भारत-रूस संबंध
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भारतीय-रूसी मैत्री एवं सहयोग की संधि की 30वीं जयंती के मौके पर भारत में रूसी राजदूत का संदेश

© Sputnik / Mikhail MetzelIndia's Prime Minister Narendra Modi, left, shakes hands with Russia's President Vladimir Putin (File)
India's Prime Minister Narendra Modi, left, shakes hands with Russia's President Vladimir Putin (File) - Sputnik भारत, 1920, 28.01.2023
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28 जनवरी 1993 को रूस और भारत ने मैत्री एवं सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर किए थे।
इस मौलिक दस्तावेज ने सोवियत संघ के विघटन के बाद रूसी-भारतीय संबंधों के विकास में नए चरण की शुरुआत बनकर 1971 के भारत-सोवियत मैत्री संघ के आधार पर रहा। आज विश्वास के साथ यह कहा जा सकता है कि इसमें शामिल सिद्धांत, दोनों देशों के बीच पारंपरिक घनिष्ठ सहयोग का विश्वसनीय आधार हैं। और वे द्विपक्षीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंडे के विभिन्न विषयों पर विचार के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रहे हैं। कागजी तौर पर नहीं, वास्तविक तौर पर ही हम आपसी सम्मान का, समान और आपसी रूप से लाभकारी संबंधों के विकास का और संयुक्त राष्ट्र की भूमिका की मजबूती, इसके चार्टर और अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार रहने के सिद्धांत का समर्थन करते हैं। यह वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर हमारे दृष्टिकोण की एकता और निकटता का कारण है, और यह विशेष रूप से वर्तमान वैश्विक अशांति की स्थिति में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

1993 की संधि व्यापक द्विपक्षीय कानूनी आधार की शुरुआत है, जिसमें अब लगभग 100 अंतर-सरकारी और लगभग 60 अंतर-विभागीय दस्तावेज़ शामिल हैं, और इस संख्या में गैर-राज्य और निजी क्षेत्रों से सम्बंधित समझौते नहीं हैं। राष्ट्रीय हितों और दोनों देशों की जनताओं की ऐतिहासिक मित्रता पर आधारित होने के नाते इन दस्तावेजों की बड़ी संख्या पिछले युग की विशिष्ट उपलब्धियों को ज़्यादा समृद्ध करती है। उन दस्तावेज़ों में से 2000 की भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी विशेष है, वह दुनिया में इस तरह के पहले दस्तावेजों में से एक है।

भारत और रूस के बीच नेताओं की वार्षिक बैठकों सहित विभिन्न स्तरों पर संपर्कों की व्यवस्था की गई है। 21वां द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन दिसंबर 2021 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। 2022 में रूसी-भारतीय राजनैतिक संबंधों की 75 वीं जयंती के मौके पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत बार फोन पर बातचीत की, और समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन के दौरान भी बातचीत की। व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिकी, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग के साथ-साथ सैन्य और सैन्य-तकनीकी सहयोग पर दो अंतर-सरकारी समितियां प्रमुख तंत्र के रूप में काम करती हैं। द्विपक्षीय अंतर-संसदीय समिति भी काम करती है। 2021 में विदेश और रक्षा मंत्रियों के स्तर पर "2+2" प्रारूप में संवाद शुरू किया गया था। सुरक्षा परिषदों, विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के बीच समन्वय विकसित हो रहा है, और विदेश मंत्रालयों के बिच बातचीत नियमित तौर आयोजित की जाती हैं।

गौरतलब है कि न तो COVID-19 महामारी, न तो रूस विरोधी प्रतिबंधों के अभियान का बड़ा असर हमारे संपर्कों की तीव्रता पर पड़ा। याद दिलाएं कि नई दिल्ली ने उस अभियान में भाग नहीं लिया। इसके विपरीत, राजनीतिक शक्ति और पारस्परिक हित के मजबूत भंडार की मदद से हमें नकारात्मक प्रवृत्तियों को हटाने और बदलती परिस्थितियों के आदि हो जाने के अवसर मिले हैं। रूसी-भारतीय संबंध लंबे समय से राजनीतिक स्थिरांक हैं जो बाहरी तत्वों पर निर्भर नहीं हैं। आज हमारा लक्ष्य अंतरराज्यीय संबंधों में इस दुर्लभ और मूल्यवान गुण को संरक्षित और मजबूत करना है।

