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क्या एक दशक में चरम पर पहुंच जाएगी भारत की कोयले की मांग?
क्या एक दशक में चरम पर पहुंच जाएगी भारत की कोयले की मांग?
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2030 और 2050 में विश्व में कोयले की खपत अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के पूर्वानुमान से अधिक होगी, जबकि भारत वैश्विक खपत को प्रोत्साहित करने वाले देशों में से एक होगा।
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2030 और 2050 में विश्व में कोयले की खपत अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के पूर्वानुमान से अधिक होगी, जबकि भारत वैश्विक खपत को प्रोत्साहित करने वाले देशों में से एक होगा, एक परामर्श कंपनी याकोव एंड पार्टनर्स के अध्ययन रिपोर्ट की Sputnik ने समीक्षा की।रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयले की मांग मुख्य रूप से भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ-साथ एशिया (मुख्य रूप से एशिया-प्रशांत क्षेत्र) और अफ्रीका के अन्य विकासशील देशों द्वारा प्रदर्शित की जाएगी।रिपोर्ट बताती है कि दुनिया की थर्मल कोयले की खपत 2030 तक तीन प्रतिशत बढ़कर 2021 में 6.8 बिलियन टन से 7 बिलियन टन हो जाएगी। वहीं, 2050 तक ट्रेंड उल्टा होगा। नतीजतन, खपत 38% घटकर 4.2 बिलियन टन रह जाएगी।Sputnik ने कई भारत-आधारित विशेषज्ञों से बात की जिन्होंने भारत की वर्तमान खपत पर और काले ईंधन का इस्तेमाल समाप्त करने की योजना पर अपने विचार साझा किए।एम्बर नामक थिंक टैंक के एशिया कार्यक्रम के प्रमुख आदित्य लोला ने कहा, "यदि आप सांख्यिकीय रूप से राष्ट्रीय विद्युत योजना के मसौदा संस्करण पर देखेंगे, जो पिछले सितंबर और दिसंबर के बीच जारी किया गया था, और नई इष्टतम उत्पादन क्षमता मिश्रण रिपोर्ट पर देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि कोयला उत्पादन अगले 10 वर्षों तक हर साल लगभग एक से 1.5% तक बढ़ने की संभावना है। हालांकि, अधिकांश प्रतिरूपण से पता चलता है कि सौर ऊर्जा अधिकांश मांग को पूरा करेगा।"साथ ही उन्होंने कहा, "साल 2018 से 2050 तक अनुमानित 30% की वृद्धि एक क्रमिक वृद्धि है। यह एक त्वरित उछाल नहीं है। और, यदि आप इसे सापेक्ष दृष्टिकोण से देखते हैं, तो समग्र ऊर्जा मिश्रण में कोयले का हिस्सा गिर जाएगा।"कोयले की खपत कम करने की आवश्यकतासेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा, "अगर हम जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के 1.5 डिग्री लक्ष्य के अनुसार चलते हैं तो विकसित देशों में वैश्विक कोयले की खपत 2030 तक और विकासशील देशों में 2040 तक गिरनी है। यदि देश कोयले के उपयोग को कम करने में विफल रहते हैं तो हम अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएंगे।"साथ ही उन्होंने कहा, "और यह सिर्फ भारत के लिए नहीं है, आने वाले समय में कोयले की लागत बढ़ेगी और दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं होगी। और, इसमें हम कोयले से उत्पन्न स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरों को नहीं जोड़ रहे हैं।"विशेष रूप से भारत की कोयले की खपत के बारे में बोलते हुए दहिया ने कहा, "मेरे अनुमान के अनुसार, भारत में कोयले की खपत 2026 में चरम पर होगी। यदि हम अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करते हैं, तो हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन अगर हम विफल रहे तो कोयले का उपयोग बढ़ जाएगा।"
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अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के पूर्वानुमान, विश्व में कोयले की खपत, भारत की कोयले की मांग, भारत का अक्षय ऊर्जा लक्ष्य, भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, कोयले की मांग, world coal consumption, consumption of coal india, eco-friendly fuel, environment india coal consumption
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क्या एक दशक में चरम पर पहुंच जाएगी भारत की कोयले की मांग?
