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COP28 में कोयले पर प्रतिबंध लगाने के पश्चिमी देशों के प्रयासों को भारत ने किया नाकाम: मंत्री

© AP Photo / Mark BakerBayswater Power Station a coal-powered thermal power station near Muswellbrook in the Hunter Valley, Australia, Tuesday, Nov. 2, 2021.
Bayswater Power Station a coal-powered thermal power station near Muswellbrook in the Hunter Valley, Australia, Tuesday, Nov. 2, 2021.  - Sputnik भारत, 1920, 09.01.2024
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भारत के पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने पिछले साल दुबई में आयोजित कॉप-28 की बैठक से जुड़ी बातों को साझा करते हुए कहा कि विकसित राष्ट्र कोयले पर रोक लाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन भारत ने इसका विरोध किया।
भारतीय मीडिया ने पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव के हवाले से कहा कि पश्चिमी देशों ने कॉप-28 के दौरान कोयले पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की, लेकिन भारत ने ग्लोबल साउथ के हितों की रक्षा करते हुए इसे नाकाम कर दिया।

उन्होंने कहा, "जब उन्होंने कहा कि देशों को कोयले (के उपयोग की अवधि बढ़ाने) की अनुमति के लिए आवेदन करना होगा, तो भारत ने ‘ग्लोबल साउथ’ के हितों के लिए लड़ाई लड़ी। हमने यह भी कहा कि यदि जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को छोटे देशों में गरीबी उन्मूलन से जोड़ा जाता है तो उसे रोका नहीं जा सकता।"

उन्होंने साथ ही कहा, "यह स्पष्ट है कि ऊर्जा परिवर्तन के लिए विकसित देशों को ग्लोबल साउथ को धन उपलब्ध कराना चाहिए और प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करनी चाहिए।" मंत्री के अनुसार, कोई भी देश ऊर्जा के बिना विकास नहीं कर सकता।
यह पहली बार नहीं है जब यादव ने कहा कि पश्चिम ने भारत पर उनके जलवायु मानदंडों का पालन करने के लिए दबाव डाला है। इससे पहले दिसंबर में मंत्री ने कहा था कि विकसित देश चाहते हैं कि नई दिल्ली जलवायु परिवर्तन पर नेतृत्व करे और "इसी कारण दुबई में जलवायु सम्मेलन को आगे बढ़ाया गया"।
यादव ने विकासशील और गरीब देशों के लिए जलवायु वित्त स्थापित करने के लिए विकसित देशों द्वारा की गई दीर्घकालिक प्रतिज्ञा को भी संबोधित किया। उन्होंने "जलवायु वित्त" शब्द की स्पष्ट परिभाषा के अभाव और अब तक प्रदान की गई जलवायु निधि की वास्तविक राशि के संबंध में पारदर्शिता की कमी पर भी चिंता व्यक्त की।

उन्होंने कहा, "इस बार भारत और अन्य विकासशील देशों की मजबूत वकालत के बाद सदस्य देश जलवायु वित्त की एक परिभाषा के साथ आने पर सहमत हुए"।

मंत्री ने कहा, "पिछले 200 वर्षों में विकसित देशों ने अधिकांश कार्बन स्पेस का उपयोग किया है, बहुत ही मानवकेंद्रित जीवन जीया है, जिससे जलवायु परिवर्तन संकट पैदा हुआ है, और अब वे अपना शमन बोझ विकासशील देशों पर नहीं डाल सकते हैं"। उन्होंने दावा किया कि "भारत विकासशील देशों के लिए इस मुद्दे का समर्थन कर रहा है।"
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