रूस को वैश्विक रसद और वित्तीय संबंधों से हटाने के पश्चिम के प्रयासों के बावजूद, भारत से आर्थिक संबंधों में प्रभावशाली परिणाम मिले हैं। 2022 में आपसी व्यापार में सब से बड़ी वृद्धि हुई, जो भारतीय आंकड़ों के अनुसार 30 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक है। रूसी तेल की आपूर्ति में 36 गुनी वृद्धि इन आंकड़ों तक पहुँचने में मददगार रही और अब भारतीय आयात में रूसी तेल का हिस्सा लगभग 25 प्रतिशत हो गया है। लेकिन उर्वरकों और कृषि उत्पादों के निर्यात में बहुत गुनी वृद्धि की मदद से भी इन आंकड़ों तक पहुँचना संभव हो पाया है। महत्वपूर्ण है कि नई दिल्ली ने किसी बाहरी आदेश के अनुसार रहने के बिना संप्रभु निर्णयों के आधार पर हमारे देश के साथ पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग का विस्तार करने के लिए अपनी इच्छा जताई।
गंभीर कार्य की बदौलत हम आपसी भुकतान करते समय राष्ट्रीय मुद्राओं का प्रयोग बढ़ाते हुए स्वतंत्र भुगतान प्रणाली बनाने में सक्षम हुए। हम वैकल्पिक परिवहन मार्गों और विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे को विकसित करते हैं, सुदूर पूर्व, साइबेरिया और उत्तरी समुद्री मार्ग के विकास के हिस्से के रूप में बड़े पैमाने पर ऊर्जा और संरचना की परियोजनाओं की ओर भागीदारों को आकर्षित करते हैं। निजी व्यवसायों के बीच बहुत संपर्कों को बढ़ावा दिया गया है, क्षेत्र अधिक सक्रिय हो गए हैं, कस्टम का सहयोग और फिनटेक के क्षेत्र में संबंध गहरे हो रहे हैं। हवाई अड्डे, समुद्र और नदी की संरचना में, धातुकर्म, पेट्रोकेमिकल और स्टार्टअप में, विमानों और जहाजों के निर्माण और शहरी निर्माण में उन्नत तकनीकों और डिजिटलीकरण के क्षेत्रों में नई संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। रूस से पश्चिमी कंपनियों के निकलने की मदद से भारतीय व्यवसाय को बड़े अवसर मिले हैं, जिनमें बहुत अवसर पूरे किए जा रहे हैं। यूरेशियन आर्थिक संघ और भारत के बीच मुक्त व्यापर क्षेत्र के निर्माण से और विभिन्न प्रारूप के कारगर वाणिज्यिक और औद्योगिक संगठनों को बनाने से अच्छी तरह के पुनर्गठन और व्यापार, आर्थिक और निवेश संबंधों के और विविधीकरण को सुनिश्चित करना संभव होगा।

द्विपक्षीय संबंधों का उच्च दर्जा उच्च-प्रौद्योगिकी की विशेष परियोजनाओं पर सफल सहयोग से सम्बंधित भी है। इनमें दक्षिण भारत में रूसी परियोजना के अनुसार कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र का निर्माण शामिल है। रूस एकमात्र ऐसा देश रहता है जो वास्तविक तौर पर भारतीय ऊर्जा क्षमता को मजबूती देते हुए परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के क्षेत्र में भारत के साथ समझौतों को पूरा करता है। हम भारतीय साझेदारों के साथ बांग्लादेश में रूपपुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण की परियोजना पर काम कर रहे हैं।

सैन्य-तकनीकी क्षेत्र में रूसी-भारतीय सहयोग बहुत बड़ा रहता है। दूसरों के विपरीत हमारा देश इस तरह के सहयोग को राजनीतिक आदेशों से नहीं जोड़ता है और उन्नत प्रौद्योगिकियों के अधिकतम संभव हस्तांतरण की पेशकश करता है। भारत में टी-90 टैंकों, सुखोई ३० एमकेआई लड़ाकू विमानों, AK-203 असॉल्ट राइफलों के साथ-साथ दूसरे हथियारों और उनकी सामग्री का लाइसेंस के आधार पर उत्पादन सरकारी कार्यक्रमों "मेक इन इंडिया" और "आत्मनिर्भर भारत" की आवश्यकताओं के अनुसार पूरी तरह आयोजित किया गया है। ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों के निर्माण की अत्यधिक सफल संयुक्त परियोजना को आदर्श कहा जा सकता है। रूस और भारत एस-400 मिसाइल प्रणालियों की आपूर्ति के अनुबंध सहित पूर्व में किए गए सभी समझौतों को पूरा करने पर काम करते रहते हैं।
अंतरिक्ष, वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग ऐतिहासिक रूप से प्राथमिकता है। 2021 में भारत की मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान गगनयान के हिस्से के रूप में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को रूस में प्रशिक्षित किया गया था। हम क्रायोजेनिक इंजनों और अंतरिक्ष नेविगेशन की समस्याओं को लेकर संवाद कर रहे हैं। हम क्वांटम और बायोटेक्नोलॉजी, कृत्रिम बुद्धि, फंडामेंटल और एप्लाइड भौतिकी और मेडिकल साइंस के क्षेत्र में सहयोग विकसित कर रहे हैं। इस क्षेत्र में और विशेष रूप से वैक्सीन ट्रैक पर COVID-19 का सामना करने के लिए संयुक्त कार्य की मदद से शक्तिशाली बढ़ावा दिया गया है।

