भारतीय नौसेना के उपाध्यक्ष वाइस एडमिरल कृष्णा स्वामीनाथन ने दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि SSBN का कार्यक्रम बहुत सफल रहा है।
एडमिरल स्वामीनाथन ने कहा, "इनमें से दो सबमरीन (अरिहंत और अरिघात) अब तक भारतीय नौसेना में शामिल हो चुकी हैं और अन्य सबमरीन अपने तय समय के अनुसार नौसेना में शामिल होंगी।"
भारतीय नौसेना ने समुद्र में अपनी अवरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए स्वदेशी SSBN का कार्यक्रम 90 के दशक में शुरू कर दिया था। इस कार्यक्रम के तहत कुल 5 सबमरीन बनाई जाने की योजना है।
पहली SSBN INS अरिहंत अगस्त 2016 में भारतीय नौसेना में शामिल हुई जबकि दूसरी आईएनएस अरिघात को इस साल 29 अगस्त को नौसेना में शामिल किया गया। तीसरी सबमरीन अरिदमन के अगले साल नौसेना में शामिल होने की संभावना है। इस क्लास की चौथी सबमरीन को 16 अक्टूबर को परीक्षण के लिए समुद्र में उतार दिया गया है जो अगले दो साल तक परीक्षणों और विकास के दौर से गुज़रेगी।
अरिहंत और अरिघात दोनों ही 6000 टन वज़न की सबमरीन हैं जिनका मुख्य अस्त्र K सीरीज़ की बैलेस्टिक मिसाइलें हैं। दोनों ही सबमरीन में 750 से 1500 किमी रेंज वाली 12 K-15 (सागरिका) या 4 K-4 मिसाइलें लगाई जा सकती हैं जिनकी रेंज 4000 किमी है। तीसरी और चौथी सबमरीन पहली दोनों से बड़ी होगी जिसका वज़न 7000 टन तक होगा। इनमें 8 K-4 या इतनी ही संख्या में 5000 से 6000 किमी तक मार करने वाली K-5 मिसाइलें लगाई जा सकेंगी।
रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने Sputnik इंडिया को बताया कि अगली सबमरीन में लगने वाली मिसाइलों की संख्या और रेंज में बढ़ोत्तरी की जाएगी इसलिए इनका आकार भी बड़ा होगा। अरिहंत क्लास की पांचवीं सबमरीन का वज़न 10000 टन तक होने की संभावना है।
अपनी अवरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय ने परमाणु ऊर्जा से चलने वाली लेकिन परंपरागत अस्त्रों से लैस दो एसएसएन बनाने को मंज़ूरी दे दी है। हिंद महासागर क्षेत्र से होकर दुनिया के व्यापार का बड़ा हिस्सा गुज़रता है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बहुत आवश्यक है। इसीलिए इस क्षेत्र में दुनिया की कई महाशक्तियां अपना नियंत्रण सुदृढ़ रखना चाहती है। भारतीय नौसेना इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मज़बूत बनाए रखने के लिए खुद को तेज़ी से आधुनिक बना रही है।