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रूसी आतिथ्य और अनुशासन से 2024 ब्रिक्स खेलों में भारत की पहली स्वर्ण पदक विजेता मंत्रमुग्ध
रूसी आतिथ्य और अनुशासन से 2024 ब्रिक्स खेलों में भारत की पहली स्वर्ण पदक विजेता मंत्रमुग्ध
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भारतीय वुशू एथलीट अपर्णा दहिया ने रूस के कज़ान में 2024 ब्रिक्स खेलों में स्वर्ण पदक जीता। Sputnik India को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि उनकी एकमात्र इच्छा अपनी मातृभूमि को गौरवान्वित करना है।
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एक किसान की 18 वर्षीय बेटी अपर्णा दहिया ने इस सप्ताह की शुरुआत में कज़ान में 2024 ब्रिक्स खेलों में देश के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतकर भारत को गौरवान्वित किया।मंगलवार को अपर्णा दहिया ने 2024 ब्रिक्स में चीनी मार्शल आर्ट वुशु सांडा में महिलाओं के 48 किग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट बनकर इतिहास रच दिया।इस बीच, अपनी खेल उपलब्धियों के अतिरिक्त, दहिया रूस के आतिथ्य और रूसियों द्वारा न केवल पेशेवर अपितु आम नागरिक के रूप में अपनाए जाने वाले अनुशासन देख चमत्कृत हो गईं।2024 ब्रिक्स खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के लिए दहिया की यात्रा और भी विशिष्ट है, क्योंकि वुशु एक पारंपरिक चीनी मार्शल आर्ट है, जिसमें दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के एथलीट वर्षों से हावी रहे हैं।अन्य भारतीय खेल सितारों की तरह, दहिया भी पोडियम के शीर्ष पर खड़े होने का सपना लेकर कज़ान गई थीं, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह एक अद्भुत अनुभूति थी।हालांकि, उन्होंने बताया कि वुशु खेल में उनकी सफलता उनके माता-पिता और भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) के सहयोग के बिना संभव नहीं होती।इस बीच, दहिया ने इस बात पर जोर दिया कि वह भारतीय वुशु संघ की सदैव ऋणी रहेंगी, क्योंकि एसोसिएशन ने उन्हें उनके भार वर्ग में कज़ान भेजने का निर्णय लिया था।"यदि एसोसिएशन ने मेरी सहायता नहीं की होती तो मैं कज़ान में भाग नहीं ले पाती, क्योंकि अधिकारी एक विशेष भार वर्ग में केवल कुछ एक एथलीट ही भेज सकते हैं। मुझे खुशी है कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरी उतरी," उन्होंने कहा।स्वर्ण पदक विजेता ने यह भी बताया कि उनके पिता ने अपनी बेटी को खेल जगत में इतना अच्छा प्रदर्शन करते देखने के लिए कितने त्याग किए।अपने जीवन का एक किस्सा साझा करते हुए दहिया ने बताया कि उनके पिता सुबह 4 बजे उठते थे और उन्हें हरियाणा के सोनीपत जिले में प्रशिक्षण केंद्र ले जाते थे, जो दिल्ली के उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित उनके गांव से 13 किलोमीटर दूर था।भारत सरकार से अपनी इच्छा सूची के बारे में बोलते हुए, दहिया ने अधिकारियों से खेलो इंडिया यूथ गेम्स (KIYG) में वुशु को सम्मिलित करने का अनुरोध किया।केआईवाईजी भारत में शीर्ष बहु-विषयक घरेलू आयोजन है, जिसमें लगभग सभी खेलों के एथलीट भाग लेते हैं। परंतु वुशू को अभी इसका हिस्सा बनना शेष है।
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रूसी आतिथ्य और अनुशासन से 2024 ब्रिक्स खेलों में भारत की पहली स्वर्ण पदक विजेता मंत्रमुग्ध
विशेष
भारतीय वुशू एथलीट अपर्णा दहिया ने रूस के कज़ान में 2024 ब्रिक्स खेलों में स्वर्ण पदक जीता। Sputnik India को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि उनकी एकमात्र इच्छा अपनी मातृभूमि को गौरवान्वित करना है।
एक किसान की 18 वर्षीय बेटी अपर्णा दहिया ने इस सप्ताह की शुरुआत में कज़ान में 2024 ब्रिक्स खेलों में देश के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतकर भारत को गौरवान्वित किया।
मंगलवार को अपर्णा दहिया ने 2024 ब्रिक्स में चीनी मार्शल आर्ट वुशु सांडा में महिलाओं के 48 किग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट बनकर इतिहास रच दिया।
