विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत के आदित्य-एल1 मिशन द्वारा सौर हवाओं के अध्ययन से उत्सर्जित होगी नवीन जानकारी

© Photo : Goddard Space Flight Center/NASA via APMars
Mars - Sputnik भारत, 1920, 02.12.2023
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भारत के पहले सौर मिशन 'आदित्य एल-1' को सितंबर में लॉन्च किया गया था। अंतरिक्ष यान के सूर्य-पृथ्वी लाग्रेंज बिंदु की एल1 हेलो कक्षा के पास अगले महीने स्थापित करने की योजना है, जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है।
भारतीय अंतरिक्ष और अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्रवार को कहा कि सौर हवाओं की विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए भारत के आदित्य-एल1 उपग्रह पर लगे पेलोड का परिचालन शुरू हो गया है।
आदित्य-एल1 में सात विशिष्ट पेलोड हैं जो एल1 के पास की कक्षा से सूर्य की सबसे बाहरी परत का अध्ययन करेंगे।
इसरो ने कहा कि आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX) पेलोड ने ‘सामान्य रूप से प्रदर्शन’ किया है।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया कि ASPEX में दो उपकरण सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर (SWIS) और सुप्राथर्मल एंड एनर्जेटिक पार्टिकल स्पेक्ट्रोमीटर (STEPS) सम्मिलित हैं।

इसरो ने कहा, “STEPS उपकरण ने 10 सितंबर, 2023 को काम करना शुरू कर दिया था। SWIS उपकरण 2 नवंबर, 2023 को सक्रिय हुआ था और इसने बेहतरीन प्रदर्शन किया है।"

एजेंसी ने कहा कि SWIS 360-डिग्री दृश्य क्षेत्र वाली दो सेंसर इकाइयों का उपयोग करते हुए एक दूसरे के लंबवत विमानों में काम करता है।

आदित्य-एल1 मिशन से क्या पता चला?

इसरो के बयान में बताया गया है कि SWIS ने सौर पवन आयनों, मुख्य रूप से प्रोटॉन और अल्फा कणों को सफलतापूर्वक मापा है।

भारतीय एजेंसी ने कहा, “नवंबर 2023 में दो दिनों में एक सेंसर से प्राप्त नमूने की ऊर्जा हिस्टोग्राम ने प्रोटॉन (H+) और अल्फा कण (दोगुने आयनित हीलियम, He2+) की गिनती में भिन्नता को दर्शाया है।"

© Photo : ISRO/TwitterSolar wind observations from SWIS
Solar wind observations from SWIS - Sputnik भारत, 1920, 02.12.2023
Solar wind observations from SWIS
इसरो ने दावा किया है कि प्रोटॉन और अल्फा कणों में इन विविधताओं ने 'सौर पवन व्यवहार का एक व्यापक स्नैपशॉट' प्रदान किया है।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने रेखांकित किया कि SWIS द्वारा मापे गए प्रोटॉन और अल्फा कण की संख्या अनुपात में परिवर्तन, "सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज प्वाइंट एल1 पर कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs) के आगमन के बारे में अप्रत्यक्ष जानकारी" प्रदान करने की क्षमता रखता है।
नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के अनुसार CMEs "सूर्य के कोरोना से प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र का बड़ा निष्कासन" है।

इसरो ने कहा, “बढ़े हुए अल्फा-टू-प्रोटॉन अनुपात को प्रायः एल1 पर इंटरप्लेनेटरी कोरोनल मास इजेक्शन (ICMEs) के पारित होने के संवेदनशील मार्करों में से एक माना जाता है और इसलिए इसे अंतरिक्ष मौसम अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।"

एजेंसी ने आशा व्यक्त की है कि आने वाले दिनों में ASPEX जो जानकारी देगा, वह न मात्र सौर हवाओं को बेहतर ढंग से समझने में सहायता करेगा, बल्कि इससे विश्व के लिए इसके ‘निहितार्थ’ का मूल्यांकन करने में भी सहायता मिलेगी।
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