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अमृतपाल, पूर्व पीएम के हत्यारे के बेटे और इंजीनियर रशीद के जीतने से कोई खतरा नहीं: विशेषज्ञ

© Photo : Social MediaThere is no threat from Amritpal, son of former PM's killer and engineer Rashid winning
There is no threat from Amritpal, son of former PM's killer and engineer Rashid winning - Sputnik भारत, 1920, 15.06.2024
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हाल ही में महीने भर चले चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने जीत हासिल की। हालांकि भारतीय जनता पार्टी अपने दम पर बहुमत प्राप्त करने में कामयाब नहीं हुई, लेकिन अपने साथी दलों के साथ केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब रही।
भारत में इस बार हुए चुनावों में विजयी हुए 543 उम्मीदवारों में से केवल 7 ऐसे स्वतंत्र उम्मीदवार थे जिन्होंने देश के प्रमुख दलों को हरकार संसद तक का अपना सफर तय किया जो अपने आप में काफी दुर्लभ है।
देश भर से जीत कर आए 7 स्वतंत्र उमीदवारों में से 3 ऐसे उम्मीदवार चुनकार सामने आए हैं जिनकी जीत ने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी जो हैं कट्टरपंथी प्रचारक और ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख अमृतपाल सिंह, जम्मू कश्मीर से शेख अब्दुल रशीद और पंजाब के सरबजीत सिंह खालसा।
अमृतपाल सिंह वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत असम की डिब्रूगढ़ जेल में हैं। उन्होंने पंजाब की खडूर साहिब सीट से कांग्रेस के कुलबीर सिंह जीरा को हराया, वहीं शेख अब्दुल रशीद, जिन्हें इंजीनियर रशीद के नाम से भी जाना जाता है, जो वर्तमान में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत तिहाड़ जेल में हैं। उन्होंने बारामुल्ला लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हराकर जीत हासिल की।
इसके अलावा इंदिरा गांधी के हत्यारों में से एक बेअंत सिंह के बेटे सरबजीत सिंह खालसा ने आम आदमी पार्टी (आप) के करमजीत सिंह अनमोल को हराकर फरीदकोट लोकसभा सीट जीती।
Sputnik ने भारत में वरिष्ठ पत्रकार और कई लोकसभा चुनावों को कवर कर चुके अरविन्द मोहन से यह जानने की कोशिश की कि राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाने के लिए कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत जेल में बंद अमृतपाल सिंह, भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह के पुत्र करर्जीत सिंह अनमोल और जेल में बंद इंजीनियर रशीद का के चुनाव जीतने के क्या मायने हैं।
वरिष्ठ पत्रकार से जब पूछा गया कि इंदिरा गांधी के हत्यारे के बेटे, कट्टरपंथी प्रचारक अमृतपाल और इंजीनियर राशिद की जीत देश की राजनीतिक गतिशीलता को प्रभावित करेगी तब उन्होंने बताया कि नहीं यह नया परिवर्तन है, क्योंकि पॉलिटिक्स में ऐसे लोग पहले रहे हैं और चुनाव में पहले जीते भी हैं। हालांकि कानून से पास होने के बाद वे अपनी बात संसद में रख सकते हैं, उनका जीतना एक तरह से खतरे की घंटी है, लेकिन सामान्य ढंग से उसमें कोई हर्ज नहीं है क्योंकि उन्हें जनता ने चुना है।

अरविन्द मोहन ने कहा, "लोकतंत्र में सख्त आवाजें आनी चाहिए, लेकिन इन तीनों में से दो को कानून के हिसाब से पास होना होगा, अगर इनको संसद में पहुंचकर अपनी आवाज उठानी है तो इन्हें कानून की परीक्षा से पास होना होगा। हालांकि उन्हें जनता ने तो पास कर दिया है, लेकिन अब प्रतीक्षा करनी होगी कि न्यायालय उनके बारे में क्या कहता है।

