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इज़राइल-हमास संघर्ष का प्रभाव भारत में तेल तक सीमित नहीं है: विशेषज्ञ
इज़राइल-हमास संघर्ष का प्रभाव भारत में तेल तक सीमित नहीं है: विशेषज्ञ
Sputnik भारत
इज़राइल-हमास संघर्ष के बाद वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल एवं तेल की बढ़ती कीमतों ने लोगों को आशंकित कर दिया है और भारतीय बाजार भी घटना के संभावित प्रभाव से अछूता नहीं है।
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कच्चे तेल की कीमतों में सप्ताह की शुरुआत में तेज वृद्धि देखी गई क्योंकि इज़राइल और फिलिस्तीनी इस्लामी समूह हमास के मध्य चल रहे संघर्ष के कारण आपूर्ति बाधित होने की संभवना बढ़ गई है।दरअसल पिछले सप्ताह की गिरावट के रुझान को उलटते हुए, 9 अक्टूबर को तेल की कीमतों में 4 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई, इस डर से कि इज़राइल और हमास के बीच संघर्ष गाजा से परे व्याप्त को सकता है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से कच्चे तेल की कीमतें पहले से ही 90 डॉलर प्रति बैरल से अधिक चल रही थीं, सऊदी अरब और रूस ने कटौती बढ़ा दी थी और कम आपूर्ति ने चिंताएं उत्पन्न कर दी थीं।हालांकि गाजा कोई तेल उत्पादन नहीं करता है, जबकि इज़राइल अपने उपयोग के लिए मात्र थोड़ी मात्रा में तेल का उत्पादन करता है। किन्तु वैश्विक तेल आपूर्ति में मध्य पूर्व का महत्वपूर्ण योगदान है। इज़राइल-गाजा संघर्ष जैसी क्षेत्र में किसी भी अस्थिरता संभावित आपूर्ति व्यवधान मूल्य वृद्धि का कारण बन सकता है। ऐतिहासिक रूप से, मध्य पूर्वी संकटों के कारण प्रायः तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है, जिससे वैश्विक मुद्रास्फीति दर और व्यापार संतुलन प्रभावित हुआ है।वहीं विश्व में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता होने के नाते, भारत वैश्विक तेल की कीमतों में किसी भी उतार-चढ़ाव के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है। तेल से परे युद्ध के बड़े आर्थिक प्रभाव के बारे में बात करते हुए केडिया कमोडिटी के प्रमुख और आर्थिक विषयों के विशेषज्ञ अजय केडिया ने Sputnik भारत को बताया कि "इज़राइल पर हमास समूह द्वारा अचानक और अभूतपूर्व बहु-मोर्चा हमले ने इस क्षेत्र को युद्ध क्षेत्र में बदल दिया है, जिससे वैश्विक बाजारों में एक श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया आरंभ हो गई है।"दरअसल इज़राइल की सहायता के लिए युद्धपोत भेजने के अमेरिका के कदम से क्षेत्र में अन्य देशों में युद्ध फैलने की आशंका बढ़ गई है। पूर्ण युद्ध ने दुनिया पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएं उत्पन्न कर दी हैं, जो पहले से ही Covid महामारी और भू-राजनीतिक संघर्ष के आर्थिक प्रभाव से जूझ रहा है।भू-राजनीतिक तनाव के दौरान, निवेशक सोना जैसी "सुरक्षित-संपत्ति" की ओर आकर्षित होते हैं। इज़राइल-हमास संघर्ष के बाद सोने की कीमतों में हालिया वृद्धि पिछले मध्य पूर्वी संघर्षों के दौरान देखे गए ऐतिहासिक रुझानों के अनुरूप है।वैश्विक तेल आपूर्ति का लगभग एक तिहाई हिस्सा मध्य पूर्व का है। इस संघर्ष के कारण कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि हुई है। यदि संघर्ष क्षेत्र के तेल उत्पादक देशों, विशेषकर ईरान तक फैलता है, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर नतीजों का सामना करना पड़ सकता है।कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें वैश्विक स्तर पर उच्च मुद्रास्फीति को जन्म दे सकती हैं। अमेरिका, भारत और चीन जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं, जो महत्वपूर्ण तेल आयातक हैं, अगर तेल की कीमतें ऊंची बनी रहीं तो उच्च आयातित मुद्रास्फीति का अनुभव हो सकता है। इससे उद्योगों में उत्पादन लागत प्रभावित हो सकती है और व्यवसायों और घरों के लिए ऊर्जा लागत बढ़ सकती है।बता दें कि अन्य देशों, विशेषकर ईरान तक अगर संघर्ष फैलता है तो स्थिति और विकट हो सकती है, परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण वैश्विक तेल आपूर्ति मार्ग, होर्मुज जलडमरूमध्य से जहाजों का निकालना संकट में पड़ सकता है।
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इज़राइल-हमास संघर्ष का प्रभाव भारत में तेल तक सीमित नहीं है: विशेषज्ञ
इज़राइल-हमास संघर्ष के बाद वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल एवं तेल की बढ़ती कीमतों ने लोगों को आशंकित कर दिया है और भारतीय बाजार भी घटना के संभावित प्रभाव से अछूता नहीं है।
कच्चे तेल की कीमतों में सप्ताह की शुरुआत में तेज वृद्धि देखी गई क्योंकि इज़राइल और फिलिस्तीनी इस्लामी समूह हमास के मध्य चल रहे संघर्ष के कारण आपूर्ति बाधित होने की संभवना बढ़ गई है।
दरअसल पिछले सप्ताह की गिरावट के रुझान को उलटते हुए, 9 अक्टूबर को तेल की कीमतों में 4 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई, इस डर से कि
