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भारत में आज से लागू हुए नए आपराधिक कानून औपनिवेशिक युग के IPC कानूनों से कैसे अलग हैं?

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत कानून पुलिस हिरासत में हिरासत की अवधि को सीआरपीसी के तहत मौजूदा 15 दिन की सीमा से बढ़ाकर 90 दिन कर देता है। सामान्य दंडनीय अपराधों के लिए हिरासत की अवधि ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं।
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दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 100 सालों से अधिक पुराने अंग्रेजों के बनाए गए भारतीय दंड संहिता (IPC) को बदलकर सोमवार से भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम भारतीय दंड संहिता को लागू कर दिया गया।
देश में लागू किये गए तीनों नए कानून मिलकर आपराधिक न्यायशास्त्र में दंडनीय अपराधों को परिभाषित करने, जांच और साक्ष्य एकत्र करने की प्रक्रिया निर्धारित करने से लेकर अदालत में मुकदमे की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं। नए कानून दंड प्रक्रिया संहिता, 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगे।
IPC के बाद लाई गई भारतीय न्याय संहिता (BNS) में शादी करने का वादा करके धोखा देने से लेकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग के आधार पर 'भीड़ द्वारा हत्या', छीना-झपटी से लेकर कड़े आतंकवाद-रोधी, संगठित अपराधों को इसके दायरे में लाया गया है।
इन कानूनों के लागू होने के बाद से देश पर पड़ने वाले असर से लेकर इन कानूनों को आसान भाषा में जानने के लिए Sputnik भारत ने कानून विशेषज्ञ और भारत की सर्वोच्च अदालत में एडवोकेट वरुण चुग से बात की।

नए आपराधिक कानून औपनिवेशिक युग IPC से कैसे अलग ?

कानून विशेषज्ञ वरुण चुघ ने बताया कि औपनिवेशिक युग की भारतीय दंड संहिता (IPC) को बदलने के लिए पेश किए गए नए भारतीय आपराधिक कानून देश के कानूनी परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाते हैं।औपनिवेशिक कानून औपनिवेशिक नियंत्रण को बनाए रखने के लिए बनाए गए थे। ये कानून पुराने हो चुके थे और आधुनिक समाज की ज़रूरतों के साथ तालमेल बिठाने के बजाय कठोर थे।

सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ने कहा, "उभरते समाज और विकासशील भारत की ज़रूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से लोगों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए और समाज के कमजोर या गैर-कमजोर वर्गों पर ज़ोर देते हुए नए कानून बनाए गए हैं। साथ ही, नए कानून ज़्यादा नागरिक, न्याय और व्यक्तिगत अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो समकालीन सामाजिक मूल्यों को दर्शाते हैं।"

आपराधिक कानून और औपनिवेशिक युग के कानूनों के अंतर के बारे में पूछे जाने पर वरुण चुघ ने बताया कि औपनिवेशिक कानूनों में कई पुराने प्रावधान और ऐसी परिभाषाएं शामिल थीं जो वर्तमान संदर्भ के लिए अप्रासंगिक हैं।
पुराने कानून मुख्य रूप से लोगों पर औपनिवेशिक नियंत्रण बनाए रखने और उन्हें डराने पर केंद्रित थे, न कि लोगों को सुरक्षित और सुना हुआ महसूस कराने पर। जबकि, नए कानूनों ने अपराधों की परिभाषाएं निर्धारित करने, अपराधों की नई श्रेणियों को पेश कर उन्हें मान्यता देने तथा पुरानी अवधारणाओं को हटाने के बाद इसे और अधिक व्यापक बनाकर कानूनों की पूरी अवधारणा को बदल दिया है।

उन्होंने कहा, "औपनिवेशिक कानूनों में तकनीकी प्रगति को ध्यान में नहीं रखा गया था, जबकि नए कानूनों में साइबर अपराध, डिजिटल साक्ष्य और अपराध तथा जांच के प्रौद्योगिकी-संचालित पहलुओं से संबंधित प्रावधान शामिल किए गए हैं। पुराने कानूनों की आलोचना अधिक अपराधी-केंद्रित होने के लिए की गई है, जबकि नए कानूनों में पीड़ितों की सुरक्षा और सहायता के लिए विभिन्न उपाय पेश किए गए हैं, जिनमें बेहतर गवाह सुरक्षा कार्यक्रम और पीड़ित मुआवजा योजनाएं शामिल हैं।"

