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रूस अमेरिका से अधिक विश्वसनीय रक्षा भागीदार है: भारतीय वायुसेना और नौसेना के दिग्गज
रूस अमेरिका से अधिक विश्वसनीय रक्षा भागीदार है: भारतीय वायुसेना और नौसेना के दिग्गज
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भारतीय वायुसेना और नौसेना से जुड़े दो दिग्गजों ने कहा कि अमेरिका के साथ बढ़ती रक्षा साझेदारी के बावजूद भारतीय सशस्त्र बल रूस को अपना सबसे विश्वसनीय सैन्य साझेदार समझते हैं।
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भारतीय वायुसेना और नौसेना से जुड़े दो दिग्गजों ने कहा कि अमेरिका के साथ बढ़ती रक्षा साझेदारी के बावजूद भारतीय सशस्त्र बल रूस को अपना सबसे विश्वसनीय सैन्य साझेदार समझते हैं। पनडुब्बी की लड़ाई में विशेषज्ञता रखने वाले पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी कमोडोर अनिल जय सिंह के अनुसार, सोवियत काल से रूस भारत का विश्वसनीय भागीदार है।भारतीय वायुसेना के 70 प्रतिशत से अधिक उपकरण रूसी निर्मित हैं1960 के दशक से भारत रूसी रक्षा उपकरण खरीदने लगा था। नई दिल्ली को फॉक्सट्रॉट प्रारूप की पनडुब्बियां, पेट्या प्रारूप की कॉर्वेट और ओसा प्रारूप की मिसाइल नौकाएं मिलीं, जिन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में बहुत अच्छा काम किया।जब 1971 में दोस्ती की संधि पर हस्ताक्षर किए गए, तब सोवियत संघ ने रणनीतिक पहलों के संदर्भ में भारत का समर्थन करना शुरू किया। जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से संबंधित पहलें सामने आती थीं, तो सोवियत संघ हमेशा भारतीय पक्ष में होता था और उसके बाद रूस भी यही करता रहा।नौसेना में भी लंबे समय से रूसी उपकरण का इस्तेमाल किया जा रहा है। उसके पास फॉक्सट्रॉट प्रारूप की पनडुब्बियां और किलो प्रारूप की पनडुब्बियां थीं, और फिर उसके पास काशिन प्रारूप के विध्वंसक थे जिन्होंने लगभग 35 वर्षों तक बहुत अच्छा काम किया। फिर पिछले दशक में भारत ने रूसी एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रमादित्य को खरीदा।बहुत गहरा भरोसाभारत को हमेशा से भरोसा रहा है कि रूस उसकी आवश्यकता को पूरा करेगा।"अब हमें S-400 सिस्टम मिल रहा है जो एक रणनीतिक हथियार प्रणाली है। इसलिए, ये ऐसी प्रक्रियाएं हैं जो वर्षों से संबंधों को फलते-फूलते हुए देख रही हैं और इस उपकरण को संभालने के अनुभव के कारण, और इस उपकरण को समझने के कारण हम उपकरण और प्राप्त समर्थन पर विश्वास महसूस करने लगे," पूर्व नौसेना अधिकारी ने राय कहा।अमेरिकी दृष्टिकोण से, सिंह ने कहा कि नई दिल्ली के संबंध इतने गहरे या परिपक्व नहीं हैं कि वह यह विश्वास कर सके कि वह हर चीज के लिए हर समय अमेरिका पर भरोसा कर सकता है।भारत को हाल ही में P-8I समुद्री गश्ती विमान मिला है, लेकिन भारतीय सेना को अभी मालूम नहीं है कि क्या तकनीकी सहायता उपलब्ध है और भारत-प्रशान्त क्षेत्र में भारत से संबंधित क्या उम्मीद है।क्या अमेरिका पर भरोसा किया जा सकता है?एकीकृत रक्षा कर्मचारियों (आईडीएस) के पूर्व उप प्रमुख एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) मुथुमनिकम मथेश्वरन ने इस मामले पर सिंह के विचार से सहमती जताई।इस सप्ताह Sputnik से बात करते हुए मथेश्वरन ने टिप्पणी की कि जब 1960 के दशक में सोवियत संघ से संबंध शुरू हुए थे, तब से रूस भारत को हथियार प्रणालियों का मुख्य आपूर्तिकर्ता है।भारतीय वायुसेना के पूर्व अधिकारी ने यह कहा कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि जब द्विध्रुवी विश्व के समय अमेरिकी गुट और सोवियत गुट के बीच शीत युद्ध चलता था, तब भारत ने तटस्थ रहने और किसी का पक्ष नहीं लेने का फैसला किया था और गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेता बना।