इज़राइल और हमास के बीच संघर्ष गाजा से परे व्याप्त को सकता है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से कच्चे तेल की कीमतें पहले से ही 90 डॉलर प्रति बैरल से अधिक चल रही थीं, सऊदी अरब और रूस ने कटौती बढ़ा दी थी और कम आपूर्ति ने चिंताएं उत्पन्न कर दी थीं।
हालांकि गाजा कोई तेल उत्पादन नहीं करता है, जबकि इज़राइल अपने उपयोग के लिए मात्र थोड़ी मात्रा में तेल का उत्पादन करता है। किन्तु वैश्विक तेल आपूर्ति में मध्य पूर्व का महत्वपूर्ण योगदान है। इज़राइल-गाजा संघर्ष जैसी क्षेत्र में किसी भी अस्थिरता संभावित आपूर्ति व्यवधान मूल्य वृद्धि का कारण बन सकता है। ऐतिहासिक रूप से, मध्य पूर्वी संकटों के कारण प्रायः
तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है, जिससे वैश्विक मुद्रास्फीति दर और व्यापार संतुलन प्रभावित हुआ है।
वहीं विश्व में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता होने के नाते, भारत वैश्विक तेल की कीमतों में किसी भी उतार-चढ़ाव के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है। तेल से परे युद्ध के बड़े आर्थिक प्रभाव के बारे में बात करते हुए केडिया कमोडिटी के प्रमुख और आर्थिक विषयों के विशेषज्ञ
अजय केडिया ने Sputnik भारत को बताया कि "इज़राइल पर हमास समूह द्वारा अचानक और अभूतपूर्व बहु-मोर्चा हमले ने इस क्षेत्र को
युद्ध क्षेत्र में बदल दिया है, जिससे वैश्विक बाजारों में एक श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया आरंभ हो गई है।"
"इज़राइल-हमास संघर्ष बढ़ने की आशंका के मध्य कच्चे तेल की कीमतों में पांच प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई। सुरक्षा चिंताओं के कारण अशदोद और हाइफ़ा बंदरगाहों के बंद होने से समुद्री व्यापार बाधित हो गया है, जिससे एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में आपूर्ति श्रृंखलाएँ प्रभावित हो रही हैं," केडिया ने Sputnik भारत से कहा।
दरअसल इज़राइल की सहायता के लिए युद्धपोत भेजने के अमेरिका के कदम से क्षेत्र में अन्य देशों में
युद्ध फैलने की आशंका बढ़ गई है। पूर्ण युद्ध ने दुनिया पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएं उत्पन्न कर दी हैं, जो पहले से ही Covid महामारी और भू-राजनीतिक संघर्ष के आर्थिक प्रभाव से जूझ रहा है।
भू-राजनीतिक तनाव के दौरान, निवेशक सोना जैसी "सुरक्षित-संपत्ति" की ओर आकर्षित होते हैं। इज़राइल-हमास संघर्ष के बाद सोने की कीमतों में हालिया वृद्धि पिछले मध्य पूर्वी संघर्षों के दौरान देखे गए ऐतिहासिक रुझानों के अनुरूप है।
"संघर्ष का प्रभाव तेल से परे तक फैला हुआ है, संघर्ष की शुरुआत के बाद से सोने की कीमतों में 2% से अधिक वृद्धि देखी गई है। शत्रुता जारी रहने पर कीमतों में और भी वृद्धि की संभावना है। भू-राजनीतिक तनाव ने पहले ही डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये को कमजोर कर दिया है, और निरंतर वृद्धि इस प्रवृत्ति को बढ़ा सकती है, जिससे भारतीय निर्यातक प्रभावित होंगे और इज़राइल के साथ व्यापार करने वालों के लिए बीमा प्रीमियम और शिपिंग लागत बढ़ जाएगी," उन्होंने टिप्पणी की।
वैश्विक तेल आपूर्ति का लगभग एक तिहाई हिस्सा मध्य पूर्व का है। इस संघर्ष के कारण
कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि हुई है। यदि संघर्ष क्षेत्र के तेल उत्पादक देशों, विशेषकर ईरान तक फैलता है, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर नतीजों का सामना करना पड़ सकता है।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें वैश्विक स्तर पर उच्च मुद्रास्फीति को जन्म दे सकती हैं। अमेरिका, भारत और चीन जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं, जो महत्वपूर्ण
तेल आयातक हैं, अगर तेल की कीमतें ऊंची बनी रहीं तो उच्च आयातित मुद्रास्फीति का अनुभव हो सकता है। इससे उद्योगों में उत्पादन लागत प्रभावित हो सकती है और व्यवसायों और घरों के लिए ऊर्जा लागत बढ़ सकती है।
"हालांकि भारत के 6.1 बिलियन डॉलर के व्यापारिक अधिशेष पर तत्काल प्रभाव सीमित हो सकता है जब तक संघर्ष नहीं बढ़ेगा, वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए यह एक स्पष्ट जोखिम है। माल के निर्यात के लिए उच्च बीमा प्रीमियम और शिपिंग लागत की आशंका, व्यापार की मात्रा में संभावित व्यवधानों के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था की परस्पर संबद्धता और कमोडिटी की कीमतों, विशेष रूप से सोने और कच्चे तेल पर क्षेत्रीय संघर्षों के दूरगामी परिणामों को दर्शाता है," केडिया ने बताया।
बता दें कि अन्य देशों, विशेषकर ईरान तक अगर संघर्ष फैलता है तो स्थिति और विकट हो सकती है, परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण वैश्विक तेल आपूर्ति मार्ग, होर्मुज जलडमरूमध्य से जहाजों का निकालना संकट में पड़ सकता है।