रूस-यूक्रेन संकट से भारत ने जो सबसे बड़ा सबक सीखा है वह है रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना। दूसरा सबक है ज़मीन पर लड़े जाने वाले परंपरागत युद्ध अभी भी सबसे महत्वपूर्ण हैं, भारतीय सेना मुख्यालय के सूत्र (नाम न बताने की शर्त पर) ने Sputnik India को बताया।
रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष को भारतीय सेना ने बारीकी से देखा और उसका अध्ययन किया। इस अध्ययन से निकले निष्कर्षों को सेना ने अपनी ट्रेनिंग में शामिल करना भी शुरू कर दिया है।
इस अध्ययन के नतीज़ों के बारे में सेना के सूत्रों से Sputnik India को मिली जानकारी के अनुसार, रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना ज़रूरी है, आपातकाल के समय देश की रक्षा को विदेशों की मर्ज़ी पर नहीं छोड़ा जा सकता है। उनके अनुसार, इसके अलावा रणनीति, तकनीक, सैन्य नेतृत्व, सैनिकों का मनोबल और सेना के प्रभावी संगठन पर भी ध्यान देना जरूरी है ताकि सेना भविष्य के संभावित युद्धों के लिए तैयार रहे।
सूत्रों ने बताया कि खासतौर पर हथियारों के उत्पादन के लिए स्वदेशी उद्योगों की क्षमता बढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण है। इस संघर्ष में ड्रोन और उन्हें रोकने की ताक़त का महत्व भी साफ़ नज़र आ गया। एक ताक़तवर एयर डिफेंस बनाना ज़रूरी है ताकि दुश्मन के हवाई हमलों को कारगर ढंग से रोका जा सके।
सेना के अध्ययन के बारे में Sputnik India को मिली जानकारी के मुताबिक, भारतीय सेना तोपखाने पर बहुत ध्यान दे रही है। भारत को भी अपनी सुरक्षा के लिए ज़मीन पर की जाने वाली कार्रवाइयों की सबसे ज्यादा ज़रूरत होगी इसलिए सेना रूस-यूक्रेन संघर्ष में ज़मीनी कार्रवाइयों का विश्लेषण कर रही है ताकि भविष्य के संभावित युद्धों के लिए तैयार रहा जा सके।
सूत्रों के अनुसार, लड़ाई की नई तकनीकों में महारत हासिल करने का सबक भी इस संघर्ष में मिला है। इंफॉर्मेशन वारफेयर के अलावा संचार के नए साधन और अंतरिक्ष में रखे गए सिस्टम बहुत महत्वपूर्ण हैं।
सूत्रों ने बताया कि इसके साथ इस संघर्ष में भारतीय सेना ने मिसाइलों, रॉकेट्स फोर्स और ड्रोन का महत्व समझा है। इस संघर्ष से जो सबसे बड़ा सबक सामने आया है, वह यह है कि तैयारी हमेशा बहुत अच्छी होनी चाहिए, क्योंकि असावधानी किसी भी सेना के लिए बहुत खतरनाक हो सकती है।