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इसरो के RLV पुष्पक से प्रक्षेपण की कीमत को 50 प्रतिशत से भी कम किया जा सकेगा
इसरो के RLV पुष्पक से प्रक्षेपण की कीमत को 50 प्रतिशत से भी कम किया जा सकेगा
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भारत में अभी तक पुरानी तकनीक का उपयोग किया जा रहा है जिसमें रॉकेट को प्रक्षेपण का केवल एक ही बार इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन RLV एक ऐसी तकनीक है जिसकी वजह से बहुत कम कीमत पर अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया जा सकेगा।
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भारत में अभी तक पुरानी तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, जिसमें रॉकेट को प्रक्षेपण का मात्र एक ही बार इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन RLV एक ऐसी तकनीक है, जिसकी वजह से बहुत कम कीमत पर अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया जा सकेगा।एजेंसी के अनुसार, इस पंख वाले विमान को भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा 4.5 किमी की ऊंचाई तक उठाकर छोड़ा गया। इसके बाद रनवे से 4 किमी की दूरी पर रिलीज होने के बाद पुष्पक स्वायत्त रूप से क्रॉस रेंज सुधारों के साथ रनवे पर पहुंच गया।Sputnik ने इसरो द्वारा निर्मित किए गए इस पुष्पक विमान को जानने के लिए भारत में विज्ञान प्रसार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में वैज्ञानिक डॉ टी वी वेंकटेश्वरन से बात की।उन्होंने बताया कि इसरो द्वारा खोजी गई इस तकनीक की वजह से रॉकेट को दोबारा कई बार उपयोग में लाया जा सकेगा, जिससे अंतरिक्ष मिशन में आने वाले खर्चे को लगभग 50 प्रतिशत से भी कम किया जा सकेगा।रियुसेबल लॉन्च वीइकल कैसे काम करता है?जब वेंकटेश्वरन से इसके काम करने के तरीके के बारे में पुछा गया, तब उन्होंने बताया कि यह दो स्टेज में काम करेगा। पहली स्टेज में 80-90 किलोमीटर दूरी तक ऊपर ले जाया जाता है और उसके बाद दूसरी स्टेज में उपग्रह को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जा सकेगा। पहली स्टेज कए रॉकेट अपना काम करने के बाद पैराशूट की सहायता से पृथ्वी पर वापस आ जाएगा, जिसके बाद इसे कई बार काम ले लिया जा सकेगा।क्या इससे दूसरे ग्रहों पर जाना संभव होगा?अंत में वेंकटेश्वरन से पुछा गया कि इस पुष्पक विमान से किस तरह के मिशनों को पूरा किया जा सकता है, तब उन्होंने बताया कि पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रह की स्थापना के लिए इसे काम में लाया जा सकेगा। इसके अलावा, इसमें मानव को भी अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है।
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इसरो के RLV पुष्पक से प्रक्षेपण की कीमत को 50 प्रतिशत से भी कम किया जा सकेगा
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने हाल ही में देश में कर्नाटक राज्य के चित्रदुर्ग के पास चल्लकेरे में एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (ATR) से अपने रीयूसेबल लॉन्च व्हीकल (RLV) पुष्पक की दूसरा लैंडिंग परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया।
भारत में अभी तक पुरानी तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, जिसमें रॉकेट को प्रक्षेपण का मात्र एक ही बार इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन RLV एक ऐसी तकनीक है, जिसकी वजह से बहुत कम कीमत पर अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया जा सकेगा।
इसरो ने एक बयान में कहा, "इसरो ने इसे फिर से मजबूत किया है। पंखों वाला वाहन पुष्पक (RLV-TD) नाममात्र की स्थिति से मुक्त होने के बाद रनवे पर सटीकता के साथ स्वायत्त रूप से उतरा।"
एजेंसी के अनुसार, इस पंख वाले विमान को
भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा 4.5 किमी की ऊंचाई तक उठाकर छोड़ा गया। इसके बाद रनवे से 4 किमी की दूरी पर रिलीज होने के बाद पुष्पक स्वायत्त रूप से क्रॉस रेंज सुधारों के साथ रनवे पर पहुंच गया।
Sputnik ने इसरो द्वारा निर्मित किए गए इस पुष्पक विमान को जानने के लिए भारत में विज्ञान प्रसार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में वैज्ञानिक डॉ टी वी वेंकटेश्वरन से बात की।
उन्होंने बताया कि इसरो द्वारा खोजी गई इस तकनीक की वजह से रॉकेट को दोबारा कई बार उपयोग में लाया जा सकेगा, जिससे
अंतरिक्ष मिशन में आने वाले खर्चे को लगभग 50 प्रतिशत से भी कम किया जा सकेगा।
वेंकटेश्वरन ने कहा, "अभी तक हम एक ही तरीके से अंतरिक्ष में प्रक्षेपण कर रहे हैं, जिसमें रॉकेट का केवल एक ही बार इस्तेमाल होता है। इसरो ने एक नई तकनीक खोजी है। इसमें विमान के रूप में एक यान बनाया गया है, जिसके जरिए बार-बार अंतरिक्ष में जाया जा सकता है और उपग्रह छोड़ कर वापस आ सकते हैं। इस विमान के जरिए लागत में बड़ी कमी आएगी।"
रियुसेबल लॉन्च वीइकल कैसे काम करता है?
जब वेंकटेश्वरन से इसके काम करने के तरीके के बारे में पुछा गया, तब उन्होंने बताया कि यह दो स्टेज में काम करेगा। पहली स्टेज में 80-90 किलोमीटर दूरी तक ऊपर ले जाया जाता है और उसके बाद दूसरी स्टेज में उपग्रह को
पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जा सकेगा। पहली स्टेज कए रॉकेट अपना काम करने के बाद पैराशूट की सहायता से पृथ्वी पर वापस आ जाएगा, जिसके बाद इसे कई बार काम ले लिया जा सकेगा।
वेंकटेश्वरन ने कहा, "रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल टू स्टेज टू ऑर्बिट का एक भाग है। इसमें पहली स्टेज में स्क्रैम जेट रेंम जेट इंजन होगा, जिसमें सॉलिड ईंधन के साथ चलने वाला रॉकेट चाहिए होगा। स्क्रैम जेट रेंम जेट इंजन हवा से आक्सिजन लेने में सक्षम होगा। पुष्पक दूसरी स्टेज को पुरा करेगा, जिसमें यह सही कक्षा में पहुचने के बाद वापस एक विमान की तरह पृथ्वी पर लेंड कर जाएगा।"
क्या इससे दूसरे ग्रहों पर जाना संभव होगा?
अंत में वेंकटेश्वरन से पुछा गया कि इस पुष्पक विमान से किस तरह के मिशनों को पूरा किया जा सकता है, तब उन्होंने बताया कि पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रह की स्थापना के लिए इसे काम में लाया जा सकेगा। इसके अलावा, इसमें
मानव को भी अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है।
वेंकटेश्वरन ने कहा, "पुष्पक यान के इस्तेमाल से हम गृहों तक नहीं जा सकते हैं। लेकिन इसके जरिए उपग्रह स्थापित करने के लिए निचली कक्षा में जाना संभव हो पाएगा। गगनयान की सफलता के बाद भारत जल्द ही एक अंतरिक्ष स्टेशन बनाएगा, जहां भरतोय अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाएगा। पुष्पक में एक व्यक्ति को भी अंतरिक्ष में भेजा जा सकेगा, पुष्पक का मुख्य कार्य अंतरिक्ष में उपग्रह छोड़ने के लिए किया जाएगा।"