मथेश्वरन ने जोर देकर कहा कि उस समय रूस ने भारत का समर्थन किया था, जिससे मजबूत सैन्य-औद्योगिक संबंध सामने आए।भारत लाइसेंस के तहत विमान, पनडुब्बी, जहाज, बंदूक और टैंक सहित सोवियत हथियारों का उत्पादन करने के साथ-साथ रूस से भी खरीदता था।यह भी महत्वपूर्ण बात है कि 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के दौरान अमेरिका खुले तौर पर भारत के खिलाफ था और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में नई दिल्ली और सोवियत के समर्थन को और अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, भारी उद्योग, आदि जैसे अन्य क्षेत्रों में सोवियत-भारतीय सामरिक संबंधों को धमकी दी थी। इसके कारण भारतीय लोग रूस को हमेशा बहुत विश्वसनीय रणनीतिक साझेदार समझते हैं।
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अमरीका रूस संघर्ष, भारत और रूस की सैनिक भागीदारी, रूस से भारत में सैनिक उपकरणों की आपूर्ति, रूसी सैनिक उपकरण, भारतीय दिग्गजों का कहना
अमरीका रूस संघर्ष, भारत और रूस की सैनिक भागीदारी, रूस से भारत में सैनिक उपकरणों की आपूर्ति, रूसी सैनिक उपकरण, भारतीय दिग्गजों का कहना
रूस अमेरिका से अधिक विश्वसनीय रक्षा भागीदार है: भारतीय वायुसेना और नौसेना के दिग्गज
20:12 07.04.2023 (अपडेटेड: 20:18 07.04.2023) विशेष
भारत आने वाले भविष्य में रूसी निर्मित S-400 मिसाइल प्रणाली का परीक्षण करेगा, जिसे नई दिल्ली ने 2018 में 5.43 अरब डॉलर के सौदे में खरीदा था।
भारतीय वायुसेना और नौसेना से जुड़े दो दिग्गजों ने कहा कि अमेरिका के साथ बढ़ती रक्षा साझेदारी के बावजूद भारतीय सशस्त्र बल रूस को अपना सबसे विश्वसनीय सैन्य साझेदार समझते हैं।
उनके अनुसार, भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना का रूसी हथियार प्रणालियों पर गहरा विश्वास है और उनको पश्चिमी देशों या अमेरिका से पहुंचाए गए हथियारों और गोला-बारूद की तुलना में रूस से पहुंचे हथियारों और गोला-बारूद का इस्तेमाल करना अधिक सुविधाजनक है।
पनडुब्बी की लड़ाई में विशेषज्ञता रखने वाले पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी कमोडोर अनिल जय सिंह के अनुसार, सोवियत काल से रूस भारत का विश्वसनीय भागीदार है।
भारतीय वायुसेना के 70 प्रतिशत से अधिक उपकरण रूसी निर्मित हैं
1960 के दशक से भारत रूसी
रक्षा उपकरण खरीदने लगा था। नई दिल्ली को फॉक्सट्रॉट प्रारूप की पनडुब्बियां, पेट्या प्रारूप की कॉर्वेट और ओसा प्रारूप की मिसाइल नौकाएं मिलीं, जिन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में बहुत अच्छा काम किया।
जब 1971 में दोस्ती की संधि पर हस्ताक्षर किए गए, तब सोवियत संघ ने रणनीतिक पहलों के संदर्भ में भारत का समर्थन करना शुरू किया। जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से संबंधित पहलें सामने आती थीं, तो सोवियत संघ हमेशा भारतीय पक्ष में होता था और उसके बाद रूस भी यही करता रहा।
“हम लंबे समय से बहुत सारे रूसी उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं। भारतीय वायुसेना के लगभग 70 प्रतिशत उपकरण रूसी हैं, सेना के 50 से 60 प्रतिशत तक हार्डवेयर रूसी हैं, जिनमें T72 टैंक और T90 टैंक सहित अधिकांश आर्मर रूसी हैं," सिंह ने शुक्रवार को Sputnik को बताया।
नौसेना में भी लंबे समय से रूसी उपकरण का इस्तेमाल किया जा रहा है। उसके पास फॉक्सट्रॉट प्रारूप की पनडुब्बियां और किलो प्रारूप की पनडुब्बियां थीं, और फिर उसके पास काशिन प्रारूप के विध्वंसक थे जिन्होंने लगभग 35 वर्षों तक बहुत अच्छा काम किया। फिर पिछले दशक में भारत ने रूसी एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रमादित्य को खरीदा।
