भी बहुत बढ़ता चला जाता है। चूंकि भारत का अधिकांश बॉर्डर क्षेत्र ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है। पहाड़ों में जमीन की सतह के साथ उड़ना बहुत खतरनाक हो जाता है। ऐसी स्थिति में यूएवी बहुत काम आते हैं। इसलिए भारत उन सिस्टम की ओर आगे बढ़ रहा है जो पायलट संचालित वाहन की तरह काम करे।"
अपनी लागत-प्रभावशीलता के बावजूद CATS-वॉरियर्स एक आंतरिक हथियार प्रणाली से सुसज्जित है, जो इसे दुश्मन के लक्ष्यों के विरुद्ध मिसाइलों और अन्य हथियारों को ले जाने और नियुक्त करने की अनुमति देता है, जिसमें हवाई रक्षा प्रणालियों द्वारा संरक्षित लक्ष्य भी शामिल हैं।
गुप्ता ने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा, "CATS-वॉरियर्स पायलट संचालित एयरक्राफ्ट की तरह भी काम कर पाते हैं वे रक्षात्मक और मारक क्षमता को कई गुणा बढ़ा देता है। भारतीय वायु सेना बहुत उच्च तकनीक दक्षता प्राप्त है। इसलिए उनके पास नई तकनीक से तालमेल बिठाने की बहुत अधिक क्षमता है। इसलिए भारतीय वायु सेना को CATS-वॉरियर्स से तालमेल बिठाने में कोई समस्या नहीं आएगी।"