2022-23 में भारत की 73 प्रतिशत बिजली की जरूरत कोयले से पूरी होती है। केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) को उम्मीद है कि 2030 तक इसमें 55 प्रतिशत की कमी आएगी। भारत का अक्षय ऊर्जा लक्ष्य 2030 तक 450 मेगावाट स्थापित करना है।
2030 और 2050 में विश्व में कोयले की खपत अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के पूर्वानुमान से अधिक होगी, जबकि भारत वैश्विक खपत को प्रोत्साहित करने वाले देशों में से एक होगा, एक परामर्श कंपनी याकोव एंड पार्टनर्स के अध्ययन रिपोर्ट की Sputnik ने समीक्षा की।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयले की मांग मुख्य रूप से भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ-साथ एशिया (मुख्य रूप से एशिया-प्रशांत क्षेत्र) और अफ्रीका के अन्य विकासशील देशों द्वारा प्रदर्शित की जाएगी।
"दोनों प्रकार के कोयले की वैश्विक खपत को चलाने वाले देशों में से एक भारत होगा। अनुमान है कि 2050 तक देश 2021 के स्तर की तुलना में थर्मल कोयले की खपत में 30% की वृद्धि करेगा, और धातुकर्म कोयले की खपत 4 गुना से अधिक बढ़ सकती है। यह अर्थव्यवस्था में वृद्धि और देश की जनसंख्या में वृद्धि के कारण होगा," अध्ययन में कहा गया।
रिपोर्ट बताती है कि दुनिया की थर्मल कोयले की खपत 2030 तक तीन प्रतिशत बढ़कर 2021 में 6.8 बिलियन टन से 7 बिलियन टन हो जाएगी। वहीं, 2050 तक ट्रेंड उल्टा होगा। नतीजतन, खपत 38% घटकर 4.2 बिलियन टन रह जाएगी।
Sputnik ने कई भारत-आधारित विशेषज्ञों से बात की जिन्होंने
भारत की वर्तमान खपत पर और काले ईंधन का इस्तेमाल समाप्त करने की योजना पर अपने विचार साझा किए।
एम्बर नामक थिंक टैंक के एशिया कार्यक्रम के प्रमुख आदित्य लोला ने कहा, "यदि आप सांख्यिकीय रूप से राष्ट्रीय विद्युत योजना के मसौदा संस्करण पर देखेंगे, जो पिछले सितंबर और दिसंबर के बीच जारी किया गया था, और नई इष्टतम उत्पादन क्षमता मिश्रण रिपोर्ट पर देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि कोयला उत्पादन अगले 10 वर्षों तक हर साल लगभग एक से 1.5% तक बढ़ने की संभावना है। हालांकि, अधिकांश प्रतिरूपण से पता चलता है कि सौर ऊर्जा अधिकांश मांग को पूरा करेगा।"
"हालांकि सब कुछ मांग पर निर्भर है। यदि मांग पांच प्रतिशत से कम (वार्षिक) बढ़ती है, तो इसे सौर के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है (यदि भारत अक्षय ऊर्जा लक्ष्य प्राप्त करता है) और कोयले की मांग स्थिर हो सकती है," लोला ने कहा।
साथ ही उन्होंने कहा, "साल 2018 से 2050 तक अनुमानित 30% की वृद्धि एक क्रमिक वृद्धि है। यह एक त्वरित उछाल नहीं है। और, यदि आप इसे सापेक्ष दृष्टिकोण से देखते हैं, तो समग्र ऊर्जा मिश्रण में कोयले का हिस्सा गिर जाएगा।"
कोयले की खपत कम करने की आवश्यकता
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा, "अगर हम जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के 1.5 डिग्री लक्ष्य के अनुसार चलते हैं तो विकसित देशों में वैश्विक कोयले की खपत 2030 तक और विकासशील देशों में 2040 तक गिरनी है। यदि देश कोयले के उपयोग को कम करने में विफल रहते हैं तो हम अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएंगे।"
"भारत जैसे देशों में कोयले की लागत आर्थिक रूप से भी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के समान है, और आने वाले समय में उद्योग के बढ़ने पर यह और नीचे आ जाएगी," दहिया ने कहा।
साथ ही उन्होंने कहा, "और यह सिर्फ भारत के लिए नहीं है, आने वाले समय में कोयले की लागत बढ़ेगी और दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं होगी। और, इसमें हम कोयले से उत्पन्न स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरों को नहीं जोड़ रहे हैं।"
विशेष रूप से भारत की कोयले की खपत के बारे में बोलते हुए दहिया ने कहा, "मेरे अनुमान के अनुसार,
भारत में कोयले की खपत 2026 में चरम पर होगी। यदि हम अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करते हैं, तो हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन अगर हम विफल रहे तो कोयले का उपयोग बढ़ जाएगा।"
"वैश्विक दक्षिण या विकसित राष्ट्रों को ग्लोबल नॉर्थ या गरीब देशों के लिए एक जिम्मेदारी निभानी चाहिए, और विकसित देशों को आगे आकर प्रौद्योगिकी और आर्थिक सहायता से छोटे देशों को मदद देना चाहिए," दहिया ने कहा।