अरविन्द मोहन ने कहा, "लोकतंत्र में सख्त आवाजें आनी चाहिए, लेकिन इन तीनों में से दो को कानून के हिसाब से पास होना होगा, अगर इनको संसद में पहुंचकर अपनी आवाज उठानी है तो इन्हें कानून की परीक्षा से पास होना होगा। हालांकि उन्हें जनता ने तो पास कर दिया है, लेकिन अब प्रतीक्षा करनी होगी कि न्यायालय उनके बारे में क्या कहता है।
उन्होंने कहा, "देश की जनता अपने हिसाब से सोचती है, और अकेले ये लोग ही नहीं जीते हैं आप पाएंगे कि हर चुनावों में दो, चार ऐसे लोग जीतते हैं जो बिल्कुल अपने सादे पन से प्रचार करके, जनता से पैसे जुटाकर बड़े बड़े नेताओं को पटखनी दे देते हैं, और लोगों ने इन तीन का अपने हिसाब से मूल्यांकन किया है क्योंकि समाज अपने हिसाब से सोचता है।"
अरविन्द मोहन ने कहा, "ये लोग सिस्टम की हिसाब से अनफिट हों लेकिन समाज के मूल्यांकन पर खरे हैं और ऐसे लोगों का चुन कर आना यह दिखाता है कि अभी भी लोगों से ऊपर कुछ नहीं है क्योंकि लोग ऐसे नेता को भी जिता सकते है जिसके पास ना तो कोई दल है और ना ही कोई शक्ति, और एक तरह से देखा जाए तो इन्हें देखकर अच्छा लगता है।"
अरविन्द मोहन ने जोर देकर कहा, "लोकतंत्र का कार्य यह है कि किसी को भी बहुत अधिक तकलीफ न हो और कहीं से भी कोई दिक्कत का पता चलता है तो उस पर ध्यान देना आवश्यक है और ऐसे लोगों की जीत यह बताती है कि तकलीफ जगह जगह बरकरार है, इसलिए क्षेत्रीय इलाके का कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार की धार्मिक और राजनीतिक मांग लेकर खड़ा होता है और चुनाव जीत कर आ जाता है।"
उन्होंने कहा, "हालांकि इन तीनों लोगों की जीत को चेतावनी के स्तर पर नहीं लिया जाना चाहिए अपितु छूटे हुए विषयों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त इन लोगों की जीत हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती को भी दर्शाती है।"