भारत के साथ बहुपक्षीय साझेदारी का अभिन्न अंग व्यापक मानवीय संबंध है। दोनों देशों में आयोजित किए जाते सांस्कृतिक समारोह बहुत लोकप्रिय हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण नवंबर 2022 में नई दिल्ली, मुंबई और कलकत्ता में आयोजित दिलचस्प और यादगार रूसी संस्कृति का महोत्सव था। नवंबर और दिसंबर 2022 में पर्यटन के पहले द्विपक्षीय मंच के सफल आयोजन की मदद से पर्यटन के क्षेत्र में नए अवसर सामने आए।

शिक्षा और अंतर-विश्वविद्यालय के आदान-प्रदान के क्षेत्र में पहलें बहुत महत्वपूर्ण हैं। रूस में हर साल करीब 15-20 हजार भारतीय छात्र पढ़ते हैं। इस आंकड़े को बढ़ाया जा सकता है और बढ़ाया जाना चाहिए। भारत में रूसी विश्वविद्यालयों को बहुत अवसर मिलते हैं क्योंकि इस देश में विदेशी विश्वविद्यालयों की शाखाओं की स्थापना की अनुमति देने की योजना बनाई जा रही है। विभिन्न क्षेत्रों में पेशेवर इंडोलॉजिस्ट की शिक्षा को बढ़ाने सहित रूस में इंडोलॉजिकल क्षेत्रों की मदद और भारत में रूसी अध्ययन के विकास की मदद का महत्व बढ़ रहा है।
इस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि व्यावहारिक उपलब्धियाँ, उन में वृद्धि का स्थिर पारस्परिक हित और आपसी विश्वास हमें भू-राजनीतिक अस्थिरता को कारगर रूप से हटाने में और उभरती चुनौतियों का कारगर सामना करने में सक्षम करते हैं। हमारे दोनों देश न्यायोचित, बहुकेंद्रित विश्व व्यवस्था का, वैश्विक शासन के लोकतंत्रीकरण का और उसमें एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों की भूमिका बढ़ाने का ठोस समर्थन करते हैं। रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने की भारत की इच्छा का समर्थन करता है। हम ब्रिक्स और संयुक्त राष्ट्र के मंचों में अपने प्रयासों को एकजुट करते हैं, हम 2022 और 2023 में G20 और शंघाई सहयोग संगठन की भारतीय अध्यक्षता के लक्ष्यों का स्वागत करते हैं। हमारे दोनों देश समान सुरक्षा के सिद्धांत के उल्लंघन की स्थिति में देशों के बीच विभाजन रेखाओं को बनाना स्वीकार नहीं करते हैं। यूक्रेनी और अन्य संकटों के प्रति नई दिल्ली का विचारपूर्ण, संतुलित और स्वतंत्र दृष्टिकोण आदर योग्य है। विवादों और संघर्षों को हल करने के लिए नई दिल्ली का दृष्टिकोण भी आदर योग्य है जो बातचीत और सभी राज्यों के हितों पर ध्यान देने पर केंद्रित है।

यकीनन मौजूदा परिस्थितियों में रूस के लिए महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय साझेदार के रूप में भारत की भूमिका और बढ़ेगी। हमारी साझेदारी को मजबूत करने के लिए बहुत किया गया है, लेकिन वैश्विक परिवर्तन की मांगों पर खरा उतरने के लिए और अधिक करने की आवश्यकता है। पिछली पीढ़ियों की बुद्धिमत्ता इस रास्ते पर मदद है, जिन्होंने बहुत सालों के लिए द्विपक्षीय कानूनी आधार में संबंधों की नींव और सिद्धांतों को शामिल किया था। ज़रूर इस संदर्भ में ठोस आधार 1993 की मैत्री एवं सहयोग की संधि है, जिसके अनुसार दोनों देशों के जनताओं, वैश्विक शांति, सुरक्षा और सतत विकास के हितों में रूस भारत के साथ संबंध बना रहा है।

भारतीय-रूसी मैत्री एवं सहयोग की संधि की 30वीं जयंती के मौके पर भारत में रूसी राजदूत देनीस अलीपोव का संदेश।
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