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भारतीय नौसेना में दूसरा एंटी सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट 'Androth' शामिल

© Photo : Navy PRORepresentative image
Representative image - Sputnik भारत, 1920, 06.10.2025
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भारतीय नौसेना ने 6 अक्टूबर को विशाखापट्टनम डॉकयार्ड में कम गहरे पानी में शत्रु की पनडुब्बियों को नष्ट करने वाले यानि Anti-Submarine Warfare Shallow Water Craft (ASW-SWC) आईएनएस अंद्रोत को शामिल किया।
आईएनएस अंद्रोत इस श्रेणी का दूसरा युद्धपोत है, पहला युद्धपोत आईएनएस अरनाला इसी वर्ष जून में भारतीय नौसेना में शामिल हुआ था। भारत इस श्रेणी के 16 युद्धपोत बना रहा है जो 2028 तक नौसेना में शामिल हो जाएंगे।
आईएनएस अंद्रोत 80 प्रतिशत तक स्वदेशी है और 77 मीटर लंबा है। केवल 1500 टन वज़न के इस युद्धपोत को खासतौर पर तटीय और कम गहरे पानी में कार्रवाई करने के लिए बनाया गया है। इसे अत्याधुनिक अस्त्रों, सेंसर और संचार के साधनों से लैस किया गया है जिससे यह समुद्र की सतह के नीचे मौजूद हर खतरे का पता लगाकर उसे नष्ट कर सके।
इसके आधुनिक तकनीक से बने उपकरण और नियंत्रण सिस्टम इसे लंबे समय तक अभियान चलाने में सक्षम बनाते हैं। इससे समुद्र तटों के आसपान चौकसी, राहत और बचाव अभियानों, तटीय सुरक्षा और कम तीव्रता की नौसैनिक कार्रवाइयों में भाग ले सकता है।
यह 25 नॉटिकल मील की गति से एक बार में 1800 नॉटिकल मील तक यात्रा कर सकता है। इसमें 57 नौसैनिक तैनात किए जा सकते हैं। यह युद्धपोत शत्रु की पनडुब्बियों से निबटने के लिए एंटी सबमरीन रॉकेट्स, टॉरपीडो से लैस है और समुद्र की सतह पर बारूदी सुरंगें भी बिछा सकता है। इसे शत्रु के पोतों पर हमला करने के लिए एक 30मिमी की गन के अतिरिक्त दो 12.7 मिमी की गन भी लगीं हैं।
भारतीय नौसेना को भारत की कई राज्यों से गुज़रने वाली तटरेखा की सुरक्षा के अलावा प्राकृतिक आपदाओं के दौरान तटवर्ती इलाक़ों में राहत और बचाव के कार्य करने की ज़िम्मेदारी उठानी होती है। 2008 में मुंबई पर समुद्र से आए आतंकवादियों द्वारा किए गए भीषण हमले के बाद समुद्री सीमा की सुरक्षा और चौकसी को लगातार सुदृढ़ किया जा रहा है।
शत्रु की पनडुब्बियों के चुपचाप आकर बंदरगाहों और डॉकयार्ड पर हमले के खतरे से निबटने के लिए आईएनएस अंद्रोत जैसे युद्धपोतों की आवश्यकता होती है। कम भार के कारण वह आसानी से तटों के पास जाकर भी कार्रवाई कर सकते हैं।
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