डिफेंस
भारतीय सेना, इसके देशी और विदेशी भागीदारों और प्रतिद्वन्द्वियों की गरमा गरम खबरें।

रक्षा मंत्रालय ने बीईएल, एनएसआईएल से 5,400 करोड़ रुपये के अनुबंध किए

रक्षा मंत्रालय ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) गाजियाबाद और न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के साथ लगभग 5,400 करोड़ रुपये के तीन अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए।
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भारतीय मीडिया ने रक्षा मंत्रालय के हवाले से बताया कि बीईएल से पहला अनुबंध भारतीय सेना के लिए 1,982 करोड़ रुपये के ऑटोमेटेड एयर डिफेंस कंट्रोल एंड रिपोर्टिंग सिस्टम प्रोजेक्ट आकाशतीर की खरीद से जुड़ा है।
स्वचालित वायु रक्षा नियंत्रण और रिपोर्टिंग प्रणाली प्रोजेक्ट आकाशतीर भारतीय सेना की वायु रक्षा इकाइयों को कारगर एकीकृत तरीके से काम करने में सक्षम बनाएगा।
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रक्षा मंत्रालय ने 84,328 करोड़ रुपये के पूंजीगत खरीद प्रस्तावों को मंजूरी दी
"आकाशतीर भारतीय सेना के युद्ध क्षेत्रों में निचले स्तर के हवाई क्षेत्र की निगरानी करने और ग्राउंड बेस्ड एयर डिफेंस वेपन सिस्टम को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में सक्षम होगा," रक्षा मंत्रालय ने कहा।
बीईएल से दूसरा अनुबंध भारतीय नौसेना के लिए 412 करोड़ रुपये की कुल लागत पर इलेक्ट्रॉनिक सपोर्ट पैकेज के साथ सारंग इलेक्ट्रॉनिक सपोर्ट मेज़र (ईएसएम) सिस्टम के अधिग्रहण से संबंधित है।
सारंग भारतीय नौसेना के हेलीकॉप्टरों के लिए एक उन्नत इलेक्ट्रॉनिक समर्थन उपाय प्रणाली है, जिसे रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स अनुसंधान प्रयोगशाला, हैदराबाद द्वारा समुद्रिका कार्यक्रम के तहत स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया गया है।
रक्षा मंत्रालय के बयान के अनुसार दोनों परियोजनाएं सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम सहित भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स और संबद्ध उद्योगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करेंगी, जो BEL के उप-विक्रेता हैं।
रक्षा मंत्रालय के बयान के अनुसार केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम NSIL के साथ अनुबंध अंतरिक्ष विभाग के तहत एक उन्नत संचार उपग्रह GSAT 7B की खरीद से संबंधित है, जिसकी कुल लागत 2,963 करोड़ रुपये है जो भारतीय सेना को उच्च क्षमता की सेवाएं प्रदान करेगा।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
ISRO सात मार्च को सैटेलाइट री-एंट्री के चुनौतीपूर्ण प्रयोग की तैयारी कर रहा है
उन्नत संचार उपग्रह सैनिकों और संरचनाओं के साथ-साथ हथियार और हवाई प्लेटफार्मों के लिए संचार प्रदान करके भारतीय सेना की संचार क्षमता में काफी वृद्धि करेगा।
जियोस्टेशनरी उपग्रह जो पांच टन श्रेणी में अपनी तरह का पहला है इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किया जाएगा।
रक्षा मंत्रालय के अनुसार कई पुर्जे,सब-असेंबली और सिस्टम स्वदेशी निर्माताओं से प्राप्त किए जाएंगे जिनमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम और स्टार्ट-अप शामिल हैं जिससे निजी भारतीय अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।
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