इस बीच, अपनी खेल उपलब्धियों के अतिरिक्त, दहिया रूस के आतिथ्य और रूसियों द्वारा न केवल पेशेवर अपितु आम नागरिक के रूप में अपनाए जाने वाले अनुशासन देख चमत्कृत हो गईं।
"मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि मुझे रूस से प्यार हो गया है। हालांकि शाकाहारी भोजन खोजने से संबंधित कुछ चुनौतियां थीं, लेकिन अपने आस-पास की सफाई रखने के प्रति लोगों का समर्पण, नियमों का पालन करने की उनकी प्रतिबद्धता, उनका बड़ा दिल और अपने देश के प्रति उनकी देशभक्ति कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें मैं कभी नहीं भूलूंगी," दहिया ने गुरुवार को Sputnik India को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कहा।
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ब्रिक्स खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के लिए दहिया की यात्रा और भी विशिष्ट है, क्योंकि वुशु एक पारंपरिक चीनी मार्शल आर्ट है, जिसमें दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के एथलीट वर्षों से हावी रहे हैं।
अन्य भारतीय खेल सितारों की तरह, दहिया भी पोडियम के शीर्ष पर खड़े होने का सपना लेकर कज़ान गई थीं, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह एक अद्भुत अनुभूति थी।
"मैं भारत को गौरवान्वित करने के लिए रूस गयी थी। शुक्र है कि भगवान की कृपा से मैं देश के लिए खेलों का पहला स्वर्ण पदक जीतने में सफल रही। सच कहूँ तो, पदक समारोह के दौरान खचाखच भरे स्टेडियम में राष्ट्रगान बजते सुनने से उच्चतम कोई अनुभव नहीं हो सकता," दहिया ने हर्ष व्यक्त करते हुए कहा।
हालांकि, उन्होंने बताया कि वुशु खेल में उनकी सफलता उनके माता-पिता और भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) के सहयोग के बिना संभव नहीं होती।
भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) युवा मामले और खेल मंत्रालय के अंतर्गत एक प्रशासनिक निकाय है, जो एथलीटों को सुविधाएं प्रदान करता है, जिसमें विदेशी प्रतियोगिताओं के दौरान उनकी प्रशिक्षण आवश्यकताओं, उपकरणों और आवास एवं भोजन सुविधा उपलब्ध कराना सम्मिलित है।
इस बीच, दहिया ने इस बात पर जोर दिया कि वह भारतीय वुशु संघ की सदैव ऋणी रहेंगी, क्योंकि एसोसिएशन ने उन्हें उनके भार वर्ग में कज़ान भेजने का निर्णय लिया था।
"यदि एसोसिएशन ने मेरी सहायता नहीं की होती तो मैं कज़ान में भाग नहीं ले पाती, क्योंकि अधिकारी एक विशेष भार वर्ग में केवल कुछ एक एथलीट ही भेज सकते हैं। मुझे खुशी है कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरी उतरी," उन्होंने कहा।
स्वर्ण पदक विजेता ने यह भी बताया कि उनके पिता ने अपनी बेटी को खेल जगत में इतना अच्छा प्रदर्शन करते देखने के लिए कितने त्याग किए।
अपने जीवन का एक किस्सा साझा करते हुए दहिया ने बताया कि उनके पिता सुबह 4 बजे उठते थे और उन्हें हरियाणा के सोनीपत जिले में प्रशिक्षण केंद्र ले जाते थे, जो दिल्ली के उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित उनके गांव से 13 किलोमीटर दूर था।
"मैं 12 साल की बच्ची थी और सातवीं कक्षा में पढ़ती थी, जब वुशू मेरे जीवन में आया। लेकिन एक बार जब मुझे इस खेल से प्यार हो गया तो मैंने कभी कोई बहाना नहीं बनाया। मुझे पता था कि मुझे अपना नाम कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी और इसके लिए मैंने सुबह 4 बजे से रात 8 बजे तक का शेड्यूल बनाया। शुरुआत में मेरे पिता मेरे साथ यात्रा करते थे क्योंकि मैं अकेले यात्रा नहीं कर सकती थी," उन्होंने बताया।
भारत सरकार से अपनी इच्छा सूची के बारे में बोलते हुए, दहिया ने अधिकारियों से खेलो इंडिया यूथ गेम्स (KIYG) में वुशु को सम्मिलित करने का अनुरोध किया।
केआईवाईजी भारत में शीर्ष बहु-विषयक घरेलू आयोजन है, जिसमें लगभग सभी खेलों के एथलीट भाग लेते हैं। परंतु वुशू को अभी इसका हिस्सा बनना शेष है।
"हमें खेलो गेम्स में भाग लेने की अनुमति देकर सरकार वुशू पर बहुत बड़ा उपकार करेगी, क्योंकि इससे यह खेल देश के कोने-कोने में फैलेगा," उन्होंने टिप्पणी की।