इसके आगे उन्होंने जोर देकर कहा कि औपनिवेशिक कानूनों में लंबी और बोझिल प्रक्रियाएं निर्धारित थी और इसमें मानवाधिकारों की चिंताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया गया था। जबकि, नए कानूनों का उद्देश्य समय पर न्याय सुनिश्चित करने के लिए जांच और परीक्षण प्रक्रियाओं में तेजी लाना है, इसके अलावा हिरासत में यातना और दुर्व्यवहार के खिलाफ सख्त प्रावधानों के साथ मानवाधिकारों की सुरक्षा पर भी ज़ोर दिया गया है।

वरुण चुघ ने कहा, "औपनिवेशिक कानूनों में जटिल और कभी-कभी अस्पष्ट भाषा होती थी। जबकि, नए कानूनों ने कानूनी भाषा को सरल बनाया है जिससे यह आम नागरिक के लिए अधिक सुलभ और समझने योग्य हो गई है। और साथ ही औपनिवेशिक कानूनों ने दंडात्मक उपायों पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित किया है। जबकि, नए कानून दंडात्मक होने के साथ-साथ कुछ अपराधों के लिए पुनर्वास उपायों और दंड के वैकल्पिक रूपों पर भी विचार करते हैं।"

नए आपराधिक कानूनों से भारत में समग्र आपराधिक न्याय प्रणाली पर प्रभाव

भारत में नए आपराधिक कानूनों से समग्र आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव आने की उम्मीद है, जो दक्षता, निष्पक्षता, अधिकारों की सुरक्षा और तकनीकी अनुकूलन जैसे विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करेगा।
भारत की सर्वोच्च अदालत में एडवोकेट वरुण कहते हैं कि भारत में नए कानून तेजी से जांच और सुनवाई में मदद करेंगे जो मामलों की देरी और लंबित मामलों को कम करने के लिए प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करेगा, साथ ही इन कानूनों में हिरासत में यातना और दुर्व्यवहार के खिलाफ सख्त प्रावधान हैं।

एडवोकेट वरुण ने बताया, "नए कानून पीड़ित सहायता, साइबर अपराध, डिजिटल साक्ष्य प्रबंधन, गंभीर अपराधों के लिए सख्त दंड, पुनर्वास उपाय, नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण: न्याय और व्यक्तिगत अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ साथ जवाबदेही जैसे मुद्दों को भी संबोधित करते हैं।"

नए आपराधिक कानून किन समकालीन मुद्दों को संबोधित करते हैं?

वरुण चुघ के मुताबिक नए आपराधिक कानून कई महत्वपूर्ण तरीकों से भारतीय दंड संहिता (IPC) द्वारा कवर नहीं किए गए समकालीन मुद्दों को संबोधित करते हैं, यहाँ कुछ प्रमुख क्षेत्र और प्रावधान दिए गए हैं जो इस अनुकूलन को उजागर करते हैं। नए आपराधिक कानूनों द्वारा संबोधित समकालीन मुद्दे इस प्रकार हैं:
साइबर अपराध: साइबर अपराध और डिजिटल साक्ष्य से निपटने के लिए नए प्रावधान पेश किए गए हैं;
डिजिटल साक्ष्य: सटीकता और विश्वसनीयता में सुधार के लिए डिजिटल साक्ष्य की स्वीकार्यता और हैंडलिंग के नियम;
संगठित अपराध: संगठित अपराध और संबंधित गतिविधियों के लिए विशिष्ट परिभाषाएं और कठोर दंड;
आतंकवाद: आतंकवादी कृत्यों के लिए स्पष्ट परिभाषाएं और दंड;
मॉब लिंचिंग: मॉब लिंचिंग को एक अलग और गंभीर अपराध के रूप में पेश किया जाना;
हिट एंड रन मामले: दंड सहित हिट एंड रन मामलों को संबोधित करने के लिए विशिष्ट प्रावधान;
विस्तारित चोरी परिभाषाएं: वाहनों और सरकारी संपत्ति की चोरी को शामिल करना; एक अलग अपराध के रूप में "स्नैचिंग" की शुरुआत;
मानवाधिकार फोकस: हिरासत में यातना और दुर्व्यवहार के खिलाफ सख्त प्रावधान;
राजद्रोह और संप्रभुता: भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को शामिल करने के लिए राजद्रोह को पुनः परिभाषित करना।
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भारत में औपनिवेशिक कानूनों को ख़त्म करना क्यों महत्वपूर्ण है?
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