भारत को हमेशा से भरोसा रहा है कि रूस उसकी आवश्यकता को पूरा करेगा।
"अब हमें S-400 सिस्टम मिल रहा है जो एक रणनीतिक हथियार प्रणाली है। इसलिए, ये ऐसी प्रक्रियाएं हैं जो वर्षों से संबंधों को फलते-फूलते हुए देख रही हैं और इस उपकरण को संभालने के अनुभव के कारण, और इस उपकरण को समझने के कारण हम उपकरण और प्राप्त समर्थन पर विश्वास महसूस करने लगे," पूर्व नौसेना अधिकारी ने राय कहा।
अमेरिकी दृष्टिकोण से, सिंह ने कहा कि नई दिल्ली के संबंध इतने गहरे या परिपक्व नहीं हैं कि वह यह विश्वास कर सके कि वह हर चीज के लिए हर समय अमेरिका पर भरोसा कर सकता है।
"क्योंकि पिछले मामलों में, 1965 और 1971 में, अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति बहुत स्पष्ट झुकाव था। इसलिए लोगों के दिमाग में इस तरह की बातें हैं - क्या अमेरिका विश्वसनीय है? क्या अमेरिका जरूरत पड़ने पर हमारा समर्थन करेगा जैसा कि रूस ने किया है अतीत में? इसलिए यह बहुत संदेहात्मक है, दूसरी बात यह है कि हमने हाल ही में अमेरिकी उपकरणों का संचालन करना शुरू किया है।" सिंह ने कहा।
भारत को हाल ही में P-8I समुद्री गश्ती विमान मिला है, लेकिन भारतीय सेना को अभी मालूम नहीं है कि क्या तकनीकी सहायता उपलब्ध है और भारत-प्रशान्त क्षेत्र में भारत से संबंधित क्या उम्मीद है।
क्या अमेरिका पर भरोसा किया जा सकता है?
एकीकृत रक्षा कर्मचारियों (आईडीएस) के पूर्व उप प्रमुख एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) मुथुमनिकम मथेश्वरन ने इस मामले पर सिंह के विचार से सहमती जताई।
इस सप्ताह Sputnik से बात करते हुए मथेश्वरन ने टिप्पणी की कि जब 1960 के दशक में सोवियत संघ से संबंध शुरू हुए थे, तब से रूस भारत को हथियार प्रणालियों का मुख्य आपूर्तिकर्ता है।
भारतीय वायुसेना के पूर्व अधिकारी ने यह कहा कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि जब द्विध्रुवी विश्व के समय अमेरिकी गुट और सोवियत गुट के बीच शीत युद्ध चलता था, तब भारत ने तटस्थ रहने और किसी का पक्ष नहीं लेने का फैसला किया था और गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेता बना।
मथेश्वरन ने बताया, "पश्चिमी दुनिया के खयाल में भारत विशेष रूप से सोवियत संघ के पक्ष में था। दूसरी ओर, अमेरिका के नेतृत्व में सैन्य गठबंधन में शामिल पाकिस्तान को अमेरिका से बहुत सैन्य सहायता मिलती रही।"
मथेश्वरन ने जोर देकर कहा कि उस समय रूस ने भारत का समर्थन किया था, जिससे मजबूत सैन्य-औद्योगिक संबंध सामने आए।
भारत लाइसेंस के तहत
विमान, पनडुब्बी, जहाज, बंदूक और टैंक सहित सोवियत हथियारों का उत्पादन करने के साथ-साथ रूस से भी खरीदता था।
यह भी महत्वपूर्ण बात है कि 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के दौरान अमेरिका खुले तौर पर भारत के खिलाफ था और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में नई दिल्ली और सोवियत के समर्थन को और अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, भारी उद्योग, आदि जैसे अन्य क्षेत्रों में सोवियत-भारतीय सामरिक संबंधों को धमकी दी थी। इसके कारण भारतीय लोग रूस को हमेशा बहुत विश्वसनीय रणनीतिक साझेदार समझते हैं।
"रूसी हथियार प्रणालियाँ, अमेरिकी और पश्चिमी प्रणालियों की तुलना में बेहतर हैं। इसके अलावा, इनपुट लागत और अधिग्रहण लागत के मामले में, पश्चिमी प्रणालियाँ रूसी प्रणालियों की तुलना में बहुत महंगी हैं," मुथुमनिकम मथेश्वरन ने अंत में कहा।