इन स्वतंत्र उमीदवारों के जीतने पर मतदाताओं के शेष राजनीतिक दलों पर कम होते विश्वास के बारे में बोलते हुए अरविन्द मोहन ने कहा कि ऐसा नहीं है, असल में ये उम्मीदवार अपने जीवन में एक अलग तरह की सोच को अपनाते हैं और कट्टरपंथी विचारधारा के चरम पर चले हैं, हालांकि उनका चुनकर आना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन दूसरी पार्टियों के हिसाब से वें ठीक नहीं हैं।

उन्होंने कहा, "देश की जनता अपने हिसाब से सोचती है, और अकेले ये लोग ही नहीं जीते हैं आप पाएंगे कि हर चुनावों में दो, चार ऐसे लोग जीतते हैं जो बिल्कुल अपने सादे पन से प्रचार करके, जनता से पैसे जुटाकर बड़े बड़े नेताओं को पटखनी दे देते हैं, और लोगों ने इन तीन का अपने हिसाब से मूल्यांकन किया है क्योंकि समाज अपने हिसाब से सोचता है।"

अरविंद मोहन इन स्वतंत्र उम्मीदवारों की जीत पर मतदाता व्यवहार के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि इन तीनों को समाज में कोई चोर नहीं कह सकता है, जबकि देश के एक बड़ा वर्ग स्थापित दलों के नेताओं को चोर मानता होगा। इसका उदाहरण है संसद में गलत हलफ़नामा देना आज की तारीख में हर दूसरा नेता कर रहा है।

अरविन्द मोहन ने कहा, "ये लोग सिस्टम की हिसाब से अनफिट हों लेकिन समाज के मूल्यांकन पर खरे हैं और ऐसे लोगों का चुन कर आना यह दिखाता है कि अभी भी लोगों से ऊपर कुछ नहीं है क्योंकि लोग ऐसे नेता को भी जिता सकते है जिसके पास ना तो कोई दल है और ना ही कोई शक्ति, और एक तरह से देखा जाए तो इन्हें देखकर अच्छा लगता है।"

अमृतपाल सिंह, इंजीनियर रशीद और सरबजीत सिंह खालसा जैसे उमीदवारों के जीतने पर लोक सभा में नीतिगत प्राथमिकताओं और विधायी एजेंडे पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बोलते हुए अरविन्द कहते हैं कि सरकार में पॉलिसी बनाने वाले लोगों को संवेदनशील रहना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में हर आवाज का मूल्य होना चाहिए, बल्कि जो जितना छोटा है और जितना तेज आवाज उठा रहा है उस पर पहले ध्यान देना चाहिए न कि सिर्फ बहुसंख्यक पर ही ध्यान दिया जाए।

अरविन्द मोहन ने जोर देकर कहा, "लोकतंत्र का कार्य यह है कि किसी को भी बहुत अधिक तकलीफ न हो और कहीं से भी कोई दिक्कत का पता चलता है तो उस पर ध्यान देना आवश्यक है और ऐसे लोगों की जीत यह बताती है कि तकलीफ जगह जगह बरकरार है, इसलिए क्षेत्रीय इलाके का कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार की धार्मिक और राजनीतिक मांग लेकर खड़ा होता है और चुनाव जीत कर आ जाता है।"

अंत में अरविन्द मोहने ने कहा कि इससे किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है बस इस पर सबके ध्यान देने वाली बात है।

उन्होंने कहा, "हालांकि इन तीनों लोगों की जीत को चेतावनी के स्तर पर नहीं लिया जाना चाहिए अपितु छूटे हुए विषयों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त इन लोगों की जीत हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती को भी दर्शाती है।"

Indian Prime Minister Narendra Modi, center, in a saffron cap, and Chief Minister of Uttar Pradesh Yogi Adityanath, left, in saffron robes, ride in an open vehicle as they campaign for Bharatiya Janata Party (BJP) for the upcoming parliamentary elections in Ghaziabad, India, Saturday, April 6, 2024.  - Sputnik भारत, 1920, 05.06.2024
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